Three Language Formula: देश में इस समय नई शिक्षा नीति को लेकर कुछ विवाद है, वहां भी थ्री लैंग्वेज वाले एक पहलू ने दक्षिण के राज्यों को नाराज किया है। तमिलनाडु में इसे हिंदू थोपने के रूप में देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन तो कई मौकों पर इसका विरोध कर चुके हैं, उनकी तरफ से मोदी सरकार पर निशाना साधा गया है। अब इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने इस मुद्दे पर अपने विचार रखे हैं।
इस समय संघ का बेंगलुरु में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा कार्यक्रम चल रहा है। तीन दिन के इस कार्यक्रम में पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई। उस पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में संघ नेता सीआर मुकुंद ने तीन भाषा विवाद पर विस्तार से बात की है। वे कहते हैं कि जो भी मातृ भाषा होती है, वो तो दिनचर्या में रोज इस्तेमाल में आती है। संघ ने अभी तक कोई ऐसा प्रस्ताव पारित नहीं किया है कि तीन भाषा फॉर्मूला क्या होता है, लेकिन हां मातृ भाषा को लेकर जरूर प्रस्ताव पास हुआ है।
मुकुंद आगे कहते हैं कि सिर्फ स्कूल में ही नहीं, समाज के लिहाज से भी ज्यादा भाषाओं की जानकारी होना जरूरी है। एक तो हमारी मातृ भाषा है, दूसरी हमारी स्थानीय भाषा है, इसे हम मार्केट भाषा भी कह सकते हैं। मान लीजिए अगर हम भी तमिलनाडु में रहते हैं तो हमे तमिल भाषा सीखनी चाहिए। अगर हम दिल्ली में रहते हैं, हिंदी सीखना जरूरी है क्योंकि हमे भी दूसरों से बात करनी है। कुछ लोगों के लिए करियर भाषा जरूरी हो सकती है। ऐसे में एक हुई करियर भाषा, एक हुई स्थानीय भाषा और तीसरी रही मातृ भाषा।
वैसे 2018 में ABPS ने एक प्रस्ताव पारित किया था, उसमें जोर देकर कहा गया था कि प्राइमरी शिक्षा मातृ भाषा में होनी चाहिए। तब उस प्रस्तावमें सुझाव दिया गया था कि सरकार को भी ऐसी पॉलिसी बनानी चाहिए जिससे प्राइमरी शिक्षा कम से कम एक बच्चे को उसकी मातृ भाषा में मिल सके। वैसे संघ की यह अप्रोच मायने रखती है क्योंकि यहां पर उसकी तरफ से हिंदी को ज्यादा प्राथमिकता नहीं दी गई है।
वैसे बीजेपी अभी तक दावा कर रही है कि उसके लिए तीन भाषा का मतलब यह नहीं है कि दक्षिण के राज्य में हिंदी ही पढ़नी पड़ेगी। मतलब सिर्फ इतना है कि तमिल, अंग्रेजी के साथ कोई भी तीसरी भाषा सीखना जरूरी है, वो तीसरी भाषा दक्षिण की कोई लैंग्वेज भी हो सकती है। वैसे परिसीमन पर भी संघ के मजबूत विचार हैं, वो जानने के लिए इस खबर का रुख करें
Vikas Pathak की रिपोर्ट