मां बनना किसी भी महिला के लिए बेहद सुखद होता है। प्रेग्नेसी के 9 महीनों में महिलाओं की बॉडी में कई तरह के बदलाव और परेशानियां होती है जो उनकी सेहत को कई तरह से प्रभावित करती हैं। प्रेग्नेंसी के आखिरी दो महीने महिलाओं के लिए ज्यादा जोखिम भरे होते हैं। इस दौरान महिलाओं को बॉडी को एक्टिव रखने की, डाइट का ध्यान रखने की बहुत जरूरत होती है। इस दौरान पेट में बच्चे की पोजीशन में कई बार बदलाव आता है।

गर्भ में बच्चा लगातार हिलता-डुलता और घूमता रहता है, खासकर 32 से 36 सप्ताह तक। 36 वें हफ्ते में  बच्चा हेड-डाउन पोजिशन (सिर नीचे, पैर ऊपर) में आ जाता है जिसे Cephalic Presentation कहते हैं यह नॉर्मल डिलीवरी के लिए आदर्श पोजिशन मानी जाती है। लेकिन कुछ बच्चे हेड-डाउन पोजिशन में नहीं होते या उनकी पॉजिशन चेंज होती है तो ऐसे बच्चे की डिलीवरी सिजेरियन कराना पड़ती है।

किसी भी महिला की सिजेरियन डिलीवरी के लिए कई कारण जिम्मेदार होते हैं जैसे प्रेग्नेंसी में हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ और प्लेसेंटा प्रिविया जैसी स्थितियों में बच्चे का जन्म सी-सेक्शन डिलीवरी द्वारा ही सुरक्षित विकल्प माना जाता है। अगर बच्चा उल्टा (ब्रीच पोजीशन) है या गर्दन में नाल फंसी हो तो सी-सेक्शन किया जाता है। जुड़वां बच्चे या उससे अधिक बच्चों की डिलीवरी में सी-सेक्शन कारगर उपाय है। जिन महिलाओं का पहले भी सिजेरियन डिलीवरी हो चुकी है,अक्सर डॉक्टर अगली डिलीवरी में जोखिम से बचने के लिए उन्हें सी-सेक्शन की सलाह देते हैं।

एशियन हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट प्रसूति ​​स्त्री रोग और रोबोटिक सर्जन डॉ. उषा प्रियंबदा ने बताया अगर पहली बार डिलीवरी में बच्चा उल्टा है,महिला की हाइट काफी छोटी है, लेबर में बच्चे की धड़कन ऊपर-नीचे होने से सिजेरियन डिलीवरी कराई जाती है। अगर महिला की दूसरी डिलीवरी है और उसको पेन देने के बाद भी बच्चा नीचे नहीं आता, या महिला के पुराने टांकों पर जोर पड़ने लगता है तो उस स्थिति में सिजेरियन डिलीवरी कराई जाती है। अब सवाल ये उठता है कि किसी महिला की पहली डिलीवरी सिजेरियन हुई है तो उसकी दूसरी डिलीवरी भी सिजेरियन होगी,एक महिला कितनी बार सिजेरियन डिलीवरी करा सकती है। इन सभी सवालों का जवाब महिलाओं की डॉक्टर से जानते हैं।

एक्सपर्ट ने बताया कि एक महिला 3-4 बार सिजेरियन करा सकती है। विदेशों में महिलाएं इससे ज्यादा भी सिजेरियन डिलीवरी कराती है लेकिन भारत में महिलाएं सिर्फ 3-4 ही सिजेरियन कराती हैं।

बार-बार सिजेरियन सेक्शन करने से क्या खतरा हो सकता है?

बार-बार सिजेरियन डिलीवरी कराने से महिला को हाई रिस्क रहता है। एक्सपर्ट ने बताया महिला के जितने सिजेरियन होते जाते हैं उतना ही पेशेंट के लिए हीलिंग का इश्यू होता है। सी सेक्शन किया जाने वाला एरिया वीक होता रहता है। इस स्थिति में टांके फटने का रिस्क बढ़ता जाता है। एक्सपर्ट ने बताया ओवन नाल (placenta) की एक आदत होती है जहां भी उसे निशान दिखता है वो वहां जाकर चिपक जाता है, जो बहुत खराब स्थिति होती है जो महिला के लिए बहुत रिस्की कंडीशन होती है। ये धीरे-धीरे स्टिच लाइन और पेशाब की थैली को खा जाता है

एक्सपर्ट ने बताया अगर महिला की पहली डिलीवरी सी सेक्शन से हुई है तो उसे दूसरी प्रेग्नेंसी 3 साल बाद ही प्लान करना चाहिए। तीन साल में बॉडी में हीलिंग अच्छी तरह होती है।

आज कल सी सेक्शन बहुत आसान हो गया है। आज कल टांके खुद डिजॉल्व हो जाते है तो महिलाओं को ज्यादा दिक्कत नहीं होती। आज कल महिलाओं को सी सेक्शन डिलीवरी के बाद ही कहा जाता है कि आप बॉडी को एक्टिव रखें। अपना काम खुद करें। महिला की कंडीशन ज्यादा खराब है तो एक दिन का रेस्ट दिया जाता है। इस दौरान महिला को ज्यादा रेस्ट देने से पांव में ब्लड क्लोटिंग का खतरा बढ़ने लगता है। ज्यादा आराम करने से महिला को गैस, एसिडिटी और कब्ज होने लगता है। सिजेरियन डिलीवरी के तीसरे दिन महिला नहाएं, अपना और अपने बच्चे का काम खुद करें उसकी सेहत के लिए बेहतर होता है।

एक्सपर्ट ने बताया अगर आपकी सी सेक्शन या नॉर्मल ही डिलीवरी हो रही है तो आप घी का सेवन भर-भर कर नहीं करें। आप सी सेक्शन डिलीवरी के बाद हैवी फूड्स का सेवन नहीं करें आप नॉर्मल डाइट लें। एक्सपर्ट ने बताया पहले की महिलाओं के मुताबिक आज की महिलाओं का लाइफस्टाइल पूरी तरह चेंज है, इसलिए आज की महिलाएं घी का सेवन नहीं करें। इस दौरान महिलाओं की फिजीकल एक्टिविटी कम है इसलिए उन्हें घी का ज्यादा नहीं करना चाहिए उससे बॉडी में फैट बढ़ सकता है।

एक्सपर्ट ने बताया सी सेक्शन डिलीवरी के बाद महिलाएं प्रोटीन डाइट लें। डाइट में पनीर, दालें और मटन का सेवन करें। आप दूध का सेवन करें। दूध में प्रोटीन पाउडर का सेवन करें। आप डाइट में घी पंजीरी नहीं बल्कि आप सूखे ड्राई फ्रूट का सेवन करें। आप डाइट में मखाना, बादाम और अखरोट का सेवन करें। महिलाएं स्प्राउट का सेवन करें। फलों और सब्जियों का सेवन करें। जूस से परहेज करें  और पानी का सेवन ज्यादा करें।

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