महिलाओं की लाइफ में नियमित पीरियड्स बहुमूल्य भूमिका निभाता है। महिलाओं को करीब 12 साल की उम्र के बाद से पीरियड्स आने शुरू हो जाते हैं और लगभग 40 से 45 की साल की उम्र तक यह सिलसिला जारी रहता है। हालांकि, हर महिला के लिए पीरियड्स एक समान नहीं होता है। पीरियड्स का समय पर आना हेल्थ शरीर का संकेत होता है, लेकिन अगर पीरियड्स देरी से या जल्दी आ रहे हैं तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। अनियमित पीरियड्स (Irregular Periods) कई गंभीर बीमारियों का संकेत हो सकता है। आशा आयुर्वेदा की डायरेक्टर और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. चंचल शर्मा ने बताया कि आजकल महिलाओं के लाइफस्टाइल में काफी बदलाव आया है, जिसके चलते पीरियड्स कई बार समय पर नहीं आ पाते हैं और फिर ये धीरे-धीरे आगे चलकर गंभीर समस्या का रूप ले सकती हैं।
यू.एस. ऑफिस ऑन वीमेन हेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पीरियड्स समय पा ना आने से लिवर पर असर पड़ता है और लिवर से संबंधी समस्या हो सकती है। आमतौर पर किसी भी महिला का मेंस्ट्रुअल साइकिल 24 से 38 दिनों का होता है, लेकिन जिन महिलाओं का मेंस्ट्रुअल साइकिल बिगड़ जाता है तो नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर की समस्या होने का खतरा अधिक बढ़ जाता है। महिलाओं के शरीर में पाए जाने वाले एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरोन का संतुलन जब बिगड़ता है तो लिवर पर नाकारात्मक प्रभाव पढ़ता है।
महिलाओं में पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम सबसे आम कारणों में से एक है। इसमें अंडाशय में सिस्ट बन जाते हैं, जिससे हार्मोनल असंतुलन होता है और पीरियड्स लेट हो जाते हैं। इसमें वजन बढ़ना, मुंहासे और अनचाहे बालों का बढ़ना आदि के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
थायराइड की समस्या
पीरियड्स देर से आने पर थायराइड की समस्या हो सकती है। पीरियड्स को देरी से आने या भारी ब्लीडिंग का कारण बन सकता है। जिससे हाइपोथायरायडिज्म यानी थायराइड कम होने की समस्या हो सकती है। इसके अलावा हाइपरथायरायडिज्म यानी थायरॉयड अधिक होना पीरियड्स को हल्का या बहुत कम कर सकता है।
अचानक वजन बढ़ने से एस्ट्रोजन हार्मोन असंतुलित हो सकता है, जिससे पीरियड्स पर असर पड़ता है। अत्यधिक डाइटिंग या एक्सरसाइज करने से भी पीरियड्स मिस हो सकते हैं। ऐसे अपने खानपान और वजन को मेंटेन रखें।
वहीं, उम्र के हिसाब से कोलेस्ट्रॉल का स्तर क्या होना चाहिए? क्योंकि, शरीर में जब कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ जाता है तो इसके कारण हार्ट से संबंधी बीमारी और हाई ब्लड प्रेशर और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।