Divorce Alimony Rules In India: क्रिकेटर युजवेंद्र चहल और धनश्री वर्मा के बीच तलाक हो चुका है। मुंबई की फैमिली कोर्ट ने इसको लेकर फैसला सुनाया। युजवेंद्र चहल को धनश्री वर्मा को 4 करोड़ 75 लाख रुपये एलिमनी के तौर पर देने होंगे। इसके बाद एक बार फिर एलिमनी शब्द चर्चा में आया है। एलिमनी शब्द का मतलब गुजारा भत्ता से होता है।

भारत में गुजारा भत्ता तय फ़ॉर्मूले पर नहीं चलता। कोर्ट पति-पत्नी दोनों की वित्तीय स्थिति, उनकी कमाई की क्षमता और विवाह में उनके योगदान जैसे कई कारणों पर विचार करता है। मैग्नस लीगल सर्विसेज़ एलएलपी में पारिवारिक कानून अधिवक्ता और पार्टनर निकिता आनंद ने कहा, “भारतीय तलाक के मामलों में गुजारा भत्ता कोई स्ट्रेटजैकेट फ़ॉर्मूला नहीं है। कोर्ट पति-पत्नी दोनों की वित्तीय स्थिति, उनकी कमाई की क्षमता और विवाह में उनके योगदान जैसे कई कारणों के आधार पर निर्णय लेते हैं।”

उदाहरण के लिए अगर 20 साल से गृहिणी पत्नी अपने अमीर व्यापारी पति से तलाक लेती है, तो कोर्ट उसकी इंडिपेंडेंट इनकम की कमी और पति की पर्याप्त इनकम पर विचार करेगा। शैक्षणिक रूप से योग्य होने के बावजूद न्यायालय यह मानेगा कि पत्नी ने अपने पति के व्यवसाय, उसके परिवार और उनके बच्चों का समर्थन करने के लिए अपने करियर का त्याग किया। दिए गए गुजारा भत्ते का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पत्नी तलाक के बाद भी वैसी ही जीवनशैली बनाए रखे, साथ ही पति की भुगतान करने की क्षमता पर भी विचार किया जाए। इससे निष्पक्षता सुनिश्चित होती है और अनावश्यक कठिनाई से बचा जा सकता है।

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सुप्रीम कोर्ट की वकील श्रीसत्य मोहंती ने इंडिया टुडे को बताया कि गुजारा भत्ता तय करते समय अदालतें कई पहलुओं पर विचार करता है। इसमें दोनों पक्षों की आय, विवाह के दौरान आचरण, सामाजिक और वित्तीय स्थिति, व्यक्तिगत खर्च और आश्रितों के प्रति ज़िम्मेदारियां शामिल हैं। विवाह के दौरान पत्नी द्वारा जी गई जीवनशैली को भी ध्यान में रखा जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने परवीन कुमार जैन बनाम अंजू जैन (2024 INSC 961) के मामले में स्थायी गुजारा भत्ता देने के लिए प्रमुख कारणों का जिक्र किया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने महिला-केंद्रित कानूनों के दुरुपयोग के खिलाफ भी चेतावनी दी है, जिसमें कहा गया है कि गुजारा भत्ता आश्रित पति या पत्नी की रक्षा करना चाहिए, न कि दूसरे को दंडित करना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि पति प्रति माह 1,00,000 रुपये कमाता है और पत्नी भी प्रति माह 1,00,000 रुपये कमाती है, तो गुजारा भत्ता आवश्यक नहीं हो सकता है यदि दोनों की वित्तीय स्थिति समान है। हालांकि, यदि पति या पत्नी में से किसी एक पर बच्चों की देखभाल जैसे अधिक वित्तीय बोझ हैं, तो न्यायालय वित्तीय सहायता का आदेश दे सकता है।

गुजारा भत्ता ज्यादातर पत्नियों द्वारा पतियों से वित्तीय सहायता प्राप्त करने से जुड़ा होता है। हालांकि, भारतीय कानून पुरुषों को कुछ शर्तों के तहत गुजारा भत्ता मांगने की अनुमति देता है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत, पति धारा 24 और 25 के तहत गुजारा भत्ता मांग सकता है। हालांकि, 1954 का विशेष विवाह अधिनियम, 2023 का भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 1956 का हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम और 2005 का घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम जैसे कानून मुख्य रूप से पतियों द्वारा पत्नियों को गुजारा भत्ता देने पर केंद्रित हैं।

श्रीसत्य मोहंती ने बताया, “एक पति को केवल असाधारण परिस्थितियों में ही गुजारा भत्ता मिल सकता है। उसे अदालत में यह साबित करना होगा कि वह किसी वैलिड कारण से अपनी पत्नी पर आर्थिक रूप से निर्भर था, जैसे कि विकलांगता के कारण उसे कमाने से रोका जा रहा था। हालांकि अदालतें अक्सर पुरुषों को गुजारा भत्ता देने में इच्छुक नहीं होती हैं,और ऐसे मामलों को तथ्यों के आधार पर सख्ती से निपटाया जाता है।