सृष्टि के निर्माण के समय से ही अंतरिक्ष रहस्यों का विषय बना हुआ है। मानव ने भले ही चंद्रमा, मंगल और अन्य ग्रहों तक पहुंच बना ली है, लेकिन अंतरिक्ष में पल-पल घट रही अद्भुत और विस्मयकारी घटनाओं एवं पृथ्वी से इतर जीवन की संभावनाओं तथा गहराइयों को जानने-समझने में अभी वक्त लगेगा। उड़न तश्तरी और एलियन को लेकर कई तरह के किस्से सुनने को मिल जाते हैं। कोई दो मत नहीं कि अंतरिक्ष का रहस्य, रोमांच से भरपूर है। उसमें भी अहम यह कि क्या धरती के अलावा, दूसरे ग्रहों पर भी जीवन है? इसको लेकर एक नई खोज ने अंतरिक्ष विज्ञान जगत को उम्मीदों की नई रोशनी दी है।
दरअसल, साठ के दशक में अंटार्कटिका में अनुसंधान केंद्र के रेडियो एंटिना रिसीवर ने पक्षियों की चहचहाहट सुनीं, जिन्हें ‘कोरस वेव्स’ कहते हैं। नासा के जुड़वां अंतरिक्ष यान वैन ‘एलन प्रोब्स’ के रेडिएशन बेल्ट में भी ये आवाजें सुनी गई थी। बाद में वर्ष 2015 में नासा के ही एक उपग्रह ने भी ऐसी तरंगों को रेकार्ड किया। ऐसी रहस्यमयी आवाजें, रेडियो सिग्नल, तैरते हुए पानी का विशाल भंडार दिखना, अंतरिक्ष यात्रियों का एक दिन में कई बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखना सचमुच रोमांचकारी है। वैज्ञानिक इन रहस्यों को समझ पाते, इसी बीच कैंब्रिज विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर निक्कू मधुसूदन ने पूरी दुनिया को हैरान कर देने वाली खोज और तथ्यों से चकित कर दिया। उनकी इस खोज पर पूरी दुनिया में चर्चा है। उनका दल ऐसे रहस्यों को खोल रहा है, जो सदियों पुराने हैं।
इस धरती से बहुत दूर एक बाह्य ग्रह मिला है, जिसे के2-18बी नाम दिया गया है। यह वरुण से छोटा है। एक लाल तारा भी मिला, जो सूर्य से आकार और द्रव्यमान में बहुत छोटा, ठंडा, और नारंगी रंग का है। ऐसे तारे सबसे आम और सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले होते हैं। कैंब्रिज के खगोलशास्त्री मधुसूदन और उनके दल के पास ऐसे पुख्ता आधार हैं, जिनमें वहां ऐसे अणुओं के संकेत मिले जिनका अब तक केवल पृथ्वी पर ही मिलना संभव समझा जाता था। सबसे बड़ी विशेषता यह कि ये केवल साधारण सूक्ष्म जीवों से ही पैदा होते हैं। के2-18बी आकार में पृथ्वी से ढाई गुना बड़ा और 700 ट्रिलियन मील दूर है। यह भी ऐसा बाह्य ग्रह है जो अन्य पिंडों की तरह परिक्रमा करता है।
अध्ययन के दौरान पाया गया कि सुदूर अंतरिक्ष के उस वातावरण के दो अणुओं में से एक में रासायनिक छाप हैं, जो ऐसे अर्ध-रसायनों की विशेषताओं को दर्शाते हैं। इनमें उसके मूल या सर्वव्यापी यौगिक भी शामिल होते हैं। इनके निर्माण की विशेषता यह है कि ये पौधों और प्लवक यानी कीटों के बीच की अंत:क्रिया से ही बनते हैं। स्वाभाविक है वहां जीवन के बिना ऐसा हो पाना संभव ही नहीं होगा। इसलिए इस शोध या खोज को लेकर दुनिया उत्साहित है। नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के जरिए 120 प्रकाश वर्ष दूर स्थित इस बाह्य ग्रह की खोज से और चौंकाने वाले तथ्यों का पता लगने की संभावना है। खोजकर्ताओं को यहां डाईमिथाइल सल्फाइ (डीएमएस) नाम की गैस मिली। यही गैस धरती पर केवल जैविक प्रक्रिया से बनती है।
इससे लगता है कि उस ग्रह पर जीवन के होने की संभावनाएं प्रबल हैं। यह रसायन एक कार्बनिक यौगिक है, जो ज्वलनशील, रंगहीन और तरल होने के साथ गंध से युक्त होता है। यह कई औद्योगिक प्रक्रियाओं में एक उपयोगी रसायन है, जैसे पेट्रोलियम शोधन और एथिलीन उत्पादन। कुछ शोधों में इसे एलियन रूपी जीवन के संकेत के रूप में भी देखा गया है। इसके पुष्ट कारण भी हैं, क्योंकि यह पृथ्वी पर केवल जीवित जीवों द्वारा निर्मित होता है।
इस खोज से ऐसे ग्रहों के भी रहस्य खुलने का इंतजार है, जहां महासागर जैसा जलमग्न वातावरण और हाइड्रोजन से लबरेज भरपूर वायुमंडल हो। ग्रह के वायुमंडल, संरचना और उसमें जीवन की संभावनाओं पर केंद्रित खगोलशास्त्री मधसूदन की खोज ने अब तक के सारे कयासों और मिथकों से अलग वास्तविकता तथा वैज्ञानिक आधारों को बल दिया है। उन्होंने ही ‘हाईसीन वर्ल्ड’ शब्द सुझाया, जिसका तात्पर्य यह कि ऐसे ग्रहों पर हाइड्रोजन युक्त वातावरण और तरल पानी के महासागर होते हैं।
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दूसरे वैज्ञानिक भी मानते हैं कि ऐसे ग्रहों पर सूक्ष्म जीवों के लिए जी पाना संभव है। इस खोज के निष्कर्ष तक पहुंचने में दो-तीन वर्ष और लग सकते हैं और दुनिया को इसका बेसब्री से इंतजार है। कैंब्रिज विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में भारतीय मूल के वैज्ञानिक मधुसूदन उस जटिल और अनसुलझे सवाल को हल करने में जुटे हैं, जिसका जवाब मानव सदियों से खोज रहा है। यह सवाल हमेशा उठता रहा है कि क्या एलियन वाकई में हैं? लगता है यह खोज इस जटिल और अनसुलझे रहस्य से पर्दा उठा सकती है। मधुसूदन की इस खोज की चर्चा दुनिया भर में हो रही है। इससे पता चलता है कि भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। कमी है तो उन्हें तराशने व प्रतिभा पलायन को रोकने की।
अंतरिक्ष में जीवन की संभावना को लेकर पहले भी खोज व दावे किए जाते रहे हैं। वर्ष 2015 में नासा ने ग्राउंड वाटर आब्जरवेट्रीज की मदद से अनुमान लगाया था कि मंगल ग्रह पर प्राचीन समुद्र में पृथ्वी के आर्कटिक महासागर से भी ज्यादा पानी था। करीब 300 करोड़ साल पहले यह समुद्र गायब हो गया, इसका करीब 87 फीसद पानी गुम हो गया, संभव है कि यह पानी खनिजों में मिल गया हो, या अंतरिक्ष में उड़ गया हो। वैज्ञानिकों का मानना है कि जहां पानी होता है, वहां जीवन की पर्याप्त संभावना होती है।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजंसी नासा ने जेम्स वेब टेलीस्कोप के जरिए पिछले साल एक और बाह्य ग्रह की खोज की थी। वैज्ञानिकों ने इस ग्रह का नाम एलएचएस 1140 बी रखा है। इस पर भी पानी होने और जीवन के लिए पृथ्वी जैसे स्थितियां होने के संकेत मिले हैं। इसी तरह हवाई विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक दल ने अपने अध्ययन में दावा किया है कि शनि ग्रह के सबसे बड़े चंद्रमा टाइटन की ऊपरी ठोस सतह के नीचे मिथेन गैस दबी है। अब तक अध्ययन में पृथ्वी के बाद यह एकमात्र ऐसी जगह मानी जा रही है, जहां वातावरण मौजूद है और तरल पदार्थ नदियों, झीलों और समुद्रों के रूप में मौजूद है। अध्ययन में संभावना जताई गई है कि टाइटन पर किसी न किसी रूप में जीवन मौजूद हो सकता है।