इलाहाबाद हाई कोर्ट से पतंजलि आयुर्वेद को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने जीएसटी कानून के तहत 273.5 करोड़ रुपये के जुर्माने को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ और विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने फैसला सुनाया कि सीजीएसटी अधिनियम की धारा 122 के तहत जीएसटी सिविल प्रकृति का हैं और टैक्स अधिकारी बिना किसी आपराधिक मुकदमे के इन्हें लगा सकते हैं।

ऑथॉरिटी ने हरिद्वार, सोनीपत और अहमदनगर में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट का संचालन करने वाली पतंजलि की जांच शुरू की, जिसमें इनकम टैक्स रिकॉर्ड के बिना हाई इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का दावा करने वाली फर्मों से जुड़े संदिग्ध लेन-देन की रिपोर्ट मिली थी।

जीएसटी खुफिया महानिदेशालय (DGGI) के अनुसार, पतंजलि कथित तौर पर सर्कुलर ट्रेडिंग में शामिल थी।

जांच के बाद, DGGI ने 19 अप्रैल, 2024 को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें CGST अधिनियम की धारा 122(1), खंड (ii) और (vii) के तहत 273.51 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव दिया गया।

इंतजार खत्म! वैष्णो देवी से सीधे कश्मीर तक जाएगी ट्रेन, इस दिन पीएम मोदी दिखाएंगे हरी झंडी

Bar और Bench के अनुसार, पतंजलि ने तर्क दिया था कि इस तरह के दंड आपराधिक प्रकृति के हैं और केवल आपराधिक मुकदमे के बाद ही लगाए जा सकते हैं। हालांकि, न्यायालय ने इससे असहमति जताई।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पिछले सु्प्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए इस बात पर फोकस किया कि टैक्स उल्लंघन के लिए दंड नागरिक दायित्व हैं और आपराधिक अपराधों के लिए दंड नहीं हैं।

कोर्ट ने कहा कि डिटेल एनालिसिस के बाद, यह साफ है कि CGST अधिनियम की धारा 122 के तहत कार्यवाही का फैसला निर्णायक अधिकारी द्वारा किया जाना है और इसके लिए अभियोजन की जरुरत नहीं है। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, फैसले में कहा गया कि टैक्स डिफॉल्ट के लिए लगाया गया जुर्माना एक नागरिक दायित्व है, जो अपनी प्रकृति में सुधारात्मक और बलपूर्वक है और यह किसी अपराध के लिए लगाए जाने वाले जुर्माने से बहुत अलग है।

सिर्फ 10,000 रुपये में शुरू करें टिफिन सर्विस का बिजनेस

एक प्रमुख डेवलपमेंट में, विभाग ने 10 जनवरी, 2025 के एक आदेश के जरिए धारा 74 के तहत अपनी टैक्स डिमांड को वापस ले लिया। इसने पाया कि सभी उत्पादों के लिए, पतंजलि ने जितना खरीदा था, उससे अधिक बेचा था यानी आईटीसी पारित किया गया था।

इसके बावजूद, अधिकारियों ने धारा 122 के तहत जुर्माना कार्यवाही जारी रखने का फैसला किया, जिसके कारण पतंजलि ने फिर से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

पतंजलि ने तर्क दिया कि चूंकि धारा 74 के तहत टैक्स डिमांट को वापस ले लिया गया था, इसलिए धारा 122 के तहत जुर्माना जारी नहीं रहना चाहिए। लेकिन न्यायालय ने माना कि दोनों धाराएं अलग-अलग उल्लंघनों को कवर करती हैं।

पीठ ने कहा कि धारा 73/74 के तहत उल्लंघन जरूरी नहीं कि सीजीएसटी अधिनियम की धारा 122 के तहत आने वाला उल्लंघन हो।

पतंजलि ने यह भी दावा किया कि चूंकि धारा 122 में “उचित अधिकारी” शब्द का उल्लेख नहीं है, इसलिए सिर्फ एक आपराधिक अदालत ही जुर्माना लगा सकती है। न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए कहा कि धारा 74 के स्पष्टीकरण 1(ii) से यह स्पष्ट होता है कि धारा 73 और 74 के तहत उचित अधिकारी धारा 122 के तहत भी कार्रवाई कर सकता है।

इसने सीजीएसटी नियमों के नियम 142(1)(ए) का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि एक उचित अधिकारी को 122 सहित विभिन्न दंड धाराओं के तहत कार्रवाई शुरू करते समय फॉर्म जीएसटी डीआरसी-01 में एक नोटिस और सारांश जारी करना चाहिए।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायालय ने कहा कि उपरोक्त स्पष्ट रूप से विधानमंडल की मंशा को दर्शाता है कि उचित अधिकारी को कारण बताओ जारी करना और उसके बाद धारा 122 के तहत निर्णय लेना और आदेश पारित करना आवश्यक है। जुर्माने का उद्देश्य टैक्स चोरी को रोकना है।

बार एंड बेंच के अनुसार, न्यायालय ने कहा कि धारा 122 का उद्देश्य कर चोरी और फर्जी चालान जारी करने, एकत्रित टैक्स क भुगतान न करने या गलत आईटीसी का दावा करने जैसी अवैध गतिविधियों को रोकना है।