Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में नए सिरे से खिचड़ी पक रही है क्योंकि राज्य के डिप्टी सीएम और एनसीपी चीफ अजित पवार ने चाचा शरद पवार से मुलाकात की है। एनसीपी में दो फाड़ होने के बाद और एनसीपी का अधिकार अजित पवार को मिलने के बाद शरद पवार ने NCP (SP) का गठन किया था। चाचा भतीजे की इस मुलाकात के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या दोनों ही पार्टियों का विलय हो जाएगा?

पुणे के साखर संकुल में हुई शरद और अजित पवार की मुलाकात को लेकर खास बात यह रही कि मुलाकात एनसीपी प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल के आवास पर बंद कमरे में हुई थी। ऐसे में जब बैठक खत्म होने के बाद अजित पवार वहां से जा रहे थे, तो उस दौरान मीडिया से बातचीत में अजित पवार से विलय को लेकर सवाल पूछा तो डिप्टी सीएम ने इस मामले में उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया।

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वहीं जब इस मामले एनसीपी प्रवक्ता संजय तटकरे से बात की गई तो उन्होंने कहा कि दोनों गुटों के संभावित विलय के बारे में अटकलें लगाई जा रही हैं। इस बारे में केवल दोनों दलों का शीर्ष नेतृत्व ही टिप्पणी करेगा। वहीं विलय के बारे में पूछे जाने पर शरद पवार ने हाल ही में कहा था कि उनकी बेटी और सांसद सुप्रिया सुले पार्टी विधायकों और सांसदों के साथ चर्चा करने के बाद निर्णय लेंगी।

ध्यान देने वाली बात यह है कि इससे पहले जब सुप्रिया सुले से विलय को लेकर सवाल किया गया था तो उन्होंने किसी भी तरह के विचार को खारिज कर दिया था। सुप्रिया सुले ने कहा था, “अगर कुछ होना है, तो यह अजीत पवार और मेरे बीच होगा लेकिन अजीत पवार पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि विलय का कोई प्रस्ताव नहीं है। इसलिए, मैं भी यही कहना चाहती हूं। सब कुछ हवा में है।” सुप्रिया सुले ने कहा था, “उनके पिता के बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। उन्होंने कहा कि उन्हें फैसला करना है…उन्होंने जो कुछ भी कहा वह एक स्पष्ट उत्तर था।”

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एनसीपी अजित पवार गुट के एक नेता ने विलय की खबरों के लिए बिल्कुल ही ठंडा रिएक्शन दिया। उन्होंने कहा कि हम सत्ता में हैं और उनके गुट से कई लोग पहले से ही हमारे संपर्क में हैं, कुछ तो शामिल भी हो गए हैं। यह विलय की बात सिर्फ बाकी लोगों को रोकने के लिए है। मुझे नहीं लगता कि यह होगा, जब तक कि नेतृत्व का मुद्दा हल नहीं हो जाता। इसका मतलब है कि अजित पवार चाहते हैं कि शरद पवार सार्वजनिक रूप से यह कहें कि अजित ही भविष्य में पार्टी का नेतृत्व करेंगे।

साल 2023 में एनसीपी दो टुकड़ों में बंट गई थीं और इसके लिए बगावत अजित पवार ने की थी। अजित पवार चाचा शरद पवार का साथ छोड़कर अपने समर्थक विधायकों के साथ राज्य की तत्कालीन शिंदे सरकार में शामिल हो गए थे। हालांकि इस बगावत का इतिहास और वजह एनसीपी में वर्चस्व की लड़ाई रहा है।

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NCP की सियासत की बात करें तो महाराष्ट्र में सीधे तौर पर अजित पवार का दबदबा चलता था और केंद्र की राजनीति सुप्रिया सुले करती थीं। हालांकि अजित पवार एनसीपी के उत्तराधिकारी के तौर पर खुद को मजबूती के साथ पेश तो कर रहे थे लेकिन शरद पवार ने कभी उन्हें उस लेवल पर पेश नहीं किया। शरद पवार धीरे-धीरे सुप्रिया सुले को भी राज्य की सियासत में एक्टिव कर रहे थे।

2014 में केंद्र नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी थी। महाराष्ट्र में बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा था और 122 सीटें हासिल की थी। हालांकि यह तय था कि शिवसेना और बीजेप सरकार बना लेंगे लेकिन उस दौरान शिवसेना बीजेपी पर दबाव बना रही थी। इन सियासी घटनाक्रमों के बीच एनसीपी ने पहली बार बीजेपी के प्रति दिलचस्पी दिखाई थी और बाहर से सरकार को समर्थन देने का ऐलान किया था। बाद में शिवसेना सरकार में शामिल हुई थी। एनसीपी की किसी भी तरह के गठबंधन की बात आई-गई हो गई थी लेकिन यह समझ आ गया था कि एनसीपी एनडीए दिलचस्पी दिखा सकती है, जिसकी मुख्य कड़ी अजित पवार माने जाते थे।

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इंडियन एक्सप्रेस को ही दिए एक इंटरव्यू में एक बार शरद पवार ने दावा किया था 2019 में बीजेपी और एनसीपी में गठबंधन को लेकर अमित शाह और शरद पवार की मुलाकात हुई थी। शरद पवार ने ये भी कहा था कि ये मुलाकात मशहूर उद्योगपति गौतम अडानी के घर पर हुई थी। हालांकि उस दौरान भी बात नहीं बन सकी थी। 2019 में पहली बार अजित पवार ने अपने चाचा के साथ बगावत की थी क्योंकि वो बीजेपी के साथ गठबंधन करके सरकार में शामिल होने चाहते थे।

बीजेपी के प्रति अजित पवार का रुख हमेशा नर्म रहा था। 201 9 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद जब बीजेपी और शिवसेना के बीच टकराव हो रहा था, तो उस दौरान ही अजित पवार ने एक सुबह राजभवन जाकर सभी को हैरान कर दिया था। अजित पवार ने अपने विधायकों का साइन किया हुआ समर्थन पत्र दिखाकर एनडीए सरकार बनाने के लिए देवेंद्र फडणवीस से हाथ मिलाया था। नतीजा ये कि सुबह-सुबह देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी। हालांकि उस दौरान अजित पवार की नरमी काम नहीं आई थी और सभी विधायक शरद पवार के समर्थन में खड़े हो गए थे।

2019 में अजित पवार अकेले पड़ गए थे और वापस चाचा के पास चले गए थे। इसके बाद अजित पवार को शरद पवार ने शामिल तो कर लिया था लेकिन एनसीपी में उनका कद घट गया था। हालांकि इतनी बगावत के बावजूद अजित पवार को महाविकास अघाड़ी में वित्त मंत्रालय और डिप्टी सीएम का पद मिला था। दूसरी ओर बगावत के बाद शरद पवार अजित से सावधान रहने लगे थे लेकिन अजित पवार एनसीपी में रहते हुए अपना कुनबा मजबूत कर रहे थे।

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2022 में शिवसेना में दो फाड़ हुई थी और असली शिवसेना एकनाथ शिंदे के गुट को घोषित किया था। इसके चलते महाविकास अघाड़ी के तहत सरकार चला रही कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना की उद्धव ठाकरे सरकार गिर गई थी। अजित पवार सरकार से बाहर हो गए थे लेकिन 2019 से 2022 के बीच अजित पवार ने अपना कुनबा काफी मजबूत कर लिया था। नतीता कि जो हाल 2022 में एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे का किया था, कुछ वैसा ही हाल जुलाई 2023 ही अजित पवार ने चाचा शरद पवार का कर दिया था।

अजित पवार को विधायकों के समर्थन मिल गया और पार्टी सीधे तौर पर अजित पवार के हाथ में आ गई। अजित पवार शुरू से ही सरकार से ज्यादा तवज्जों पार्टी को अपने हाथ में लाने पर दे रहे थे और उनके लिए एनसीपी पर कब्जा पहली बड़ी सफलता था लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें झटका लगा था। पार्टी ने एनडीए के साथ 4 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन जीत बस एक सीट पर ही मिली थी। इतना ही नहीं, भतीजे से धोखे के बाद शरद पवार ने एनसीपी (एसपी) का जो गुट बनाया था, उसे बड़ी सफलता मिली थी, जिसके चलते एनसीपी का असली टेस्ट बाकी था, जो कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में हुआ।

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विधानसभा चुनाव में एनसीपी ने एनडीए के साथ रहते हुए बेहतरीन प्रदर्शन किया और एनसीपी ने 41 सीटें अपने नाम की। वहीं विपक्ष में बैठे चाचा शरद के गुट को महज 12 सीटें ही मिलीं, जिसने ये साबित किया कि एनसीपी का मुख्य कोर वोटर अजित पवार की ओर ही शिफ्ट कर गया है। सुप्रिया सुले से लेकर शरद पवार ने इस चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी थी लेकिन कुछ भी उनके हक में नहीं गया था।

इसके बाद से कई मौकों पर शरद पवार और अजित पवार मुलाकात कर चुके हैं। शरद पवार के जन्मदिन पर अजित पवार उनसे मिलने भी गए थे। वहीं अहम प्रसंगों में भी दोनों गुटों के दिग्गज साथ आ जाते हैं। ऐसे में विलय के सवाल लगातार उठ रहे हैं। दोनों ही फिलहाल इसे इग्नोर कर रहे हैं लेकिन अनुमान यही है कि अजित पवार बस चाचा से ये सुनना चाहते हैं कि उनके उत्तराधिकारी वही होंगे। वहीं पार्टी पर कब्जा करने में कामयाबी हासिल करने के बाद अजित पवार अब विलय की संभावनाओं को लेकर भी काफी सतर्क हैं।

अजित पवार गुट शरद पवार से यह सार्वजनिक रूप से कहलवाना चाहता है कि अजित ही पार्टी का नेतृत्व करेंगे। इससे अजित पवार के नेतृत्व को और भी ज्यादा अहमियत मिलेगी। वे चाहते हैं कि शरद पवार यह घोषणा करें कि अजित ही पार्टी के अगले नेता होंगे। इससे अजित पवार को पार्टी में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद मिलेगी। साथ ही यह तय हो जाएगा कि अजित उत्तराधिकार की जंग जीत चुके हैं।

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