सुप्रीम कोर्ट ने वर्कप्लेस पर सीनियर्स के बिहेवियर को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वर्कप्लेस पर सीनियर्स की डांट फटकार को अपमान मानकर उस पर अपराधिक एक्शन नहीं लिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसे मामलों को अपराध के दायरे में लाते हैं तो उसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं और ऐसा करने से ऑफिस का माहौल प्रभावित हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि केवल अपशब्द, असभ्यता, बदतमीजी या अभद्रता को भारतीय दंड संहिता की धारा 504 के तहत इरादतन अपमान नहीं माना जा सकता है। उन्होंने कहा की धारा 504 आईपीसी में शांति भंग करने के इरादे से अपमान करने का प्रावधान है और उसमें दो साल तक की सजा हो सकती है।
हालांकि अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 352 के तहत इसे बदल दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसमें राष्ट्रीय मानसिक दिव्यांग सशक्तिकरण संस्थान के कार्यवाहक निदेशक पर एक सहायक को प्रोफेसर को अपमानित करने का आरोप लगा था।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वरिष्ठ अधिकारी द्वारा दी गई फटकार को इरादतन अपमान के इरादे से नहीं माना जा सकता है। आरोप केवल प्रयास लग रहे हैं। हालांकि कोर्ट में यह भी कहा कि यह फटकार कार्यस्थल से संबंधित अनुशासन और कर्तव्यों के निर्वहन से ही जुड़ी हुई हो। कोर्ट ने कहा कि यह माना जाता है कि जो व्यक्ति वर्कप्लेस पर मैनेज करता है वह अपने जूनियर से प्रोफेशनल ड्यूटीज को पूरी निष्ठा और समर्पण से निभाने की उम्मीद करेगा।
यह मामला 2022 का है। इस मामले में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि निदेशक ने अन्य कर्मचारियों के सामने डाटा और फटकारा था। प्रोफेसर ने यह भी कहा कि निदेशक ने संस्थान में पर्याप्त मात्रा में पीपीई किट नहीं दी थी, जिससे कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी के फैलने का खतरा था।