अमेरिका द्वारा भारत पर 26 परसेंट लगाए गए रेसिप्रोकल टैरिफ को लेकर भारतीय बाजार में चिंता की लकीरें जरूर है लेकिन इन सब के बीच में भी तीन ऐसे बड़े पहलू हैं जो भारत के लिए उम्मीद की किरण के समान है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह टैरिफ पर लॉन्ग टर्म में भारत को फायदा ही पहुंचाएगी।
सबसे पहली बात कि टैरिफ तुलनात्मक यानी कंपैरेटिव बेसिस पर काम करता है। एक देश द्वारा दूसरे देश पर लगाया गया टैरिफ महत्वपूर्ण है, उससे भी अधिक जरूरी है कि टैरिफ लगाने वाले देश के प्रतिस्पर्धियों पर लागू टैरिफ दर। इसलिए, जबकि अमेरिका द्वारा भारत पर लगाया गया टैरिफ के परिणाम जरूर होंगे, लेकिन चीन, बांग्लादेश या वियतनाम पर प्रस्तावित टैरिफ रेट ज्यादा महत्वपूर्ण होंगे।
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व्हाइट हाउस की घोषणा के अनुसार, अमेरिका 5 अप्रैल से सभी देशों पर 10 प्रतिशत बेस टैरिफ लगाएगा, और 9 अप्रैल से उन देशों पर व्यक्तिगत रेसिप्रोकल हाई टैरिफ लगाएगा जिनके साथ वाशिंगटन, डीसी का सबसे बड़ा व्यापार घाटा है।
भारत के मामले में देखें तो पहले फेज के 10 प्रतिश बैस टैरिफ के 5 अप्रैल से लागू होने के बाद, बाकी का 16 प्रतिशत टैरिफ 9 अप्रैल के बाद से लागू होगा और इसके साथ कुल 26 प्रतिशत इंपोर्ट ड्यूटी सेट हो जाएगी। गौर करने वाली बात है कि भारत पर लगाया गया 26 प्रतिशत टैरिफ, चीन पर लगे 34 प्रतिशत, वियतनाम पर लगे 46 प्रतिशत, बांग्लादेश पर लगे 37 प्रतिशत और थाइलैंड पर लगे 36 प्रतिशत से काफी कम है। बता दें कि ये सभी देश इंडियन एक्सपोर्टर्स के लिए प्रतिस्पर्धी हैं और कुछ कमोडिटी सेगमेंट व अन्य में अमेरिकी मार्केट इनकी पहुंच में है। भारत पर लगा टैरिफ, अन्य एशियाई प्रतिस्पर्धियों से कम है जैसे कि थाइलैंड पर 36 प्रतिशत और इंडोनेशिया पर 32 प्रतिशत टैरिफ लगा है।
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हालांकि, भारत पर लगाया गया टैरिफ जापान पर लगे 24 प्रतिशत, साउथ कोरिया के 25 प्रतिशत, मलेशिया के 24 प्रतिशत, यूरोपीय यूनियन के 20 प्रतिशत, यूके के 10 प्रतिशत से ज्यादा है। सिर्फ मलेशिया ऐसा देश है जो कुछ सेक्टर में भारत का प्रतिस्पर्धी है और कम टैरिफ वाले ये अधिकतर विकसित देश आमतौर पर कुछ प्रोडक्ट कैटेगिरी में भारत को टक्कर नहीं देते हैं। अगर, 10 प्रतिशत का बेस रेट सभी देशों में लागू होता है, तो इस स्थिति में देखें तो भारत पर सिर्फ 16 प्रतिशत टैरिफ ही प्रभावी है। इसलिए, तुलनात्मक लिहाज से देखें तो भारत असल में अच्छी स्थिति में है।
टेक्स्टाइल और गारमेंट जैसे सेक्टर की बात करें तो उदाहरण के लिए भारत को अमेरिकी मार्केट में पहुंचने पर दूसरे प्रतिस्पर्धी देश जैसे वियतनाम, बांग्लादेश और चीन की तुलना में फादा हो सकता है। यह उसी तरह का फायदा होगा जैसा कि यूरोपीय यूनियन मार्केट में बांग्लादेश को मिला था, जहां LDC स्टेटस के चलते भारत के इस पड़ोसी देश पर ज़ीरो डयूटी एक्सेस था जबकि भारत जैसे देशों को यहां टैक्स देना पड़ता था।
भारत के लिए दूसरी सकारात्मक बात है कि ट्रंप प्रशासन ने संकेत दिए हैं कि अगर कोई देश अमेरिकन ट्रेड से जुड़ी चिंताओं को दूर करता है तो ये रेसिप्रोकल ड्यूटी को हटाया या रिवाइज किया जा सकता है। भारत और अमेरिका पहले ही एक द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते पर काम कर रहे हैं और दोनों पक्षों द्वारा अक्टूबर 2025 तक पहले चरण की बातचीत फाइनल होने की उम्मीद है। और इनमें से भारत की तरफ से ज्यादातर विमर्श इन टैरिफ के चलते होने वाले बुरे प्रभावों को खत्म करना होगा।
इसके अलावा एक जरूरी USTR (United States Trade Representative) रिपोर्ट में बताया गया था कि रेसिप्रोकल टैरिफ के ऐलान से पहले 2023 में भारत का औसत Most-Favored-Nation (MFN) के तौर पर लागू होने वाला टैरिफ 17 प्रतिशत था, जो दुनिया की किसी भी बड़ी इकोनॉमी का सबसे ज्यादा था और नॉन-एग्रीकल्चरल सामानों पर लगने वाला टैरिफ 13.5 प्रतिशत जबकि एग्रीकल्चरण उत्पादों पर लगने वाला टैरिफ 39 प्रतिशत था, यह केवल उस समय की बात है जब अमेरिका और नई दिल्ली के रिश्तों में कुछ खटास थी। इस लिहाज से देखें तो भारत को ट्रंप के टैरिफ अटैक में एक तरह से राहत ही मिली है और भारत सरकार के लिए यह एक कूटनीतिक जीत ही है।
तीसरा पहलू है कि यहां से टैरिफ सिचुएशन कैसे आगे बढ़ती है और 2 अप्रैल से लागू हुए इन टैरिफ पर अमेरिका के ट्रेड पार्टनर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं। जिन देशों या समूहों पर अभी तक कम टैरिफ लगता रहा है जैसे कि यूरोपीय यूनियन, जापान, या ऑस्ट्रेलिया और चीन भी इस टैरिफ पर प्रतिक्रिया देने के संकेत जाहिर कर चुका है। इसके परिणामस्वरूप एक तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो सकती है। हालांकि, भारत के केस में ऐसा नहीं होने की उम्मीद है क्योंकि भारत को थोड़ी राहत तो निश्चित तौर पर मिली है और प्रस्तावित द्विपक्षीय डील के चलते इन टैरिफ के कम होने की उम्मीद भी है।
गौर करने वाली बात है कि किसी भी टैरिफ वॉर की कीमत स्पष्ट तौर पर दोनों पक्षों को चुकानी होगी, इसलिए दोनों की प्राथमिकता इसे नजरअंदाज करना है। इसके बजाय, भारत के लिए यह समझदारी होगी कि वह अपने स्वयं के हाई टैरिफ में कटौती करके रियायतें प्राप्त करने पर ध्यान फोकस करे। अमेरिका के टैरिफ, भारत को अपने अन्य ट्रेड पार्टनर्स के साथ बातचीत करने का मौका भी देते हैं ताकि मौजूदा वक्त में बिजनेस में मौजूद बाधाओं को कम किया जा सके।