समाज को भयभीत और बेचैन कर देने वाली आपराधिक घटनाओं में युवाओं की भागीदारी चिंताजनक है। वैवाहिक संबंधों में संवेदनहीनता के मामलों में युवक-युवतियों की दिशाहीनता सचमुच चिंतनीय हो चली है। साथ रहने-जीने वाले इंसान के साथ क्रूरता आखिर कहां से आ रही है? शादीशुदा जीवन को मजबूती देने वाले साथ का भाव और ठहराव कहां खो गया है? दुर्भाग्यपूर्ण है कि मन से चुने रिश्तों में भी यह स्थिति देखने को मिल रही है। हर तरह के सामाजिक-पारिवारिक दबाव से परे प्रेम विवाह कर घर बसाने वाले भी साथ निभाने की समझ से दूर हो रहे हैं।

इन स्थितियों को कहीं न कहीं दायित्व निर्वाह से भागने की मन:स्थिति से जोड़ कर देखा जा सकता है। हर मामले में खुद को प्रगतिशील मानने वाली यह पीढ़ी समझ के मोर्चे पर इतनी दिशाहीन है कि मन न मिलने पर वैवाहिक रिश्ते में अलगाव का उचित रास्ता चुनने के बजाय दुर्दांत अपराध कर बैठने का मार्ग पकड़ रही है।

साझे जीवन में हिंसक घटनाओं का यह अंतहीन सिलसिला पारिवारिक व्यवस्था की नींव ढहाने वाला है। आक्रोश भर नहीं, सोची-समझी रणनीति के तहत किसी अपने के जीवन को छीनने के मामले डराने और भरोसे को डिगाने वाले हैं। समाज की नींव मानी जाने वाली विवाह व्यवस्था के छीजते हालात को सामने रखते हैं। बीते दिनों उत्तर प्रदेश के मेरठ में पत्नी ने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर दी। घटना में बिखरते भरोसे के हालात को देखा जा सकता है कि इस मामले में युवती के माता-पिता ने ही उसके लिए कठोर दंड मांग की।

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आरोप है कि इस विवाहिता ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति को बर्बरता से मारने के बाद शव के टुकड़े कर ड्रम में रख कर चिनाई करा दी। यह कृत्य करने के बाद महिला प्रेमी के साथ घूमने चली गई। इस मामले की योजना पिछले साल से ही बन रही थी। घटना को अंजाम देने से पहले युवती ने परिजनों और आस-पड़ोस के लोगों को गुमराह करने के लिए पूरी रणनीति बनाई। चिकित्सक को झूठ बोल कर नींद की दवाइयां लीं गई। यह दवा देकर पहले पति को बेहोश किया और फिर उसकी हत्या कर दी। युवती ने घटना को अंजाम देते समय अपनी पांच वर्षीय बेटी के भविष्य की भी चिंता नहीं की।

असल में ऐसे अधिकतर मामलों के पीछे अवैध संबंध, धन का लालच या साथी से छुटकारा पाने जैसे अहम कारण होते हैं। दुखद है कि अब युवतियां भी भटकाव का शिकार हो रही हैं। बिखराव भरा मानस न केवल पारिवारिक संबंधों से जुड़े दायित्वबोध से दूर कर रहा है, बल्कि स्वयं को थामने-संभालने की सोच भी नदारद है। सशक्त होने की गलतफहमी में दूसरों पर भावनात्मक निर्भरता बढ़ रही है। इस तरह के मामले युवाओं में विफल विवाह से विषाक्त हुई मन:स्थिति की बानगी तो है ही, भावी जीवन में संबंधों के अव्यावहारिक रंग जीने और अवास्तविक स्वप्नों के भ्रमजाल में फंसने की तस्दीक करते हैं। नतीजतन, आत्मीय जुड़ाव की संवेदनाएं खत्म हो जाने का परिणाम कभी खुद को खत्म कर लेने, तो कभी साथी का जीवन छीन लेने तक ले आता है।

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ऐसे मामलों की जड़ में लालच और अवैध संबंध भी होते हैं। जीवन भर साथ चलने के वादों से शुरू हुई यात्रा में अविश्वास और उलाहने जगह बना लेते हैं। दुखद है कि अंतर्जाल की दुनिया से किसी की जान लेने और बच निकलने की युक्तियां खोजने वाले युवक-युवतियां कानूनी ढंग से अपने रास्ते अलग करने की समझ नहीं जुटा पाते। उलझन के दौर में वे अपने बड़े-बुजुर्गों से परामर्श नहीं करते। एक उलझाऊ रिश्ते से निकलने के बजाय दूसरे दिशाहीन करने वाले संबंधों में उलझते जाते हैं। हालिया समय में तलाक के ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं, जिनकी वजह रिश्ते में संवाद न होने के कारण शक अपनी जगह बना लेना है।

आज के दौर में ‘वर्चुअल स्क्रीन’ में झांकते रहने की आदत भी युवाओं को संबंधों के धरातल से जुड़ी समझ से दूर कर रही है। समस्या यह भी है कि प्रेम की बुनियाद पर जिंदगी साथ बिताने का निर्णय करने वाले भी एक दूसरे के साथ बर्बरता करने से नहीं चूक रहे। युवा पीढ़ी यह भूल रही है कि प्रेम विवाह हो या परंपरागत रूप से परिजनों के सुझाव से जोड़े गए रिश्ते, निबाह के लिए समर्पण का भाव आवश्यक है। दोनों ही ओर से साझी जिंदगी में भरोसे के भाव को पोषण मिलना जरूरी है। कुछ समय पहले उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि सहनशीलता और सम्मान शादी की बुनियाद है। इतना ही नहीं, शादी को जिंदगी की नई शुरूआत भी माना जाता है। नए रिश्तों की नई दुनिया में कुछ जिम्मेदारियां और चुनौतियां भी मिलती हैं। दायित्वों का भान और आपसी भरोसा न हो, तो वैवाहिक संबंध डगमगाने लगता है।

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मौजूदा दौर में छोटी-छोटी बातों पर पति-पत्नी अपनी राहें अलग कर रहे हैं। ऐसे में साथ, संवाद और संवेदनाएं ही अहम हैं। ऐसा न होने पर वैवाहिक रिश्ते में बंधे युगल को समझना चाहिए कि आपराधिक और नकारात्मक गतिविधि को अंजाम देने से बेहतर अलग होने की सही राह चुन लें। हाल के वर्षों में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं, जिनमें शादीशुदा जीवन की उलझनों को सुलझाने में न मध्यस्थता काम करती है और न ही आपसी समझ से कोई रास्ता निकल पाता है। कानूनी दबाव ऐसे संबंधों को पुनर्जीवन दे ही नहीं सकता। ऐसे में व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो अलग हो जाना दोनों ही पक्षों के जीवन की सहजता के लिए जरूरी है।

युवाओं को यह समझना होगा कि जिम्मेदारी रिश्तों को जोड़ने के समय ही नहीं आती, टूटने के दौर में भी हिस्से आती है। बिखराव में भी ठहराव आवश्यक होता है। ऐसे कठिन समय में अपने ही मन को समझना और समझाना जरूरी होता है। जुड़ाव के समय जज्बाती मोर्चे पर बहुत से लोग साथ रहते हैं। जबकि वैवाहिक संबंध के टूटने का समय अकेले पड़ जाने का दौर होता है। यह वक्त महिला और पुरुष दोनों के लिए कठिनाई भरा होता है। हमारी सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था में वैवाहिक संबंध का बिखरना कई सवालों के घेरे में ले आता है। इन्हीं हालात में न केवल गुमराह करने वाले लोग जीवन का हिस्सा बन जाते है, बल्कि आपराधिक घटनाएं भी होती हैं।

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एक ओर टूटते-बिखरते मन का उलझाव अपराध करने की कगार पर ले जाता है, तो दूसरी ओर अवैध संबंधों में प्रेम के नाम पर देखे और दिखाए जा रहे झूठे सपने भ्रमित करते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मोड़ पर अपराध कर बैठना तो जीवन को सदा के लिए दिशाहीन कर देता है। जरूरी है कि जीवन को व्यावहारिक धरातल पर समझने और जीने का प्रयास करें।