Israel Iran Conflict: ईरान और इजरायल के बीच जैसे ही संघर्ष शुरू हुआ तो सबसे बड़ी चिंता यही सामने आई कि इसका भारत और दुनिया भर के शेयर बाजारों पर क्या असर पड़ेगा? क्या इससे महंगाई बढ़ जाएगी? क्या इससे गैस और कच्चे तेल की कीमतें बढ़ जाएंगी क्योंकि ईरान के पास तेल और गैस का बड़ा भंडार है।

बता दें कि 13 जून को जब इजरायल ने पहली बार ईरान पर हमला किया तो उसके बाद से अब तक भारत के शेयर बाजारों पर इसका खास असर नहीं दिखाई दिया है।

जैसे- 12 जून को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर सेंसेक्स 81,691.98 पर बंद हुआ था। पिछले पांच दिनों (तीन कारोबारी सत्रों) में यह लगभग उसी स्तर पर बना रहा और मंगलवार को 81,583 पर बंद हुआ। यानी दोनों देशों के बीच लड़ाई शुरू होने के बाद सेंसेक्स सिर्फ 108 अंक यानी 0.13% ही गिरा।

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US Energy Information Administration (EIA) के अनुसार, 2023 तक ईरान के पास दुनिया भर के तेल भंडार का 12% हिस्सा था और यह वेनेजुएला और सऊदी अरब के बाद तीसरा सबसे बड़ा हिस्सा है। ईरान के पास रूस के बाद दुनिया भर में दूसरा सबसे बड़ा नेचुरल गैस का भंडार भी है।

13 जून को जब से दोनों देशों के बीच लड़ाई शुरू हुई है, कच्चे तेल की कीमतों में लगभग 11% की बढ़ोतरी हुई है। 12 जून को यह 67.34 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर मंगलवार को लगभग 74.6 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई। कई ग्लोबल फाइनेंशियल फर्म का ऐसा अनुमान है कि अगर यह संकट जारी रहता है तो तेल की कीमतें $100 प्रति बैरल को पार कर सकती हैं।

अब फिर से उसी सवाल पर आते हैं कि तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से भारत के बाजारों पर क्या असर होगा? एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसके पीछे वजह भारत की अच्छी आर्थिक स्थिति, महंगाई का नियंत्रण में होना और ईरान के साथ कोई विशेष महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध ना होना है। हां, ऐसे हालात में चिंता बढ़ सकती है जब इजरायल-ईरान के तेल प्रतिष्ठानों को निशाना बनाए, जो उसने अभी तक नहीं किया है।

ICICI सिक्योरिटीज के रिसर्च प्रमुख पंकज पांडे कहते हैं, “अगर ईरान के तेल ठिकानों पर हमला होता है तब तेल की कीमतों को लेकर चिंता बढ़ सकती है और अगर चीन को होने वाली सप्लाई पर असर होगा तब भी कीमतों में उछाल आ सकता है। भारत में महंगाई नियंत्रित स्थिति में है इसलिए बाजारों में चिंता जैसी कोई बात नहीं है।”

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बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि भारत की आर्थिक स्थिति पर इस युद्ध का असर तब होगा जब कच्चे तेल की कीमतें काफी ज्यादा बढ़ जाएंगी जिससे आयात बिल बढ़ेगा, आर्थिक स्थिति को नुकसान होगा और थोक मूल्य सूचकांक (WPI) महंगाई बढ़ जाएगी। अभी जो कच्चे तेल की कीमत 10% तक बढ़ी है, इसके लिए साइकोलॉजिकल फैक्टर जिम्मेदार हैं।

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एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि क्योंकि भारत सरकार बफर की सुविधा देती है इसलिए अगर वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती भी हैं तो भी खुदरा कीमतों और consumer price index (CPI) महंगाई पर इसका असर नहीं होगा। बताना होगा कि मई में भारत का wholesale price index (WPI) गिरकर 14 महीने के निचले स्तर 0.39% पर आ गया। अप्रैल में यह 0.85% था।

यहां यह भी समझना जरूरी होगा कि तेल की कीमत भारतीय इकनॉमी पर क्या असर डालती है?

भारत अपनी तेल की जरूरत का लगभग 85% हिस्सा आयात करता है। भारत के कुल आयात बिल में तेल आयात की हिस्सेदारी 25% से ज्यादा है। अगर तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो इससे चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) बढ़ सकता है। कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से LPG और कैरोसिन पर दी जाने वाली सब्सिडी को भी बढ़ाना होगा और इससे सरकार के द्वारा सब्सिडी पर दिया जाने वाला खर्च बढ़ेगा।

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