भारत की आर्थिक तरक्की की दुनिया भर में चर्चा है। यह दुनिया में पाचवीं बड़ी आर्थिक शक्ति बन गया है। दो वर्ष में यह तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाएगा, ऐसा दावा किया गया है। अमेरिका का सकल घरेलू उत्पादन 30 लाख करोड़ डालर है और हम भी 2047 में यही संकल्प सिद्ध करने की योजना बना रहे हैं। इस समय संकल्प से सिद्धि की ओर एक महायात्रा भी चल रही है, जिसमें यह कहा जा रहा है कि पिछले 11 वर्ष में हमने अभूतपूर्व तरक्की की है और 11वें पायदान से हम दुनिया की पांचवीं आर्थिक महाशक्ति बन गए। मगर कहते हैं न कि सितारों से आगे जहां और भी है। तो भारत का लक्ष्य है और उसका संकल्प है दुनिया का सबसे ताकतवर देश बनना। वह तो अमेरिका को भी चुनौती देना चाहता है। देखने की बात है कि यह सपना पूरा कब होता है।

फिलहाल तो यह स्पष्ट है कि हमारी आबादी दुनिया में सबसे अधिक हो गई है। कोई दो मत नहीं कि हमारी श्रमशक्ति का कोई जवाब नहीं। हमारा उपभोक्ता बाजार दुनिया में सबसे बड़ा है, जो चीन को भी छका सकता है। इसके साथ यह भी कि हम डिजिटल ताकत, कृत्रिम मेधा और रोबोटिक शक्ति में पश्चिमी देशों से कम भी नहीं। हमारे अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो की पूरी दुनिया में चर्चा है। दूसरे देशों के मुकाबले सबसे किफायत के साथ इसके अभियान पूरे होते हैं।

चंद्रयान-3 द्वारा हमने रूस जैसे देशों को पछाड़ कर चंद्रमा के दक्षिणी भाग में उतरने का गौरवपूर्ण कार्य सिद्ध किया। आज इसरो अंतरिक्ष उपग्रहों का प्रक्षेपण व्यावसायिक रूप से शुरू कर चुका है। उम्मीद है कि इससे हम अपने देश के खजाने को और भर लेंगे। फिर एक दिन आयात आधारित अर्थव्यवस्था से निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बन जाएंगे। जहां तक डिजिटल भुगतान का संबंध है, हमने इसमें भी खूब तरक्की की है और यही एक ऐसा देश है, जहां कहा जाता है कि लगभग सभी के पास मोबाइल फोन है।

आने वाले दिनों में विश्व की आर्थिकी और भारत के नेतृत्व के बारे में सोचते हैं, तो यहां भी अच्छी बातें हमारे सामने आती हैं। दक्षिण एशिया में अगर कोई देश अपनी उपलब्धियों से सबको चौंका रहा है, तो वह भारत ही है। यहां तक कि समृद्ध देशों ने भी पर्यावरण प्रदूषण और वैश्विक ताप से जूझने का सारा बोझ भारत के कंधे पर डाल दिया है। वह इसे निभाने के लिए तैयार है, लेकिन समृद्ध देश अपना वाजिब आर्थिक योगदान देने के लिए भी तैयार नहीं। इसीलिए आज भारत ही नहीं, दुनिया भर का कृषि और व्यापार पर्यावरण प्रदूषण एवं असाधारण मौसम की मार झेल रहा है। कहा जा रहा है कि आने वाले वर्षों में विश्व भर के सकल घरेलू उत्पादन पर बड़ा दबाव पड़ेगा। दुनिया अर्थव्यवस्था व्यापार नीति के झटकों को सहेगी और कृत्रिम मेधा से पैदा हो रही शक्ति से अधिक उसकी चुनौतियों पर चिंता करेगी।

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विश्व आर्थिक मंच की एक नई रपट का कहना है कि इन झटकों से वैश्विक जीडीपी की वृद्धि पर दबाव पड़ेगा, लेकिन मुख्य अर्थशास्त्री निजी और सार्वजनिक क्षेत्र का सर्वेक्षण करते हैं, तो पाते हैं कि दक्षिण एशिया इन झटकों से उबरने में कामयाब हो जाएगा और भारत इनमें आगे होगा। यह भी कहा जा रहा है कि दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत इस वृद्धि का प्राथमिक इंजन बनने के लिए तैयार है। विश्व आर्थिक मंच ही नहीं, रिजर्व बैंक को भी भरोसा है कि भारत 2025 में 6.2 फीसद और 2026 में 6.3 फीसद जीडीपी की रफ्तार से बढ़ सकता है। इसके मुकाबले में विश्व आर्थिक मंच कहता है कि चीन का पिछड़ जाना संभव है। अर्थशास्त्री इस बात से भी पूरी तरह सहमत नहीं कि चीन इस साल पांच फीसद की अपनी जीडीपी दर के बराबर भी पहुंच सकेगा या नहीं। कृत्रिम मेधा की ताकत के नकारात्मक प्रभाव की चिंता अलग है। अर्थशास्त्री मानते हैं कि कृत्रिम मेधा से नौकरियां जाएंगी। कारोबारी तरीके बदलने पड़ेंगे। जो देश पुराने कारोबारी माडलों से चिपके रहेंगे, वे पिछड़ जाएंगे।

कई अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि कृत्रिम मेधा गलत सूचना को प्रामाणिक सत्य के तौर पर पेश कर देगी, जिससे सामाजिक अस्थिरता फैल सकती है। इसलिए दुनिया को सजग रहना होगा कि कृत्रिम मेधा कहीं भस्मासुर न बन जाए। अगर भारत को दुनिया के विकास का इंजन बनना है, तो उसे इस दिशा में सोचना पड़ेगा। एशिया प्रशांत में हम लोग संघर्ष करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। यूरोप सतर्क है। दूसरी ओर अर्थशास्त्री अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदा आर्थिक नीतियों से चिंतित हैं। अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने भी ट्रंप की आर्थिक नीतियों और शुल्क पर लगातार उठ रहे विवाद पर चिंता प्रकट की है। आर्थिक नीतियों में अपने लाभ के अनुसार डोनाल्ड ट्रंप जो उतार-चढ़ाव ला रहे हैं, यानी कभी चीन पर बहुत भारी कर लगा रहे हैं, तो कभी उसे राहत दे रहे हैं। इससे व्यावसायिक निर्णय अनिश्चित हो जाएंगे और अर्थव्यवस्था में मंदी का जोखिम और बढ़ जाएगा। अमेरिका में तो यह नजर भी आने लगा है।

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भारत अभी बेहतर स्थिति में है। जहां तक महंगाई का संबंध है, हमने इसके नियंत्रण की घोषणा करते हुए अपनी मौद्रिक नीतियों को बदल दिया है। हम रेपो रेट घटाने लगे हैं। ऋण प्रक्रिया को उदार बना रहे हैं। लेकिन यह महंगाई नियंत्रण का दावा भी कहीं बालू की भीत न हो जाए, क्योंकि हमारे मूल्य सूचकांक खाद्य पदार्थो की कीमतों के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करते हैं। जबकि उन्हें पूंजी निवेश के सूचकांक पर आधारित होना चाहिए था। यह सही है कि भारत ने अपने सार्वजनिक बजट में पूंजी निवेश को प्रमुखता दे दी है। वह सार्वजनिक निवेश में न लाभ न हानि के आदर्श सिद्धांत पर चल कर जन कल्याण का प्रयास कर रहा है। लेकिन इसमें नेताओं का स्वार्थ संधान और भ्रष्टाचार की घुसपैठ उसे कमजोर बना देती है। अधूरी परियोजनाएं हमारी संकल्प सिद्धि के रास्ते में अवरोध का विंध्याचल बन कर खड़ी हो जाती हैं। इस स्थिति को बदलने की जरूरत है। इसके लिए न केवल काम करने की प्रवृत्ति को बदलना होगा, बल्कि देश में राष्ट्रीयता और नैतिकता की पुनर्स्थापना भी करनी होगी।

आजकल भौतिकवाद का अंध प्रसार नैतिकता की कब्रगाह बन रहा है। भारत के पास सद्विचारों की जो पृष्ठभूमि है, उसको पाठ्यक्रम में लाया जाए। इसे ‘स्किल इंडिया योजना’ के मुताबिक पुन: तैयार किया जाए। इस समय तो स्थिति यह है कि देश में स्किल इंडिया योजना शुरू तो की गई, लेकिन हमारी युवा पीढ़ी इससे अछूती ही रह गई। बेहतर होगा कि युवा पीढ़ी को अपने देश में ही काम मिले और वह राष्ट्र निर्माण में जुटे। यही अब हमारा संकल्प होना चाहिए। संकल्प करेंगे, तभी तो सिद्धि होगी।