World Environment Day 2025: हर साल 5 जून को दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य, वन्यजीवों और वनस्पतियों पर इसके प्रभावों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। हर साल 5 जून को मनाया जाने वाला विश्व पर्यावरण दिवस सिर्फ पेड़ों, पानी और प्रदूषण की बात तक सीमित नहीं है। बदलता पर्यावरण सीधे तौर पर हमारी सेहत पर भी गहरा असर डाल रहा है। बदले पर्यावरण का सीधा असर दिल की सेहत पर पड़ता है। बढ़ते तापमान और गर्म हवाओं यानी हीट वेव्स सिर्फ गर्मी ही नहीं करता, बल्कि ये दिल से जुड़ी समस्याओं को बढ़ाने का काम कर रहा है।

गर्मी अब सिर्फ मौसम का मिजाज नहीं रही, बल्कि यह हमारी सेहत की सबसे बड़ी दुश्मन बनती जा रही है। भारत में पिछले कुछ वर्षों में हीटवेव के कारण हार्ट से जुड़ी मौतों की संख्या तेजी से बढ़ी है। डॉक्टर्स और पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, जब तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है, तो शरीर पर स्ट्रेस बढ़ता है। इससे दिल की धड़कन तेज होती है और ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव आ सकता है, जो हार्ट अटैक या स्ट्रोक का कारण बन सकता है।

AIIMS और ICMR की रिपोर्ट्स के मुताबिक, वातावरण में बढ़ती गर्मी और प्रदूषण से हार्ट रोगों का खतरा दोगुना हो चुका है। हीटवेव से बचने के लिए दोपहर 12 से 4 बजे तक बाहर न निकलें, ढीले और हल्के रंग के कपड़े पहनें, हाइड्रेटेड रहें और घरों में ठंडा वातावरण बनाए रखें।

पारस हेल्थकेयर, गुरुग्राम के एचओपीडी, इंटरनल मेडिसिन, डॉ. आरआर दत्ता के अनुसार, मानव शरीर पसीने और त्वचा में रक्त के प्रवाह को बढ़ाकर अपने आंतरिक तापमान को कंट्रोल करता है। हालांकि, अत्यधिक गर्मी के दौरान, यह थर्मोरेगुलेटरी सिस्टम बिगड़ सकता है। जब शरीर खुद को ठंडा करने के लिए संघर्ष करता है, तो हार्ट को रक्त पंप करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है, जिससे तनाव बढ़ता है और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।

इसके अलावा पर्यावरणीय प्रदूषण जैसे वाहनों से निकलता धुआं, औद्योगिक कचरा और धूल-मिट्टी हवा को जहरीला बना रही हैं, जिससे न सिर्फ श्वसन तंत्र, बल्कि हार्ट भी प्रभावित होता है। पीएम 2.5 जैसे सूक्ष्म कण ब्लड फ्लो में घुसकर हार्ट की धमनियों को नुकसान पहुंचा।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भुवनेश्वर के शोधकर्ताओं द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि भारतीय शहरों में तापमान वृद्धि की 60 प्रतिशत प्रवृत्ति के लिए अकेले शहरीकरण ही जिम्मेदार है। नेचर जर्नल में प्रकाशित निष्कर्षों से पता चला है कि भूमि के केवल एक प्रतिशत हिस्से पर कब्जा होने के बावजूद, शहरों में दुनिया की आधी से अधिक आबादी रहती है।

भारत में पर्यावरण रक्षा कोष के मुख्य सलाहकार हिशाम मुंडोल ने कहा कि गर्म लहरें मुख्यतः जलवायु परिवर्तन और मौसम के पैटर्न में व्यवधान के कारण होती हैं। इसके लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और वन क्षेत्र को बढ़ाने की आवश्यकता है।

वहीं, जर्नल ऑफ अफेक्टिव डिसऑर्डर्स में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, खराब लाइफस्टाइल के कारण तनाव होता है और इससे मेंटल हेल्थ पर असर पड़ता है।