Kanshi Ram Mayawati BSP: उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीएसपी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने अपने हालिया फैसले से लोगों को हैरान कर दिया है। मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को न सिर्फ नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद से हटाया बल्कि पार्टी से भी उनकी छुट्टी कर दी। मायावती ने यह भी ऐलान किया कि अब कोई भी उनका उत्तराधिकारी नहीं होगा।

इसका सीधा मतलब है कि मायावती ही बीएसपी की अध्यक्ष बनी रहेंगी। वह 2003 से लगातार इस पद पर हैं। साल 2001 में मायावती के राजनीतिक गुरु कांशीराम ने उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया था। आकाश आनंद को पार्टी से निकाले जाने के बारे में मायावती ने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने यह फैसला डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के स्वाभिमान आंदोलन और कांशीराम की अनुशासन परंपरा के हित में लिया है।

आइए नजर डालते हैं कि मायावती किस तरह राजनीति में आईं, कैसे आगे बढ़ीं और उनका राजनीतिक जीवन कैसा रहा है।

दिल्ली से सटे दादरी के बादलपुर गांव में जन्मीं मायावती के पिता टेलीफोन विभाग में काम करते थे। मायावती को बचपन से ही दलित साहित्य पढ़ने में बहुत रुचि थी और वह IAS अफसर बनना चाहती थीं। 1977 में वह स्कूल में टीचर बनीं और यूपीएससी परीक्षा की तैयारी में जुट गईं। इसी दौरान वह दलित समाज के बीच एक तेज तर्रार वक्ता के रूप में पहचानी जाने लगीं।

पॉलीटिकल साइंटिस्ट सुधा पाई अपनी किताब Dalit Assertion and the Unfinished Democratic Revolution में लिखती हैं, ‘1977 में जनता पार्टी की जात-पात तोड़ो बैठक हुई थी। यह वह वक्त था जब गठबंधन की राजनीति अपने चरम पर थी। इस बैठक में मायावती ने अनुसूचित जातियों के लिए हरिजन शब्द इस्तेमाल करने का कड़ा विरोध किया।’

महात्मा गांधी ने दलित समाज के लिए हरिजन शब्द दिया था। इसे लेकर डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी सवाल उठाया था।

1978 में जब कांशीराम ने BAMCEF (Backward and Minority Communities’ Employees’ Federation) का गठन किया तो इसी दौरान उनकी नजर मायावती पर पड़ी। कांशीराम ने मायावती से कहा कि सिविल सेवा को भूल जाओ, राजनीति में आओ और एक दिन IAS अधिकारी तुम्हारे अधीन काम करेंगे।

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मायावती ने कांशीराम की इस बात को मान लिया और उन्होंने कभी शादी न करने और दलित समाज की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला ले लिया। ठीक ऐसा ही कांशीराम ने भी किया था। 1984 में जब कांशीराम ने बीएसपी बनाई तो मायावती उनके साथ थीं। उस वक्त बीएसपी का नारा था- ‘बीएसपी कांशीराम है, कांशीराम बीएसपी हैं।’

सुधा पई अपनी किताब में लिखती हैं, ‘कांशीराम बीएसपी के अध्यक्ष थे और वही पार्टी के सबसे बड़े नेता थे, उनके अलावा कोई अन्य बड़ा पदाधिकारी नहीं था। बाकी सब कार्यकर्ता थे। मायावती एक अपवाद थीं और तब वह पार्टी की सचिव थीं और नेता के रूप में उभर रही थीं।’ पई यह भी लिखती हैं कि 1986 में नागपुर में BAMCEF में टूट हो गई और इसकी वजह यह थी कि कई लोग बीएसपी में मायावती के बढ़ते कद से असहज थे।

दिसंबर, 2001 में कांशीराम ने मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। उन्होंने उम्मीद जताई कि मायावती “मानवतावादी” समाज बनाएंगी और “मनुवादी” समाज को खत्म करेंगी। तब कांशीराम बीमार चल रहे थे। 2003 में 47 साल की उम्र में मायावती पहली बार बीएसपी की अध्यक्ष बनीं। 2004 में कांशीराम की मां और भाइयों ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि मायावती उन्हें कांशीराम से मिलने नहीं दे रही हैं और बसपा के संस्थापक को ‘कैदी’ की तरह रखा गया है। बीएसपी ने इन आरोपों को पूरी तरह झूठा और बेबुनियाद बताया। 2006 में कांशीराम का निधन हो गया।

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मायावती को पार्टी के भीतर ज्यादा विरोध का सामना नहीं करना पड़ा और वह दलित विशेषकर जाटव समुदाय की निर्विवाद नेता बन गईं। इसी दौरान मायावती ने ‘सर्वजन समाज’ का नारा दिया और समाज की अन्य जातियों तक भी पहुंचने की कोशिश की। 2007 मायावती के राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा साल था क्योंकि तब उन्होंने बीएसपी का नेतृत्व करते हुए पहली बार उत्तर प्रदेश में अपने दम पर बहुमत की सरकार बनाई थी। उनकी इस जीत में समाज की अन्य जातियों विशेषकर ब्राह्मणों को साधने की उनकी रणनीति ने रंग दिखाया था।

आकाश आनंद बीएसपी के पहले ऐसे नेता नहीं हैं जिन्हें पार्टी में इस तरह की सख्त कार्रवाई का सामना करना पड़ा है। मायावती को एक ऐसे नेता के रूप में जाना जाता है जो बेहद सख्त मिजाज की हैं। बीएसपी को जानने वाले लोगों का कहना है कि पार्टी में शुरू से ही एक ही व्यक्ति का शासन रहा है पहले कांशीराम और फिर मायावती।

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