What is Delimitation: साल 2021 में देश की जनगणना होनी थी लेकिन कोरोनावायरस के चलते यह नहीं हो पाई थी। अब इस साल जनगणना होने की उम्मीद है। जनगणना के बाद ही निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन भी किया जाएगा। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान 2002 में संविधान संशोधन के जरिए परिसीमन 2026 तक के लिए टाल दिया गया था।

परिसीमन को लेकर कई दक्षिण भारत के राज्यों की चिंता है कि उनकी सीटें उत्तर भारत के मुकाबले कम अनुपात में बढ़ सकती हैं। इसमें तमिलनाडु और केरल के जैसे राज्य शामिल थे। इसी के चलते गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले हफ्ते दक्षिण के राज्यों को विश्वास दिलाया था कि नए परिसीमन में उन्हें एक भी सीट का नुकसान नहीं होगा।

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निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन, प्राथमिक तौर पर निष्पक्ष तौर प्रतिनिधियो को निकायों में नागरिकों के प्रतिनिधित्व के प्रति संवैधानिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है। संसद और राज्य विधानसभाओं में निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या को लेटेस्ट जनसंख्या के अनुसार तय किया जाता है। इससे ही यह तय होता है कि एक सांसद या विधायक द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने वाले लोगों की संख्या पूरे भारत में लगभग समान ही हो।

परिसमीन, अनुच्छेद 81 के तहत ‘एक नागरिक, एक वोट, एक मूल्य’ का सिद्धांत निर्धारित करता है। संविधान का अनुच्छेद 82 कहता है कि प्रत्येक जनगणना के पूरा होने पर, राज्यों को लोकसभा में सीटों का आवंटन और प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुनः समायोजित किया जाएगा, जो कि संसद द्वारा निर्धारित अनुच्छेद 170(3) प्रत्येक जनगणना के पूरा होने पर प्रत्येक राज्य की विधान सभा में सीटों की कुल संख्या और प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित करने” का पुनः समायोजन प्रदान करें। साधारण शब्दों में कहें तो कुल जनसंख्या के आधार पर संसद द्वारा तय मानकों के आधार पर होता है।

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भारत में परिसीमन के इतिहास की बात करें तो 1951 की जनगणना के बाद, 1952 के परिसीमन आयोग अधिनियम ने लोकसभा और राज्य विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं तय करने के लिए पहला परिसीमन आयोग बनाया गया था। इन सीमाओं को बाद में 1962, 1972 और 2002 के परिसीमन आयोग अधिनियमों के तहत स्थापित परिसीमन आयोगों द्वारा तीन बार निर्धारित किया गया था।

बता दें कि हाल ही में हुए परिसीमन में 2001 की जनगणना के आधार पर कुछ निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित किया गया था। हालाकि, लोकसभा सीटों की संख्या प्रत्येक राज्य के लिए आवंटन और राज्य विधानसभाओं में सीटों की संख्या 1972 के परिसीमन के बाद से नहीं बदली है। 1971 की जनगणना के आधार पर, लोकसभा सीटों की संख्या 543 तय की गई थी, जिसका मतलब था कि प्रत्येक सांसद लगभग दस लाख भारतीयों का प्रतिनिधित्व करता था।

संविधान के 42वां संशोधन अधिनियम, 1976, जिसे आपातकाल की सरकार ने भारत की जनसंख्या को नियंत्रित करने के उद्देश्य से पारित किया था, उसके बाद 2000 के बाद पहली जनगणना होने तक लोकसभा सीटों की संख्या को स्थिर कर दिया, और 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इस रोक कर कम से कम 2026 तक बढ़ा दिया था।

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राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस की अध्यक्षता में एक परिसीमन आयोग की नियुक्ति होती है, जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त या उनके प्रतिनिधि तथा राज्य चुनाव आयुक्त शामिल होते हैं। इसके अलावा, परिसीमन से गुजरने वाले प्रत्येक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के लिए सहयोगी सदस्य नियुक्त किए जाते हैं। ये सदस्य लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा नियुक्त मौजूदा सांसद और संबंधित विधानसभा के अध्यक्ष द्वारा नियुक्त विधायक होते हैं।

इसके बाद, एसोसिएट सदस्य इनपुट और सलाह तो देते हैं लेकिन अगर किसी मुद्दे पर वोटिंग की बात होती है तो वे वोट देने के अधिकारी नहीं होते हैं। आयोग सरकार से स्वतंत्र रूप से कार्य करता है तथा इसके द्वारा निर्धारित संशोधित सीमाओं को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।

परिसीमन में जनगणना के महत्व की बात करें तो जनगणना के आंकड़े परिसीमन का मुख्य आधार होते हैं। दक्षिणी राज्यों की आशंका का मुख्य मुद्दा यही जनसंख्या ही है। उन्हें डर है कि उत्तर भारतीय राज्यों की जनसंख्या नियंत्रण में विफलता के कारण संसद में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ सकता है, जबकि दक्षिण में जनसंख्या नियंत्रण तो सफल रहा, लेकिन संसद में प्रतिनिधित्व के मामले में जनसंख्या के चलते उन्हें नुकसान हो सकता है।

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जनगणना के आंकड़े भौगोलिक निकटता, जनसंख्या घनत्व और सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए चुनावी सीमाओं को नए सिरे से निर्धारित करने में बेहद अहम होते हैं। खास तौर पर, डेटा से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महत्वपूर्ण आबादी वाले क्षेत्रों की पहचान करने में मदद मिलती है और यह सुनिश्चित होता है कि एससी/एसटी आबादी के हिस्से के अनुपात में सीटें आरक्षित हैं।

प्रस्तावित सीमाओं के निर्माण के बाद परिसीमन आयोग अपनी सिफारिशें जारी करता है और आम जनता, राजनीतिक दलों और अन्य हितधारकों से प्रतिक्रिया आमंत्रित करता है। आवश्यक संशोधन करने के बाद परिसीमन योजना को अंतिम रूप दिया जाता है। आधिकारिक राज-पत्र में प्रकाशित होने के बाद, आयोग के आदेश अगले चुनाव में प्रभावी होते हैं।

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