Ganga of Rajasthan: पिछले साल अगस्त में राजस्थान की लूणी नदी को लेकर काफी चर्चा हुई थी। चर्चा इस बात की थी कि मानसून आने के बाद लूणी नदी में पानी आ गया था और यह नदी प्रवाह के साथ आगे बढ़ते हुए समदड़ी तक पहुंच गई थी। इस इलाके में लूणी नदी को लाइफ लाइन माना जाता है और इसे ‘मरू गंगा’ यानी रेगिस्तान की गंगा के रूप में जाना जाता है।

जब यह नदी अजमेर और जोधपुर से आगे बढ़ते हुए बालोतरा और समदड़ी के इलाकों में पहुंची थी तो स्थानीय लोगों ने नाच-गाकर और झूमकर जश्न मनाया और बड़ी संख्या में लोग इसका स्वागत करने के लिए इकट्ठे हुए। लोगों ने चुनरी ओढ़ाकर और पूजा-अर्चना कर नदी का स्वागत किया था।

यह खुशी रेगिस्तान के इलाके में पानी की अहमियत के बारे में बताती है, जहां लोगों को पानी की सीमित आपूर्ति के साथ जीवन गुजारना होता है और गर्मियों के मौसम में गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ता है। लोगों का मानना है कि नदी का प्रवाह पूरे क्षेत्र के लिए शुभ है।

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लूणी नदी उत्तर-पश्चिम भारत के थार रेगिस्तान की सबसे बड़ी नदी है। यह अजमेर में अरावली पर्वतमाला में नाग पहाड़ी से निकलती है और राजस्थान के नौ जिलों से होकर गुजरने के बाद गुजरात पहुंचती है और इसके बाद अरब सागर में मिल जाती है। लूणी नदी को लवणावरी या लवणावती के नाम से भी जाना जाता है, जिसका संस्कृत में अर्थ है “नमकीन नदी”।

भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक विरासत न्यास (इंटेक) के जोधपुर चैप्टर के संयोजक महेंद्र सिंह तंवर ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि लूणी नदी का इस क्षेत्र में लंबे समय से प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक महत्व रहा है। उन्होंने कहा, “यह नदी राजस्थान में अजमेर, नागौर, जोधपुर, पाली, जालौर और बाड़मेर जिलों से होकर 350 किलोमीटर का सफर तय करती है लेकिन भारी बारिश के दौरान भी यह बाड़मेर तक नहीं पहुंच पाती है।” स्थानीय निवासियों ने बताया कि कई छोटी नदियां भी लूणी नदी में मिलती हैं।

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लूणी नदी में पाली की बांडी और सुकड़ी नदी का पानी भी मिलता है। बताया जाता है कि पाली और जालौर में जब भी मूसलाधार बारिश होती है तो लूणी नदी में पानी का आना शुरू हो जाता है।