Sikkim Flood: भारत का दूसरा सबसे छोटा राज्य सिक्किम अपनी खूबसूरती, बायोडायवर्सिटी के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। पर्यटकों के लिए यहां के गगनचुंबी पर्वत, वहां पड़ी सफेद चादर किसी जन्नत से कम नहीं है। लेकिन उस जन्नत को पिछले कुछ सालों में मौसम की नजर लगी है, जो बारिश कभी लोगों के चेहरे पर मुस्कान लेकर आती है, मिट्टी की खुशबू दिल खुश कर देती है, अब वहीं बारिश आफत, बर्बादी और मौत की कहानी लिख रही है।

सिक्किम बदल चुका है, वहां का मौसम बदल गया है, वहां की स्थिति उतनी अनुकूल दिखाई नहीं देती है। खासतौर पर बात जब नॉर्थ सिक्किम की होती है तो वहां बारिश जरूरत से ज्यादा हो रही है, लैंडस्लाइड भी भारी नुकसान पहुंचा रही है। इसके ऊपर ग्लोबल वॉर्मिग का असर भी दिखने लगा है। 2023 में सिक्किम में फ्लैश फ्लड आए थे, कई लोगों की जान गई, पर्यटक फंसे रहे और भारी नुकसान उठाना पड़ा। अब 2025 में फिर वैसी स्थिति दिख रही है, फिर फ्लैश फ्लड आए हैं, फिर पर्यटक फंस गए हैं और रेस्क्यू करना चुनौती बन रहा है।

आखिर सिक्किम के साथ ये सबकुछ क्यों हो रहा है, बारिश तो दूसरी जगह भी होती है, कभी कम कभी ज्यादा देखने को मिलती है, लेकिन ऐसी बर्बादी क्यों? इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए हमने मौसम विभाग के विशेषज्ञ डॉक्टर गोपी नाथ से खास बातचीत की। वे वर्तमान में सिक्किम के मौसम पर नजर रखते हैं, वहां की भौगोलिक स्थिति को काफी बेहतर तरीके से समझते हैं। उन्होंने हमे मानसून के व्यवहार बारे में समझाया है, पहाड़ों की ओरोग्राफी भी बताई और सिक्किम पर भी विस्तार से बात की है।

डॉक्टर गोपी नाथ सिक्किम को लेकर कहते हैं कि पहाड़ भी काफी अलग तरीके के होते हैं, पहाड़ के एक साइड पर आपको भारी बारिश देखने को मिल सकती है तो वहीं पहाड़ के दूसरे हिस्से पर आपको कोई बारिश नहीं मिलेगी। पहाड़ी और मैदानी इलाकों में भी फर्क होता है। प्लेन इलाकों में आपको मौसम थोड़ा एक समान ही दिखता है, दिल्ली को ही ले लीजिए, संभव है कि कहीं तेज बारिश हो तो कहीं थोड़ी धीमी, लेकिन लगभग मौसम एक जैसा ही रहता है। लेकिन पहाड़ों की ऑरोग्राफी अलग होती है, वहां मौसम पूरी तरह बदल जाता है।

गोपी नाथ आगे कहते हैं कि कुछ सालों का ट्रेंड अगर देखें तो मानसून जब ऑनसेट होता है, उसकी शुरुआत केरल से होती है, फिर नॉर्थ ईस्टन स्टेट्स की तरफ वो बढ़ता है, फिर बंगाल और सिक्किम की ओर बढ़ जाता है। अब देखिए वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की वजह से पहाड़ों पर बारिश होती है। सर्दियों में इस वजह से बारिश होती है, फिर प्री मानसून के वक्त इसी कारण से वहां बरसात होती है। लेकिन जैसे ही यह मानसून ऑनसेट होता है, तब वेस्टर्न डिस्टर्बेंस पहाड़ों पर और ज्यादा नॉर्थ की तरफ शिफ्ट करता है, तब अचानक से ज्यादा बारिश होती है या हम कह सकते हैं बर्स्ट होता है। पिछले कुछ सालों को देखें तो जून महीने में इसी तरह से ज्यादा बारिश हो रही है। पिछले साल भी 100 फीसदी से भी ज्यादा बारिश दर्ज हुई थी।

वैसे डॉक्टर गोपी नाथ के मुताबिक सिर्फ ज्यादा एक दिन में ज्यादा बारिश होने से लैंडस्लाइड वाली स्थिति नहीं बनती है, इसी सीधे तरीके से ऐसी प्राकृतिक आपदा के लिए जिम्मेदार भी नहीं माना जा सकता है। वे जोर देकर कहते हैं कि अगर तीन से चार सेंटीमटर भी बारिश लगातार होती रहेगी तो उस स्थिति में भी उसका जो कुल प्रभाव होगा, वो ज्यादा देखने को मिल सकता है, नुकसान की पूरी संभावना है। अब इसी तरह की जब तबाही हो रही हो, सवाल आता है कि क्या नॉर्थ सिक्किम पर्यटकों के लिए अब सुरक्षित जगह नहीं है?

अब जब हमने एक्सपर्ट से इस बारे में जानने की कोशिश की तो उन्होंने कोई सीधा जवाब नहीं दिया, उनका साफ कहना था कि इस तरह के सवाल पर कमेंट करना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। उन्होंने बस इस बात को स्वीकार किया कि सिक्किम में बारिश काफी ज्यादा हो रही है, इस बार भी हुई है। उनका साफ कहना है कि नॉर्थ सिक्किम के कई इलाके ना सिर्फ आंधी-तूफान के लिए संवेदनशील हैं बल्कि बारिश भी वहां ज्यादा होती है, ऐसे में लैंडस्लाइड का खतरा तो बना रहता है।

इस समय ग्लोबल वॉर्मिंग का हर कोई जिक्र करता है, सिक्किम में आई तबाही को भी कई बार इससे जोड़कर देखा जाता है। तो क्या माना जा सकता है कि सिक्किम में जो अप्रत्याशित बारिश देखने को मिल रही है, वो ग्लोबल वॉर्मिंग के वजह से ही है? डॉक्टर गोपी नाथ तो ऐसा नहीं मानते हैं। इस पूरे प्रोसेस को लेकर उनका कहना है कि सिर्फ सिक्किम ही नहीं बल्कि हर जगह जो मिनिमम टेंपरेचर है, वो बढ़ रहा है। ये सही बात है कि सर्दियों में जरूर जो मिनिमम टेंपरेचर है, वो थोड़ा बढ़ चुका है, लेकिन उस वजह से क्या ज्यादा बारिश हो ही है, हम ऐसा नहीं कह सकते। अभी ऐसा डेटा मौजूद नहीं है जिससे दोनों ही चीजों के बीच में कोई सीधा कनेक्शन निकाला जा सके। आप बोल सकते हैं कि इस वजह से ग्लेशियर की मेल्टिंग हो रही हो, लेकिन इस वजह से बारिश हो रही है, अभी और रिसर्च की जरूरत है।

अब एक्सपर्ट बारिश के नेचर को लेकर तो विस्तार से बता ही रहे हैं, सिक्किम को लेकर कई रिसर्च भी हुई हैं जो बताती हैं कि पिछले कुछ सालों में यहां कई झीलें बन चुकी हैं। 1965 के बाद से ही कई लेक्स बनी हैं और बड़ी बात यह है कि वो लेक्स बड़ी होती जा रही हैं। यहां भी सिक्किम में जिस झील का आकार सबसे तेजी से बढ़ा है, वो ईस्टर्न हिमालय की South Lhonak लेक है। 2023 में ही इसी लेक की वजह से भारी तबाही हुई थी, अभी भी सबसे ज्यादा खतरा इसे लेकर बना हुआ है। सिक्किम में जिस तरह से हर साल बारिश के बाद ऐसी तबाही हो रही है, इसे जानकार क्लाइमेट इमजरेंजी भी मानते हैं।

क्लाइमेट इमरजेंसी का मतलब होता है कि पर्यावरण पर भयंकर असर पड़ना शुरू हो चुका है और जल्द से जल्द कुछ कदम उठाने की जरूरत है। इस स्थिति में समझने की जरूरत है कि धरती पर मौसम तेजी से बदल रहा है, जलस्तर भी तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में किस तरह से विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बैठाया जाए, यही सबसे जरूरी सवाल है और शायद सिक्किम का आगे का भविष्य भी इसी पर टिका हुआ है।

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