अमेरिका में रह रहे 104 अवैध प्रवासी भारतीय बुधवार को भारत लौटे। अमेरिकी C-147 प्लेन से अवैध प्रवासी भारतीयों का पहला जत्था भारत पहुंचा। इन निर्वासित भारतीय अप्रवासियों को लेकर एक सैन्य विमान बुधवार दोपहर अमृतसर के श्री गुरु रामदास जी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा। विमान में निर्वासित व्यक्तियों में 25 महिलाएं, 12 नाबालिग और 79 पुरुष थे इन निर्वासितों में पंजाब के साथ ही हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के लोग शामिल थे।

निर्वासित लोगों में 33 गुजरात के हैं, 30 पंजाब के हैं जबकि दो-दो निर्वासित उत्तर प्रदेश और चंडीगढ़ से हैं और तीन महाराष्ट्र से हैं। ये सभी भारतीय अवैध तरीके से अमेरिका जाने के लिए ज्यादातर डंकी रूट (Donkey Route) का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या है डंकी रूट और कितना बड़ा है इसका नेटवर्क?

डंकी रूट का मतलब है दुनिया भर में किसी जगह तक पहुंचने के लिए लंबे-घुमावदार और अक्सर खतरनाक रास्ते अपनाना। किसी देश में प्रवास करने के लिए ये कठिन यात्राएं आवश्यक कानूनी परमिट या वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण की जाती हैं। दिल्ली पुलिस की आईजीआई इकाई के विश्लेषण के अनुसार, यात्रियों को उन देशों में भेजा जाता है, जहां वीजा-ऑन-अराइवल की सुविधा है और फिर उन्हें अवैध सीमा पार करके उनके गंतव्य देशों में भेज दिया जाता है।

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अधिकारियों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि फर्जी शेंगेन वीजा वाले यात्रियों को अजरबैजान या कजाकिस्तान जैसे अपेक्षाकृत सुलभ यूरोपीय देशों में भेजा जाता है। वहां से,उन्हें ग्वाटेमाला और कोस्टा रिका जैसे मध्य अमेरिकी या कैरेबियाई देशों के रास्ते अमेरिका भेजा जाता है।

एक अन्य डंकी रूट में पर्यटक वीजा पर तुर्की जाना या वीजा-ऑन-अराइवल पर कजाकिस्तान जाना और वहां से रूस के लिए रूट लेना शामिल है। कुछ मामलों में, यात्री मेक्सिको जाने से पहले नकली शेंगेन वीज़ा प्राप्त कर लेते हैं, जहां उन्हें अराइवल पर वीज़ा मिल जाता है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यहां से वे डंकी रूट लेते हैं जो बॉर्डर पॉइंट्स से होकर कई किलोमीटर की यात्रा करके अमेरिका पहुंचते हैं।

भारत से सबसे लोकप्रिय डंकी रूट में पहला कदम लैटिन अमेरिकी देश तक पहुंचना है। इक्वाडोर, बोलीविया और गुयाना जैसे देशों में भारतीय नागरिकों के लिए आगमन पर वीजा की सुविधा है। ब्राजील और वेनेजुएला सहित कुछ अन्य देश भारतीयों को आसानी से पर्यटक वीजा देते हैं। प्रवासी का मार्ग इस बात पर भी निर्भर करता है कि उसके एजेंट के किन देशों में मानव तस्करी नेटवर्क से संबंध हैं। लैटिन अमेरिकी देशों तक पहुंचना कठिन नहीं है। हालांकि, इसमें महीनों लग सकते हैं।

कुछ एजेंट दुबई से मेक्सिको के लिए सीधे वीज़ा की व्यवस्था करते हैं। हालांकि, मेक्सिको में सीधे उतरना ज़्यादा ख़तरनाक माना जाता है क्योंकि स्थानीय अधिकारियों द्वारा गिरफ़्तारी की आशंका रहती है। इसलिए, ज़्यादातर एजेंट अपने ग्राहकों को लैटिन अमेरिकी देश में उतारते हैं और फिर उन्हें कोलंबिया ले जाते हैं। कोई देश अमेरिकी सीमा से जितना नज़दीक होगा भारत से वीज़ा पाना उतना ही मुश्किल होगा।

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कोलंबिया से प्रवासी पनामा में प्रवेश करते हैं। इसमें दोनों देशों के बीच एक खतरनाक जंगल, डेरियन गैप को पार करना शामिल है। यहाँ जोखिम में साफ़ पानी की कमी, जंगली जानवर और आपराधिक गिरोह शामिल हैं। इस क्षेत्र में प्रवासियों को डकैती और यहां तक कि बलात्कार का भी सामना करना पड़ सकता है, यहाँ किए गए अपराध रिपोर्ट नहीं किए जाते और उन्हें सज़ा नहीं मिलती। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो यात्रा में आठ से दस दिन लगते हैं अगर किसी प्रवासी की मृत्यु हो जाती है तो शव को अंतिम संस्कार के लिए घर भेजने का कोई तरीका नहीं है।

कोलंबिया से एक और मार्ग है जो पनामा के जंगल से बचने के लिए सैन एन्ड्रेस से शुरू होता है लेकिन यह ज़्यादा सुरक्षित नहीं है। सैन एन्ड्रेस से प्रवासी मध्य अमेरिका के एक देश निकारागुआ के लिए नाव लेते हैं। अवैध प्रवासियों के साथ मछली पकड़ने वाली नावें सैन एन्ड्रेस से लगभग 150 किलोमीटर दूर फिशरमैन के के तक जाती हैं। वहां से, प्रवासियों को मैक्सिको की ओर आगे बढ़ने के लिए दूसरी नाव से भेजा जाता है।

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संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको को अलग करने वाली 3,140 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़ लगी हुई है, जिसे प्रवासियों को कूदकर पार करना पड़ता है। कई लोग खतरनाक रियो ग्रांडे नदी को पार करना पसंद करते हैं। सीमा पार करने के बाद प्रवासियों को हिरासत में लिया जाता है और फिर शिविरों में रखा जाता है। अब, उनका भाग्य इस बात पर निर्भर करता है कि अमेरिकी अधिकारी उन्हें शरण के लिए उपयुक्त पाते हैं या नहीं।

आजकल, अमेरिका जाने के लिए एक और आसान डंकी रूट है, कई प्रवासी पहले यूरोप जाते हैं और वहां से सीधे मेक्सिको जाते हैं। यह सब एजेंटों के संपर्कों पर निर्भर करता है। यूरोप से जाना आसान है।

डंकी रूट पर यात्रा करने की औसत लागत 15 लाख से 40 लाख रुपये तक हो सकती है। लेकिन कभी-कभी यह लागत 70 लाख रुपये तक भी हो सकती है। कुछ एजेंट ज़्यादा पैसे के बदले में कम परेशानी वाली यात्रा का वादा करते हैं। भारत में एजेंटों के अमेरिका तक के तस्करों से संबंध हैं। अगर किसी कारण से भारतीय एजेंट भुगतान करने में विफल रहते हैं तो यह प्रवासी के लिए जीवन और मृत्यु का मामला हो सकता है। परिवार अक्सर किश्तों में भुगतान करते हैं।