प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूरोपीय देश साइप्रस की यात्रा पर हैं। पीएम मोदी की यात्रा कूटनीतिक रूप से काफी अहम मानी जा रही है क्योंकि 1974 तक इस द्वीपीय देश के एक तिहाई हिस्से पर तुर्की ने कब्जा कर रखा था। ऐसे में 23 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का साइप्रस दौरा तुर्की को स्पष्ट संदेश है। बीते दिनों भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में किए गए ऑपरेशन सिंदूर के बाद तनाव की स्थिति के दौरान तुर्की ने दुश्मन देश का समर्थन किया था। ऐसी स्थिति में भारत-पाकिस्तान तनाव के बाद पीएम मोदी का पहला विदेश दौरा काफी महत्वपूर्ण है।
जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी साइप्रस, कनाडा और क्रोएशिया की यात्रा पर रहने वाले हैं। क्रोएशिया की यात्रा किसी भारतीय प्रधानमंत्री के लिए पहली यात्रा रहने वाली है। साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस के विशेष निमंत्रण पर पीएम मोदी वहां पहुंचे हैं। इस दौरान पीएम के साथ लगभग 100 अधिकारियों का एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल भी पहुंचा है। साइप्रस की यात्रा भारत के दृष्टिकोण से कई मायने में अहम है। जिसमें भू-राजनीतिक, आर्थिक, वैश्विक, रणनीतिक और कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
पिछले 40 सालों में केवल दो भारतीय प्रधानमंत्रियों ने साइप्रस का दौरा किया है। साल 1982 में इंदिरा गांधी और 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने यात्रा की थी। ऐसे में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा दो दशकों के बाद हो रही है। ये यात्रा दोनों देशों के संबंधों और रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने की ओर इशारा कर रही है।
1974 में तुर्की आक्रमण के बाद से ही साइप्रस के साथ उसके रिश्ते सही नहीं हैं। दोनों देशों के बीच चल रहे संघर्ष की मुख्य वजह द्वीप का विभाजन और तुर्की का हमला रहा है। ऐसे में जहां तुर्की-पाकिस्तान के साथ खड़ा नजर आता है तो वहीं प्रधानमंत्री दोनों देशों के बीच विवादित इलाके का दौरा करके तुर्की के विस्तारवादी नीति के खिलाफ साइप्रस के साथ एकजुटता का स्पष्ट संदेश दे रहे हैं। साइप्रस ने जहां आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का समर्थन किया है, वहीं तुर्की पाकिस्तान की सहयोगी भूमिका में खड़ा नजर आया।
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तुर्की और सीरिया के करीब और पूर्वी भूमध्य सागर में स्थित साइप्रस भौगोलिक रूप से भले ही एशिया में आता हो लेकिन उसकी मान्यता यूरोपीय संघ के सदस्य के रूप में है। साइप्रस की जरिए भारत भूमध्य सागर तक अपनी पहुंच को मजबूत करना चाहता है। इसके साथ ही साइप्रस यूरोप के साथ संपर्क के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
भारत और यूरोप को जोड़ने तथा भारत और मध्य-पूर्व यूरोप गलियारे को मजबूत करने में साइप्रस महत्वपूर्ण हो सकता है। ऐसे में पीएम मोदी की इस यात्रा का उद्देश्य साइप्रस को रणनीतिक आर्थिक गलियारे में मजबूती से शामिल करना है।
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साइप्रस और तुर्की के बीच संघर्ष की मुख्य वजह ये है कि साइप्रस पूर्वी भूमध्य सागर में प्राकृतिक गैस का एक प्रमुख केंद्र है। ऐसे में साइप्रस को संभावित ऊर्जा साझेदार बनाना भारत के ऊर्जा स्रोतों में विविधता के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण है।
साल 2026 में साइप्रस यूरोपीय संघ की अध्यक्षता संभलने जा रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा व्यापार, सुरक्षा के साथ-साथ कई अन्य मुद्दों पर भारत और यूरोपीय संघ के बीच सहयोग की राह आसान करेगा। इसके साथ ही यूरोपीय संघ में साइप्रस के प्रभाव को बढ़ावा मिलेगा। वहीं यूरोपीय संघ के सदस्य के रूप में साइप्रस समूह के भीतर भारत के हितों की बात महत्वपूर्ण तरीके से रख सकता है। इस साल के अंत में यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार के लिए होने वाले समझौते को लेकर भी साइप्रस की भूमिका भारत के लिए महत्वपूर्ण होगी।