गर्मी के मौसम में जैसे-जैसे दिन बढ़ने लगते हैं वैसे-वैसे तापमान बढ़ने लगता है। बढ़ते तापमान का असर सेहत के साथ-साथ दिमाग पर भी होता है। जिसके चलते कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। बदलता पर्यावरण सीधे तौर पर हमारी सेहत पर भी गहरा असर डाल रहा है। बदले पर्यावरण का सीधा असर दिल और दिमाग की सेहत पर पड़ता है। बढ़ते तापमान और गर्म हवाओं यानी हीट वेव्स से सेहत को बहुत नुकसान पहुंच सकता है। इसके चलते हीट स्ट्रोक और डिहाइड्रेशन का खतरा अधिक बढ़ जाता है। कई शोध के अनुसार, गर्म तापमान के लंबे समय तक संपर्क में रहने से भावनात्मक स्थिति, मूड रेगुलेशन और फिलिंग पर असर पड़ता है।
क्षेमवन नेचुरोपैथी और योग केंद्र के डॉ. नरेंद्र के शेट्टी के अनुसार, ज्यादा गर्मी शरीर की शारीरिक तनाव प्रतिक्रिया को बढ़ाती है, जिससे कोर्टिसोल और एड्रेनालाईन का लेवल बढ़ जाता है। शरीर की शारीरिक प्रतिक्रिया अत्यधिक चिंता, चिड़चिड़ापन और बेचैनी का कारण बन सकती है। लोग भावनात्मक रूप से अधिक प्रतिक्रियाशील, चिड़चिड़े या आक्रामक हो जाते हैं। गर्मी मूड विकारों को भी जन्म देती है और पहले से मानसिक विकार वाले लोगों में उदासी, मूड में उतार-चढ़ाव और भावनात्मक अस्थिरता का कारण बनती है।
गर्मी के सबसे ज्यादा नींद पर असर पड़ता है। गर्म रातों में सोना मुश्किल होता है और दिन में थका हुआ और भावनात्मक रूप से चिड़चिड़ा होता है। नींद की यह कमी मनोवैज्ञानिक लचीलापन को नष्ट कर देती है, तनाव का प्रतिरोध करने की क्षमता को कम करती है और मानसिक स्वास्थ्य के टूटने की संभावना को बढ़ाती है।
डॉ. नरेंद्र के शेट्टी ने बताया कि गर्मी सिर्फ पसीना और थकान ही नहीं लाती, यह हमारे शरीर के सबसे संवेदनशील अंग दिमाग पर भी गहरा असर डाल सकती है। वैज्ञानिकों और न्यूरोलॉजिस्ट्स का मानना है कि बढ़ता तापमान न केवल शरीर को डिहाइड्रेट करता है, बल्कि मस्तिष्क की कार्यक्षमता को भी धीमा कर देता है।
गर्मी में जब शरीर पानी की कमी हो जाता है, तो मस्तिष्क में मौजूद न्यूरॉन्स का संचार धीमा पड़ जाता है। इससे चलते सोचने की गति, निर्णय लेने की क्षमता और कंसंट्रेशन करने पर असर पड़ता है।
हाई तापमान के चलते चिंता, चिड़चिड़ापन और अवसाद यानी डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याएं हो सकती हैं। इसके चलते कामकाज प्रभावित होने लगता है।
हीट स्ट्रोक तब होता है, जब शरीर खुद को ठंडा नहीं रख पाता और कोर बॉडी टेम्परेचर 104°F से ऊपर चला जाता है। यह मस्तिष्क की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त कर सकता है, जिससे अस्थायी या स्थायी ब्रेन डैमेज हो सकता है।
वहीं, जर्नल ऑफ अफेक्टिव डिसऑर्डर्स में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, खराब लाइफस्टाइल के कारण तनाव होता है और इससे मेंटल हेल्थ पर असर पड़ता है।