चेन्नई की एक महिला कोर्ट ने सोमवार को 2024 के अन्ना यूनिवर्सिटी रेप केस में सजा सुनाई है। अदालत ने मामले के एकमात्र आरोपी ए ज्ञानशेखरन को बिना किसी माफी और छूट की संभावना के आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने आदेश दिया कि उसे कम से कम 30 साल जेल में रहना होगा और उस पर 90,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
महिला अदालत की न्यायाधीश एम राजलक्ष्मी ने भारतीय न्याय संहिता (BNS), सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम के तहत बलात्कार, अपहरण और आपराधिक धमकी सहित 11 आरोपों में ज्ञानशेखरन को दोषी ठहराए जाने के चार दिन बाद यह सजा सुनाई। अदालत का यह फैसला 19 वर्षीय छात्रा द्वारा 24 दिसंबर, 2024 को शिकायत दर्ज कराने के लगभग 6 महीने बाद आया।
पुलिस के अनुसार, 23 दिसंबर की रात को छात्रा और उसका एक दोस्त विश्वविद्यालय परिसर में बैठे थे तभी सड़क किनारे बिरयानी बेचने वाले ज्ञानशेखरन उनके सामने आया। 37 वर्षीय ज्ञानशेखरन का आपराधिक रिकॉर्ड काफी लंबा है। उसने उन दोनों का वीडियो रिकॉर्ड करने का नाटक किया और फुटेज को सार्वजनिक करने की धमकी देकर उन्हें अलग कर दिया। इसके बाद उसने एक सुनसान जगह पर महिला के साथ यौन उत्पीड़न किया और अपने मोबाइल फोन पर इस कृत्य को रिकॉर्ड कर लिया। इसके बाद उसने उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश की और धमकी दी कि अगर उसने उसकी मांगें पूरी नहीं कीं तो वह वीडियो उसके पिता और कॉलेज के अधिकारियों को भेज देगा।
हालांकि, छात्रा चुप नहीं रही, उसने अपने परिवार और कॉलेज के सहयोग से उसने अगले दिन कोट्टूरपुरम ऑल विमेन पुलिस स्टेशन का दरवाजा खटखटाया जिसके बाद 25 दिसंबर को ज्ञानशेखरन को गिरफ्तार कर लिया गया।
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इस मामले ने राष्ट्रीय स्तर पर तब सुर्खियां बटोरीं जब पीड़िता की पहचान वाली एफआईआर आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड की गई, जिसे बाद में मीडियाकर्मियों के बीच प्रसारित किया गया। मद्रास उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे का स्वतः संज्ञान लिया और एफआईआर के लहजे (जिसे पीड़िता पर दोषारोपण के रूप में देखा गया) और परिसर में सुरक्षा चूक, दोनों के लिए तमिलनाडु पुलिस को फटकार लगाई।
हाईकोर्ट ने जांच की जिम्मेदारी संभालने के लिए वरिष्ठ महिला आईपीएस अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन किया। स्नेहा प्रिया, अयमान जमाल और एस बृंदा के नेतृत्व वाली एसआईटी ने 24 फरवरी को 100 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की।
सजा सुनाने के दौरान बचाव पक्ष ने ज्ञानशेखरन की वृद्ध मां और छोटी बेटी का हवाला देते हुए नरमी बरतने की अपील की। हालांकि, अभियोजन पक्ष ने इस दलील का कड़ा विरोध किया और अधिकतम सजा की मांग की। न्यायाधीश राजलक्ष्मी ने अभियोजन पक्ष की दलील को सही ठहराया और हमले को संस्थागत कमजोरियों का फायदा उठाने वाला एक पूर्व नियोजित कृत्य बताया। बिना किसी छूट के आजीवन कारावास की सजा देने के अदालत के फैसले को परिसरों में यौन हिंसा के विरुद्ध एक कड़ा संदेश देने के रूप में देखा गया है। पढ़ें- देशभर के मौसम का हाल