Rajasthan Unique Wedding: राजस्थान के श्रीनगर गांव में एक अनोखी शादी हुई। दूल्हा विजय उर्फ गोपाल और दुल्हन अरुणा की शादी में न सिर्फ पारंपरिक रिवाजों का पालन किया गया, बल्कि सुरक्षा के कड़े इंतजाम भी किए गए थे। मंगलवार दोपहर को विजय की बारात उसके गांव श्रीनगर से दुल्हन के गांव लावेरा के लिए रवाना हुई, जो लगभग 8 किलोमीटर दूर था। शादी का यह आयोजन सामान्य रूप से होता, लेकिन इस बार इसके साथ एक असामान्य सुरक्षा व्यवस्था भी जुड़ी थी।
विजय ने बिंदोली समारोह के तहत घोड़ी पर बैठकर अपनी शादी की यात्रा पूरी की, लेकिन इस बार घोड़ी और बारात को अजमेर के नसीराबाद से 200 पुलिसकर्मियों की निगरानी में निकाला गया। दरअसल, इस इलाके में जातिवाद और विरोध का खतरा था, जो प्रशासन ने समय रहते समझ लिया। दुल्हन अरुणा के पिता, नारायण खोरवाल, जो अनुसूचित जाति के रैगर समुदाय से आते हैं, ने यह तय करने के लिए प्रशासन से मदद मांगी कि शादी का आयोजन शांति से हो।
नारायण खोरवाल ने बताया, “हमने सोचा कि अगर हम डरते रहेंगे तो हमारी बेटी का हक कैसे मिलेगा। मेरी बेटी पढ़ी-लिखी है, और हम चाहते थे कि समाज में बराबरी का संदेश जाए।” उन्होंने यह भी बताया कि इलाके के कुछ गांवों में उच्च जाति के लोग इस शादी के खिलाफ थे, और उन्हीं की वजह से प्रशासन को सुरक्षा के इंतजाम करने पड़े। नारायण ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “हमने प्रशासन की मदद ली और अब सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से हुआ।”
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इस पूरे मामले की निगरानी नसीराबाद सर्किल के पुलिस उपाधीक्षक जरनैल सिंह ने की। उन्होंने बताया कि शादी के दौरान सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। इस दौरान दूसरे समुदाय के लोग भी मौजूद थे। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस की मौजूदगी के बावजूद शादी पूरी तरह से शांतिपूर्ण रही। जुलाई 2005 में भी नारायण की बहन को ऐसी ही परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था, जहां पुलिस को दूल्हे को सुरक्षा देने के लिए घोड़ी से जीप में बदलना पड़ा था।
नारायण ने इस घटना के बाद मानव विकास और अधिकार केंद्र के सचिव रमेश चंद बंसल से संपर्क किया, जिन्होंने इस मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अजमेर पुलिस अधीक्षक वंदिता राणा के पास पहुंचाया। इसके बाद जिला प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था और पुलिस बल को तैनात किया, ताकि शादी का जुलूस बिना किसी परेशानी के निकल सके।
हालांकि, प्रशासन की सलाह पर परिवार ने डीजे बजाने और पटाखे फोड़ने का निर्णय नहीं लिया। नारायण के बेटे राहुल ने बताया, “प्रशासन ने हमें ऐसा न करने के लिए कहा था, इसलिए हमने उस पर अमल किया।” बंसल ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के इतने सालों बाद भी अनुसूचित जातियों को समाज में समानता का अनुभव नहीं हो रहा है और उन्हें प्रशासन की मदद लेनी पड़ती है।”
यह घटना यह दिखाती है कि भले ही समाज में कई सुधार हुए हों, फिर भी जातिवाद और भेदभाव जैसी समस्याएं अब भी मौजूद हैं, जिन्हें दूर करने के लिए प्रशासन को सक्रिय रूप से कदम उठाने की जरूरत है।