दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के कुलपति योगेश सिंह ने फिर से कहा है कि संस्कृत विभाग के एक पेपर में मनुस्मृति के उल्लेख को लेकर हुई आलोचना के बाद, डीयू में इसे किसी भी पाठ्यक्रम में नहीं पढ़ाया जाएगा। सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘इससे पहले भी (विश्वविद्यालय) प्रशासन ने कहा था कि मनुस्मृति को किसी भी पाठ्यक्रम में नहीं पढ़ाया जाएगा। पिछले साल भी प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया था कि इसे किसी भी रूप में नहीं पढ़ाया जाएगा।’’ उन्होंने कहा कि हालांकि, संस्कृत विभाग ने ‘धर्मशास्त्र अध्ययन’ के तहत मनुस्मृति पर आधारित एक अध्याय का सुझाव दिया था, अध्याय को हटा दिया गया है।
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सिंह ने कहा कि यदि विभाग मनुस्मृति पढ़ाना चाहता है, तो उसे इसका अध्याय अलग तरीके से तैयार करना होगा। विश्वविद्यालय ने भी एक बयान जारी कर कहा, ‘‘दिल्ली विश्वविद्यालय अपने किसी भी पाठ्यक्रम में मनुस्मृति नहीं पढ़ाएगा। संस्कृत विभाग के डीएससी (अनुशासन विशिष्ट कोर) ‘धर्मशास्त्र अध्ययन’, जिसमें मनुस्मृति को ‘अनुशंसित पाठ्य सामग्री’ के रूप में उल्लेखित किया गया है, को हटा दिया गया है।’’
यह कदम मनुस्मृति को धर्मशास्त्र अध्ययन नामक ‘फोर-क्रेडिट’ संस्कृत पाठ्यक्रम में सूचीबद्ध किए जाने के बाद उठाया गया है, जिसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अनुरूप स्नातक पाठ्यक्रम ढांचे के तहत पेश किया गया है। पाठ्यक्रम में रामायण, महाभारत, पुराण और (कौटिल्य का) अर्थशास्त्र जैसे ग्रंथ भी शामिल हैं। हालांकि, जाति और महिलाओं पर अपने विचारों के लिए लंबे समय से विवादित रहे मनुस्मृति को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने पर छात्रों और शिक्षकों दोनों ने ही विरोध जताया है।
यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली विश्वविद्यालय ने विवादास्पद धर्मग्रंथ के अध्यापन से खुद को अलग किया है। पिछले साल जुलाई में, विश्वविद्यालय ने मनुस्मृति और बाबरनामा को इतिहास के पाठ्यक्रम में शामिल करने के प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि भविष्य में भी इस तरह के विषयों को शामिल नहीं किया जाएगा।
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