Justice BR Gavai: 14 मई को देश के 52 वें चीफ जस्टिस की शपथ लेने जा रहे जस्टिस बी आर गवई दूसरे अनुसूचित जाति के और पहले बौद्ध जज होंगे। अमरावती के कांग्रेस नगर इलाके में अपने घर में जस्टिस बीआर गवई की मां कमलताई ब्लेसिंग्स को गिन रही हैं। वह मजाकिया लहजे में पूछती हैं, ‘मेरे बच्चे को मुकद्दर का सिकंदर बनना ही चाहिए न।’ जस्टिस गवई के सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या वह दिल्ली में शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होंगी या नहीं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस बीआर गवई की मां के हाथ में एक पुरानी फाइल हैं और अपने बेटे की कुछ तस्वीरें हैं। यह उनके बेटे के जन्म से लेकर सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष पद तक पहुंचने की यात्रा की हैं। जस्टिस गवई दलित समुदाय से भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले दूसरे व्यक्ति होंगे। 2007 में पूर्व सीजेआई केजी बालाकृष्णन पहले दलित सीजेआई बने और तीन साल तक सेवा की। जस्टिस गवई का छह महीने का कार्यकाल 23 नवंबर को खत्म हो जाएगा।
1950 से लेकर अभी तक सुप्रीम कोर्ट में केवल एससी या एसटी कैटेगरी से केवल सात ही जज रहे हैं। 24 नवंबर 1960 को जन्मे जस्टिस गवई तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई (1929-2015) अंबेडकरवादी संगठन रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के संस्थापक थे। अमरावती से लोकसभा सांसद रामकृष्ण सूर्यभान गवई ने 2006 से 2011 के बीच बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल के तौर पर काम किया। उस वक्त केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सत्ता में थी।
CJI की कुर्सी पर बैठने वाले पहले बौद्ध होंगे जस्टिस बीआर गवई
सामाजिक कार्यों की वजह से जस्टिस बीआर गवई के पिता को लंबे समय तक दूर रहना पड़ता था। उन्हें चिंता थी कि उनके बच्चे राजनेताओं के बच्चों की तरह बिगड़ जाएंगे। कमलताई ने काम संभाला और तय किया कि जस्टिस गवई घर के कामों में उनकी मदद करें। इसमें खाना बनाना, बर्तन धोना, खाना परोसना और बाद में खेती करना और देर रात बोरवेल से पानी निकालना शामिल है। जस्टिस गवई की मां ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान, भले ही हमारी आर्थिक स्थिति खराब थी, लेकिन सैनिक फ्रेजरपुरा इलाके में हमारे छोटे से घर में खाना खाते थे और भूषण कई कामों में मेरी मदद करता था।’
जस्टिस गवई ने ज्यादातर अपना बचपन अमरावती के फ्रीजरपुरा यहूदी बस्ती में बिताया। यहां पर उन्होंने 7वीं क्लास तक नगरपालिका मराठी-माध्यम स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने मुंबई , नागपुर और अमरावती में समय बिताया। अमरावती के एक कारोबारी रूपचंद खंडेलवाल नगरपालिका स्कूल में उनके सहपाठी थे। वह कहते हैं, ‘उस समय उनके पास एक छोटी सी झोपड़ी थी, जिसे बाद में फिर से बनाया गया और परिवार ने उसे बेच दिया। झुग्गी में अलग-अलग जातियों और धर्मों के मजदूर रहते थे। हमारे स्कूल में कोई बेंच नहीं थी और हम फर्श पर बैठते थे। भूषण मददगार विनम्र और वंचितों के प्रति दयालु थे।’ कौन हैं जस्टिस गवई जो होंगे अगले CJI