India Afghanistan Taliban Relations: रूस अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता देने वाला पहला देश बन गया है। करीब चार साल पहले जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया और सत्ता में आए, तब से अब तक यह उनकी सबसे बड़ी कूटनीतिक सफलता मानी जा रही है। अफगानिस्तान के कार्यकारी विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है रूस का ये कदम बाकी देशों के लिए मिसाल बनेगा, जो अब तक तालिबान की सरकार को मान्यता देने से बचते आ रहे थे। उन्होंने रूस के फैसले को ‘साहसी कदम’ बताया है।
रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा कि वह इस फैसले से ‘ऊर्जा, परिवहन, कृषि और बुनियादी ढांचे में व्यापारिक और आर्थिक’ सहयोग की संभावना देखता है। अब देखने होगा कि रूस के इस फैसले से भारत समेत अन्य देशों का तालिबान सरकार के प्रति क्या रुख रहता है। क्या ये देश भी उसे मान्यता देंगे।हालांकि, इस फैसले की कई लोगों ने आलोचना भी की है।
अफगानिस्तान की पूर्व सांसद फौजिया कूफी ने कहा, ऐसे कदम सिर्फ अफगानिस्तान के लोगों को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकते हैं। वहीं, अफगान वीमेन पॉलिटिकल पार्टिसिपेशन नेटवर्क ने कहा कि इससे ऐसी सत्ता को मान्यता मिलती है जो तानाशाही शासन चला रही है। महिलाओं के खिलाफ है और बुनियादी नागरिक अधिकारों को लगातार खत्म कर रही है।
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अभी तक तालिबान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग माना जाता था, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि रूस के इस कदम ने अब तक बनी वैश्विक सहमति में दरार डाल दी है। अब तक ऐसा माना जाता था कि तालिबान को औपचारिक मान्यता दिए बिना भी सीमित बातचीत करके अपने हित साधे जा सकते हैं, लेकिन रूस ने सीधे मान्यता देकर इस सोच को चुनौती दे दी है।
वाशिंगटन स्थित थिंक-टैंक विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन एक्स पर लिखते हैं, अगला नंबर चीन का हो सकता है। अब तक दुनिया में एक आम सहमति थी कि देश अपने हितों के लिए तालिबान से बात तो कर सकते हैं, लेकिन औपचारिक रिश्ता बनाने की जरूरत नहीं है। लगता है अब ये सहमति टूटने लगी है। चीन ने रूस के फैसले का स्वागत किया है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा है, अफगानिस्तान हमारा पारंपरिक मित्र और पड़ोसी है। चीन हमेशा मानता रहा है कि अफगानिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग नहीं किया जाना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों की विशेषज्ञ स्वस्ति राव कहती हैं कि भारत ने तालिबान को फिलहाल औपचारिक मान्यता नहीं दी है। उन्होंने कहा, भारत की पूरी दुनिया में हमेशा से यही शैली रही है, तो वह अचानक कैसे तालिबान को मान्यता दे देगा? भारत ऐसा नहीं करेगा, क्योंकि भारत अमेरिका और यूरोपियन यूनियन से भी अपने रिश्ते बनाए रखना चाहता है। भारत की इस सतर्कता के पीछे पश्चिमी देशों के साथ उसके व्यापक व्यापारिक और कूटनीतिक हित भी हैं।
उन्होंने कहा, भारत थोड़ा हिचकता है क्योंकि वह चाहता है कि अमेरिका और यूरोप के साथ उसके रिश्ते बने रहें। भले ही भारत ने तालिबान को औपचारिक मान्यता नहीं दी, लेकिन उसने अफगानिस्तान के साथ ‘एंगेज विदाउट रिकाग्निशन’ (यानी औपचारिक मान्यता दिए बिना संपर्क बनाए रखना) की पालिसी जारी रखी है।
इसी साल मई में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगानिस्तान के कार्यकारी विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी से फोन पर बात की थी। यह पहली बार था कि भारत के विदेश मंत्री ने तालिबान के विदेश मंत्री से बातचीत की और सार्वजनिक तौर पर बयान जारी किया। दरअसल, भारत काबुल में एक समावेशी सरकार के गठन की वकालत करता रहा है। हाल के महीनों में भारत और तालिबान के बीच संपर्क बढ़ा है। जनवरी में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने दुबई में अमीर खान मुत्ताकी से मुलाकात की थी।
अगस्त 2021 में जब अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान ने दोबारा कब्जा किया था, उस वक्त इसे भारत के लिए कूटनीतिक और रणनीतिक झटके के रूप में देखा गया था। ऐसा लग रहा था कि भारत ने अफगानिस्तान में जो अरबों डालर के निवेश किए हैं, उन पर पानी फिर जाएगा। भारत ने अफगानिस्तान में 500 से अधिक परियोजनाओं पर करीब तीन अरब डालर का निवेश किया है, जिनमें सड़कें, बिजली, बांध और अस्पताल तक शामिल हैं।
जब रूस तालिबान को मान्यता दे चुका है और चीन पहले ही तालिबान के साथ गहरे कारोबारी और राजनीतिक रिश्ते बना रहा है, ऐसे में जानकार मानते हैं कि भारत के सामने दो विकल्प हैं। या तो वह इसी ‘एंगेज विदाउट रिकग्निशन’ की नीति को कुछ समय और जारी रखे, या फिर धीरे-धीरे औपचारिक मान्यता की तरफ बढ़े।
जेएनयू के स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज की पूर्व डीन अनुराधा चिनाय कहती हैं कि भारत का अफगानिस्तान से कभी भी हितों का टकराव नहीं रहा। भारत ने अफगानिस्तान को कई विकास योजनाओं में मदद दी है। तालिबान शासन भी भारत को लेकर अपेक्षाकृत नरम रहा है। दोनों देशों में एक सकारात्मक छवि बनी रहती है। कुल मिलाकर अफगानिस्तान कूटनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक, तीनों ही नजरिए से भारत के लिए अहम है।
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