बौद्ध धर्म गुरु और 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो 6 जुलाई को 90 वर्ष के हो जाएंगे। दलाई लामा अपने पुनर्जन्म पर एक बयान देंगे। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA) के कैबिनेट के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर समधोंग रिनपोछे और सीटीए के सिक्योंग या राजनीतिक नेता पेनपा त्सेरिंग उनका संदेश पढ़ेंगे। अब यह जानना जरूरी है कि आध्यात्मिक नेता और तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रमुख 14वें दलाई लामा का यह जन्मदिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण क्यों है?

दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई, 1935 को उत्तर-पूर्वी तिब्बत (अब चीन के किंघई प्रांत) के तक्त्सेर नामक गांव में हुआ था। 2 वर्ष की आयु में उन्हें 13वें दलाई लामा थुबतेन ग्यात्सो के पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया था। चीन में कम्युनिस्टों के सत्ता में आने के एक साल बाद पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने तिब्बत पर आक्रमण किया। 1951 में तिब्बत पर चीन ने कब्ज़ा कर लिया और मार्च 1959 में तिब्बती राष्ट्रीय विद्रोह को चीनी सैनिकों ने कुचल दिया।

मार्च 1959 में दलाई लामा अपने अनुयायियों के एक समूह के साथ ल्हासा से भाग निकले और अरुणाचल प्रदेश के खेंजीमाने में भारत में प्रवेश किया। 1960 में जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने उन्हें धर्मशाला के मैकलोडगंज में बसाया, जहां निर्वासित तिब्बती सरकार की स्थापना की गई। 14 मार्च 2011 को दलाई लामा ने तिब्बती पीपुल्स डेप्युटीज की असेंबली को पत्र लिखा, जिसे निर्वासित तिब्बती संसद के रूप में जाना जाता है। निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेता को राजनीतिक सत्ता का औपचारिक हस्तांतरण उस वर्ष 29 मई को हुआ, जिससे 368 साल पुरानी परंपरा समाप्त हो गई। इस दौरान दलाई लामा तिब्बतियों के आध्यात्मिक और राजनीतिक दोनों प्रमुख थे।

Dalai Lama: कौन होगा अगला तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा? जानिए क्या है पूरी प्रक्रिया

दलाई लामा (जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ज्ञान का सागर, अवलोकितेश्वर या चेनरेज़िग) और इन्हें तिब्बत के संरक्षक संत का अवतार माना जाता है। बोधिसत्व वे व्यक्ति हैं जो बुद्ध बनने के मार्ग पर हैं, लेकिन जो स्वयं निर्वाण में प्रवेश करने से पहले अन्य संवेदनशील प्राणियों की मुक्ति को प्राथमिकता देते हैं।

दलाई लामा की संस्था तिब्बती बौद्ध धर्म में तुल्कु अवधारणा का हिस्सा है, जिसमें आध्यात्मिक गुरुओं को उनकी मृत्यु के बाद पुनर्जन्म दिया जाता है। ऐसा इसलिए ताकि उनकी शिक्षाओं को संरक्षित किया जा सके और आगे बढ़ाया जा सके। पहले दलाई लामा गेदुन द्रुपा का जन्म 1391 में हुआ था। वंश के पांचवें लोबसंग ग्यात्सो (1617-82) से शुरू होकर, दलाई लामा तिब्बती बौद्धों के आध्यात्मिक और राजनीतिक नेता दोनों बन गए।

वर्तमान दलाई लामा को 1939 में एक खोज दल द्वारा खोजा गया था। 13वें दलाई लामा थुप्टेन ग्यात्सो के 1933 में निधन के छह साल बाद उन्हें खोजा गया। पुनर्जन्म को कई संकेतों से पहचाना गया, जिसमें एक वरिष्ठ भिक्षु को दिखाई गई दृष्टि भी शामिल थी। 1940 में छोटे बालक को ल्हासा के पोताला पैलेस में ले जाया गया और आधिकारिक रूप से सिंहासन पर बैठाया गया।

1969 से ही दलाई लामा कहते रहे हैं कि उनके पुनर्जन्म को मान्यता दी जाए या नहीं, यह तिब्बती लोगों, मंगोलों और हिमालयी क्षेत्र के लोगों को तय करना है। 24 सितंबर 2011 को जारी एक बयान में उन्होंने कहा, “जब मैं लगभग 90 साल का हो जाऊंगा तो मैं तिब्बती बौद्ध परंपराओं के उच्च लामाओं, तिब्बती जनता और तिब्बती बौद्ध धर्म का पालन करने वाले अन्य संबंधित लोगों से सलाह लूंगा और इस बात का पुनर्मूल्यांकन करूंगा कि दलाई लामा की संस्था को जारी रखना चाहिए या नहीं। उसके आधार पर हम कोई फैसला लेंगे।”

इस बयान की वजह से ही दलाई लामा का आने वाला जन्मदिन 6 जुलाई को महत्वपूर्ण हो गया है, जब वे 90 साल के हो जाएंगे। बयान में कहा गया है कि अगर यह तय किया जाता है कि दलाई लामा का पुनर्जन्म जारी रहना चाहिए और 15वें दलाई लामा को मान्यता दिए जाने की ज़रूरत है, तो ऐसा करने की ज़िम्मेदारी मुख्य रूप से दलाई लामा के गादेन फोडरंग ट्रस्ट के संबंधित अधिकारियों पर होगी।

सोमवार को दलाई लामा ने कहा, “कुछ ऐसा ढांचा होगा जिसके भीतर हम दलाई लामाओं की संस्था को जारी रखने के बारे में बात कर सकते हैं।” चीन 14वें दलाई लामा को विभाजनकारी, देशद्रोही और निर्वासित के रूप में निंदा करता है, जिसे तिब्बती लोगों का प्रतिनिधित्व करने का कोई अधिकार नहीं है।

अपने 2011 के बयान में दलाई लामा ने कहा था कि उनका पुनर्जन्म एक स्वतंत्र देश में होना चाहिए, न कि चीनी नियंत्रण में। उन्होंने यह भी कहा कि चीनी सरकार द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों के लिए चुने गए पुनर्जन्म को कोई मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। इस मार्च में प्रकाशित अपनी पुस्तक वॉयस फॉर द वॉयसलेस में दलाई लामा ने कहा कि उनका उत्तराधिकारी चीन के बाहर पैदा होगा। तिब्बतियों में यह डर है कि जैसे-जैसे दलाई लामा बड़े होते जाएंगे, चीन अपनी पसंद के उत्तराधिकारी की घोषणा कर सकता है, और इसका इस्तेमाल तिब्बती बौद्ध धर्म और संस्कृति पर अपना नियंत्रण मजबूत करने के लिए कर सकता है।

2004 में चीनी सरकार ने दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया निर्धारित करने वाले धार्मिक मामलों के नियमों को समाप्त कर दिया। चीन ने 2007 में आदेश दिया कि कोई भी समूह या व्यक्ति आत्मा की खोज और पहचान से संबंधित गतिविधियां नहीं कर सकता है। दलाई लामा का चयन करने के लिए गोल्डन अर्न विधि नामक लॉटरी की व्यवस्था की गई। 2015 में तिब्बती जातीयता के एक रिटायर्ड चीनी राजनीतिज्ञ और तिब्बत की पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति के अध्यक्ष पद्मा चोलिंग ने दलाई लामा के इस आग्रह पर आपत्ति जताई कि किसी भी सरकार को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए अगले दलाई लामा को चुनने का अधिकार नहीं है।