Bihar Elections: मैं बिहार हूं, राजनीति का हर खेल, हर प्रयोग मैंने देख रखा है, जातियों का जंजाल हो, वोटबैंक की बात हो, मैंने सब बहुत अच्छे से डीकोड किया है। लेकिन एक ऐसे नेता भी हैं जिनके इतने रंग हैं कि आज भी उनकी असल पर्सनालिटी समझना मेरे लिए मुश्किल है। लालू यादव उनका नाम है, मैंने तीन बार उन्हें मुख्यमंत्री बनाया है, क्या निराली उनकी राजनीति रही है, अलग ही अंदाज, अलग ही तेवर। एक किस्सा याद आता है जब उनकी पत्नी ने पहली बार उन्हें ‘साहेब’ कहकर पुकारा था। मैं बिहार हूं और आज सत्ता का वहीं अनसुना किस्सा बताता हूं-

बात 1995 की है, बिहार में विधानसभा चुनाव हुए और लालू यादव की जबरदस्त जीत हुई, जीत के मायने ज्यादा इसलिए रहे क्योंकि तब के चुनाव आयोग रहे टीएन शेषन कसम खा चुके थे कि चुनाव में किसी भी तरह की धांधली नहीं होने देंगे, कितनी बार भी चुनाव की तारीख आगे ना बढ़ानी पड़ जाए, लेकिन चुनावों को पूरी तरह निष्पक्ष रखा जाएगा। चार बार तो वे ऐसा कर भी चुके थे, हर बार तब के सीएम लालू यादव को फैक्स के जरिए बता देते- तारीखे आगे बढ़ा दी गई हैं।

अब लालू तो लालू रहे, कब तक सहन करते रहते, उन्होंने एक दिन अपने ही अंदाज में टीएन शेषन को लेकर कह दिया- शेषन पगला सांड जैसा कर रहा है, उसे मालूम नहीं है कि हम रस्सा बांधके खटाल में बांधकर रख सकते हैं। अब लालू चुनाव पोस्टपोन होने की वजह से इतने ज्यादा गुस्सा थे कि उन्होंने एक कॉल उस समय के राज्य के चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर आरजेएम पिल्लई को भी मिला दिया। ना आव देखा ना ताव और सीधे धमकी देते हुए लालू ने बोला-

ई जी पिल्लई, हम तुमहरा चीफ मिनिस्टर है और तुम हमरा अफसर, ई शेषणवा कहां से बीच में टपकता रहता है। ये हमे फैक्स मेसेज भेजता है, ई अमीरों का खिलौना लेकर तुम लोग गरीब लोगों के खिलाफ कॉन्सपिरेसी कर रहे हो, सब फैक्स-फूक्स उड़ा देंगे, इलेक्शन हो जाने दो

अब लालू भी अपने उस चुनाव में विपक्ष से ज्यादा शेषन से डर रहे थे, उन्हें लग रहा था कि जितनी सख्ती कर रखी है, पता चले गरीब आदमी वोट देने ही ना निकले। अब लालू का सारा वोट तो गरीब और यादव जाति के बीच में था, इसी वजह से जब चुनावों की तारीफ बार-बार पोस्टपोन हो रही थी, उनका डर भी बढ़ रहा था। लेकिन चुनाव के नतीजे आए और लालू ने इतिहास रच दिया। बिहार में दूसरी बार ऐसा हुआ जब एक सिटिंग चीफ मिनिस्टर ने दोबारा चुनाव जीता और सरकार बनाई। एक रहे थे कांग्रेस के श्रीकृष्ण सिंह और दूसरे बन गए लालू यादव।

बिहार के पहले चुनाव की कहानी

अब लालू 1995 का चुनाव जीते, जश्न का माहौल था, लेकिन उनके घर में राबड़ी देवी अलग ही ख्यालों में खोई थीं। उनके मन में चल रहा था कि अब वे लालू को क्या कहकर संबोधित करेंगी। यह सवाल इसलिए क्योंकि इससे पहले तक तो वे लालू को सिर्फ ‘ईह’ कहकर पुकारती थीं। बिहार में आज भी ज्यादातर महिलाएं अपने पति को ऐसे ही संबोधित करती हैं। लालू और राबड़ी देवी की शादी 1973 में हुई थी। उस समय राबड़ी की उम्र सिर्फ 14 साल थी, उस समय लालू भी राजनीति में कोई नाम नहीं कमा पाए थे।

उस जमाने में वे पटना वेटनरी कॉलेज में काम किया करते थे, उनके पास क्लर्क की नौकरी थी। टेबलों पर चाय रखने से लेकर एक फाइल को दूसरी जगह पहुंचाने तक का काम उनके पास रहता था। अब इस काम में ना तो कोई ऐसा सम्मान था और ना ही रुतबा, ऐसे में राबड़ी के पास भी कोई कारण नहीं था कि वे उन्हें किसी दूसरे नाम से संबोधित करतीं, ऐसे में ‘ईह’ बोलने का सिलसिला चलता रहा। 22 साल ऐसे ही गुजर गए, परिवार बढ़ता गया, लालू धीरे-धीरे राजनीति में चमकते गए और फिर 1995 में दूसरी बार बिहार का चुनाव जीते, राज्य के मुख्यमंत्री बने।

बिहार के दूसरे चुनाव की कहानी

अब चुनाव तो लालू 1990 में भी जीत गए थे, पहली बार सीएम बने, लेकिन उस समय राबड़ी को नहीं लगा कि उनका नाम बदलने की जरूरत है। लेकिन इतनी समझ तो राबड़ी भी रखती थीं कि कई कारणों से 1995 का चुनाव ज्यादा मुश्किल था, वहां चुनौती ज्यादा बड़ी थी। इसी वजह से जब लालू ने फिर सीएम कुर्सी संभाल ली, फिर उन्होंने अप्रत्याशित जीत दर्ज की, राबड़ी बेचैन हो गईं, वे सोचती रहीं कि अब लालू को सम्मान से क्या पुकारें। बस उसी सोच का नतीजा रहा कि लालू यादव को ‘साहेब’ का तमगा मिल गया। राबड़ी देवी के लिए लालू इसके बाद हमेशा से ही ‘साहेब’ बनकर रह गए। बाद में सीएम की कुर्सी गई, चुनाव में पार्टी हारी भी, लेकिन कभी भी ‘साहेब’ का तमगा नहीं छिना।

(Reference: Sankarshan Thakur की किताब The Brothers Bihari)

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