Delhi Polls: दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 5 फरवरी को मतदान होगा। जबकि 8 फरवरी को परिणाम घोषित किए जाएंगे। दिल्ली में इस बार आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की बीच कांटे की टक्कर है। हालांकि, कांग्रेस इस फाइट में ज्यादा पास नजर नहीं आती है, लेकिन इतना जरूर है कि जहां मुस्लिम मतदाता ज्यादा हैं, वहां आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच टक्कर देखने को मिल सकती है। ऐसे में सवाल उठता है कि जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है। उन सीटों पर बीजेपी को क्या-कुछ हासिल होगा? अगर कहीं इन सीटों पर बीजेपी कुछ कमाल नहीं कर पाती है तो उसके लिए सत्ता पाना मुश्किल सा लगता है।
दिल्ली के चुनावों में मुस्लिम वोटरों की हमेशा से एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मुस्लिम वोटर कई निर्वाचन क्षेत्रों में निर्णायक साबित होते हैं। उनकी एकजुटता हमेशा से दिल्ली चुनाव परिणामों पर असर डालती है। दिल्ली में लगभग 21 लाख मुस्लिम मतदाता हैं। दिल्ली में 10-12 मुस्लिम बहुल इलाके हैं। इन 10-12 सीटों पर मुस्लिम वोटर ही तय करते हैं कि चुनाव कौन जीतेगा। 2013 विधानसभा चुनाव की बात करें तो इन 12 सीटों में से दो (बाबरपुर, करावल नगर) ही सीटें बीजेपी के खाते में आई थीं। लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी वो दिल्ली में सरकार बनाने में विफल रही थी।
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मुस्लिम मतदाता आमतौर पर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP) और अन्य छोटे दलों को समर्थन देते रहे हैं। यह मतदाता बीजेपी के कोर वोटर नहीं माने जाते हैं। जब से दिल्ली में भाजपा का चुनावी प्रदर्शन बढ़ा है, मुस्लिम समुदाय की वोटिंग पैटर्न में भी बदलाव देखा गया है।
दिल्ली की 6 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम समुदाय गेमचेंजर साबित होते हैं। सीलमपुर (50%) , मटिया महल (48%) , ओखला (43%) , मुस्तफाबाद (36%) , बल्लीमारान (38%), बाबरपुर (35%) सीट है। 2020 के विधानसभा चुनावों में आप ने इन सभी छह सीटों पर जीत हासिल की थी। इन छह सीटों के अलावा भी दिल्ली में छह सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या अच्छी और वो चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इनमें प्रमुख रूप से- सीमापुरी (25%), गांधीनगर (22%), चांदनी चौक (20%), सदर बाजार (20%), विकासपुरी (20%), कारावल नगर (20%) विधानसभा सीटें हैं।
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इन सीटों के अलावा बावना , जामिया नगर, शहदरा इन सीटों पर भी मुस्लिम समुदाय का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। दिल्ली चुनावों में आप, कांग्रेस और अन्य दल मुस्लिम वोटरों को आकर्षित करने के लिए विशेष रणनीतियां अपनाते हैं। AAP और कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्रों में मुस्लिम समुदाय के हितों का ध्यान रखने का वादा किया है।
आम आदमी पार्टी ने अक्सर दावा करते है कि उसने मुस्लिम समुदाय की भलाई के लिए कई योजनाओं को लागू किया है। अब आने वाले चुनाव में देखना होगा कि दिल्ली के मुस्लिम वोटर आप या कांग्रेस किसका साथ देते हैं। इस बार दिल्ली में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) भी चुनाव लड़ रही है। ऐसे में ये आप और कांग्रेस के वोट शेयर में सेंध लग सकती है।
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