प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर मेक इन इंडिया का जिक्र करते हैं। पीएम मोदी अपने कई भाषणों में मेक इन इंडिया के फायदे भी बता चुके हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि मेक इन इंडिया की तरह ही चीन भी मेड इन चाइना 2025 की योजना चला रहा है। हाल ही में फॉक्सकॉन टेक्नोलॉजी ग्रुप ने भारत में अपने iPhone कारखानों से सैकड़ों चीनी इंजीनियरों और टेक्नीशियन को घर वापस जाने के लिए कहा है।
Apple ने iPhone उत्पादन के लिए भारत को एक प्रमुख बाजार के रूप में पहचाना है। कंपनी वर्तमान में भारत में सभी iPhone का लगभग 15% उत्पादन करती है, जिसे आने वाले वर्षों में एक चौथाई यानी 25 फीसदी तक बढ़ाने की योजना है। भारत में कंपनी का असेंबली ऑपरेशन सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की एक महत्वपूर्ण सफलता की कहानी रही है।
‘मेक इन इंडिया’ पहल सितंबर 2014 में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य भारत को विनिर्माण, डिजाइन और इनोवेशन का केंद्र बनाना था। एक साल बाद चीन ने अपनी खुद की ‘मेड इन चाइना 2025’ योजना शुरू की। मेक इन इंडिया के विपरीत (जिसके बारे में भारत सरकार नियमित रूप से बात करती है) ‘मेड इन चाइना 2025’ का नारा कुछ सालों में सार्वजनिक चर्चा से लगभग गायब हो गया। हालांकि विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) ने हाल ही में चीन की नीति का जायजा लिया है और इसमें भारत से महत्वपूर्ण बातें हैं। ‘मेड इन चाइना 2025’ क्या है, यह कितना सफल रहा है और चीनी इसके बारे में शायद ही कभी बात क्यों करते हैं?
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2015 में जारी ‘मेड इन चाइना 2025’ अगले 10 वर्षों के लिए चीन के विनिर्माण क्षेत्र का खाका था। जबकि चीन तब तक पहले से ही दुनिया का कारखाना था, इस नीति का उद्देश्य उत्पादों, प्रौद्योगिकी और इनोवेशन दोनों के संदर्भ में हाइयर वैल्यू वाले विनिर्माण का विस्तार करना था।
पिछले हफ्ते की WEF रिपोर्ट में कहा गया है, “2015 में पहली बार घोषित, मेड इन चाइना 2025 (MIC2025) ने चीन की औद्योगिक महत्वाकांक्षाओं की गति और तेजी से निर्धारित की। आज, यह रणनीति एक नए चरण में प्रवेश कर रही है।
जनवरी में द इकोनॉमिस्ट में छपे एक लेख में बहुत ही स्पष्ट रूप से कहा गया है, “हैरी पॉटर के लॉर्ड वोल्डेमॉर्ट की तरह मेड इन चाइना 2025 एक ऐसी पहल है जो विदेशों में इतना डर और घृणा पैदा करती है कि चीनी अधिकारी इसका नाम लेने की हिम्मत नहीं करते।” ऐसा इसलिए है क्योंकि दस्तावेज़ में कई नीतियों को व्यापक रूप से चीनी कंपनियों को अनुचित लाभ देने और अन्य देशों की फर्मों के लिए बहुत अधिक बाधाए डालने के रूप में देखा जाता है। चीनी सरकार अपने उद्योगों को पूंजीगत व्यय, आसानी से उपलब्ध लोन, टैक्स राहत आदि के साथ भारी समर्थन देती है। इससे वे सस्ते में सामान बना पाते हैं, जिसे वे दुनिया भर में निर्यात करते हैं। सस्ते चीनी सामानों से भारत के बाज़ारों का भर जाना इसका एक उदाहरण है। दूसरी ओर चीन विदेशी फर्मों के लिए वहां व्यापार करने के लिए कड़ी शर्तें रखता है। अक्सर कंपनियों को चीन में प्रवेश की अनुमति तभी दी जाती है जब वे तकनीकी विशेषज्ञता और जानकारी के साथ आती हैं।
जब ‘मेड इन चाइना 2025’ जारी किया गया, तो कई देशों, खासकर पश्चिमी देशों ने इसके प्रस्तावित उपायों पर आपत्ति जताई। प्रतिबंधों या निर्यात प्रतिबंधों जैसी कार्रवाई के डर से चीन ने नीति के बारे में बात करना बंद कर दिया।
WEF की रिपोर्ट के अनुसार, “चीन अब प्रमुख ग्रीन टेक्नोलॉजी पर हावी है। चीन में ग्लोबल लिथियम-आयन बैटरी निर्माण का 75% से अधिक हो रहा है और सौर मॉड्यूल उत्पादन का लगभग 80% वहीं हो रहा है। इसके अलावा चीन दुनिया के इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन में भी काफी आगे है। हाई-स्पीड रेल इंजीनियरिंग कौशल का प्रदर्शन बन गई है। रोबोटिक्स और सेंसर प्रौद्योगिकियों में भी चीन ने तेजी से प्रगति की है।”
वास्तव में केवल प्रमुख क्षेत्र जहां चीन अपने लक्ष्यों से पीछे रह गया है, वे हैं सेमीकंडक्टर बनाना और यात्री विमान बनाना। दूसरी नकारात्मक बात यह रही कि विनिर्माण पर अत्यधिक ध्यान देने के कारण चीन ने अर्थव्यवस्था के मांग पक्ष की उपेक्षा की और अपने सर्विस सेक्टर को उसकी पूरी क्षमता तक विकसित नहीं किया। इस प्रकार मेड इन चाइना 2025 की कहानी भारत के लिए कई सबक रखती है। भारत का सर्विस सेक्टर अच्छी तरह से विकसित है, लेकिन विनिर्माण में उसे अभी लंबा रास्ता तय करना है।