Trump Card: भारत और अमेरिका के बीच चल रहा शुल्क संघर्ष हाल में काफी बढ़ गया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय सामान पर पारस्परिक शुल्क लगाने की योजना की घोषणा की, जो भारत द्वारा अमेरिकी उत्पादों पर लगाए गए उच्च शुल्क से मेल खाता है। यह कदम व्यापार असंतुलन को दूर करने और अमेरिका में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने की ट्रंप की व्यापक रणनीति का हिस्सा है। दूसरी ओर, भारत इन शुल्कों के संभावित प्रभाव का सामना करने की तैयारी कर रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी मजबूत घरेलू मांग और महत्त्वपूर्ण सेवाओं के निर्यात के कारण अपेक्षाकृत अछूती है, जिनके शुल्क द्वारा लक्षित होने की संभावना कम है। कपड़ा और रसायन जैसे क्षेत्रों को अधिक शुल्क का सामना करना पड़ सकता है। अभी दोनों देशों से समाधान खोजने के लिए बातचीत जारी रखने की उम्मीद है…

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 13 फरवरी को एक आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसमें उनके प्रशासन को अमेरिकी व्यापार भागीदारों पर पारस्परिक शुल्क प्रस्तावित करने का निर्देश दिया गया। यह एक ऐसा कदम है जो वैश्विक व्यापार को काफी प्रभावित कर सकता है। अप्रैल तक अपेक्षित शुल्क का उद्देश्य दूसरे देशों द्वारा अमेरिकी वस्तुओं पर लगाए गए शुल्क और अन्य व्यापार बाधाओं से मेल खाना या उन्हें संतुलित करना है। वाणिज्य सचिव पद के लिए ट्रंप द्वारा नामित हावर्ड ल्यूटनिक ने कहा कि उनकी टीम विवरण को अंतिम रूप देने के लिए काम कर रही है तथा दो अप्रैल तक तैयार हो जाने की उम्मीद है। इस कदम से अमेरिका के व्यापार संबंधों में नया बदलाव आने की संभावना है और इस पर भारत सहित प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की ओर से पहले ही प्रतिक्रिया आ चुकी है।

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ट्रंप का यह कदम उनके चुनावी वादे के बाद आया है, जिसमें उन्होंने दूसरे देशों द्वारा अनुचित व्यापार प्रथाओं पर लगाम लगाने का वादा किया था। ट्रंप लंबे समय से भारत, जापान और यूरोपीय संघ जैसे सहयोगी देशों पर आरोप लगाते रहे हैं कि वे अमेरिकी उत्पादों पर उच्च शुल्क वसूलते हैं, जबकि उन्हें कम अमेरिकी शुल्कों से लाभ मिलता है।

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पारस्परिक शुल्क आम तौर पर उन नीतियों को बताते हैं जो ये सुनिश्चित करती हैं कि देश एक-दूसरे के सामान पर समान शुल्क लगाएं, जिसका उद्देश्य व्यापार संबंधों में निष्पक्षता लाना है। ऐतिहासिक रूप से, व्यापार में पारस्परिकता का अर्थ अक्सर आर्थिक विकास और वैश्विक एकीकरण को सुविधाजनक बनाने के लिए व्यापार बाधाओं को पारस्परिक रूप से कम करना होता है। उदाहरण के लिए, 1934 का अमेरिका पारस्परिक व्यापार समझौता अधिनियम अमेरिकी संरक्षणवाद से दूर जाने का प्रतीक था, जिसने अमेरिका और उसके व्यापारिक साझेदारों को एक-दूसरे के उत्पादों पर कम शुल्क पर बातचीत करने में सक्षम बनाया।

हालांकि, ट्रंप प्रशासन वर्तमान वैश्विक व्यापार परिदृश्य को अलग तरह से देखता है। यह तर्क देता है कि कई अमेरिकी व्यापारिक भागीदारों ने उन नीतियों को बनाए रखा है जो अमेरिकी व्यवसायों को नुकसान पहुंचाती हैं। यह चाहे उच्च शुल्क हो, अशुल्क बाधाएं या अन्य नियामक प्रथाओं के माध्यम से हो। प्रशासन का दावा है कि इन नीतियों से विदेशी निर्यातकों को गलत तरीके से फायदा होता है जबकि अमेरिकी विनिर्माताओं को क्षति पहुंचती है।

ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान, वाणिज्य सचिव विल्बर रास ने अपने व्यापारिक साझेदारों के बराबर शुल्क बढ़ाने का विचार पेश किया था। इस आदर्श व्यापार प्रणाली के तहत, अमेरिका अपना शुल्क तभी कम करेगा, जब अन्य देश भी ऐसा ही करेंगे। नए प्रस्तावित पारस्परिक शुल्क के इसी तरह काम करने की उम्मीद है, लेकिन व्यापक दायरे के साथ, मूल्य वर्धित कर (वैट), विनिमय दर में हेरफेर और औद्योगिक सबसिडी जैसी गैर-शुल्क बाधाओं को ध्यान में रखते हुए।

यह योजना अमेरिकी श्रमिकों को प्राथमिकता देगी, उद्योग के हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार करेगी, व्यापार घाटे को कम करेगी, तथा आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करेगी। ट्रंप की ओर से पहले विचार किए गए व्यापक शुल्क के विपरीत, पारस्परिक शुल्क देश-दर-देश के आधार पर तैयार किए जाएंगे। व्यापार अधिकारियों को वितरित वाइट हाउस के ज्ञापन के अनुसार, नीति सरल शुल्क तुलनाओं से परे कई तत्वों को ध्यान में रखेगी। इसका उद्देश्य असंतुलन कम करना है।

1-शुल्क असंतुलन : यदि कोई देश अमेरिकी आयात पर उच्च शुल्क लगाता है, तो अमेरिका भी उस देश से आने वाले सामान पर उतना ही शुल्क लगाएगा।2-गैर-शुल्क बाधाएं : इनमें सरकारी सबसिडी, विदेशी कंपनियों को नुकसान पहुंचाने वाले कड़े नियम, वैट और विनिमय दर नीतियां शामिल हैं, जो निर्यात की लागत को कृत्रिम रूप से कम करती हैं।3-क्षेत्र-विशिष्ट समायोजन : शुल्क व्यक्तिगत उत्पादों, उद्योगों या किसी विशेष देश से आयात पर समग्र दर के रूप में लागू हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, ब्राजील वर्तमान में अमेरिकी इथेनाल आयात पर 18% शुल्क लगाता है, जबकि अमेरिका ब्राजीलियाई इथेनाल को बड़े पैमाने पर शुल्क-मुक्त अनुमति देता है। नई नीति के तहत, वाशिंगटन या तो ब्राजीलियाई इथेनाल पर अपने शुल्क को बढ़ा सकता है या ब्राजील पर अपने शुल्क कम करने का दबाव बना सकता है। इसी तरह, यूरोपीय संघ वाहन आयात पर 10 फीसद शुल्क लगाता है, जबकि अमेरिका 2.5 फीसद शुल्क लगाता है, जिससे ट्रंप को यूरोपीय संघ की व्यापार नीतियों को एकतरफा करार देना पड़ा।

पारस्परिक शुल्क नीति का वैश्विक व्यापार पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है, खासकर भारत जैसी उच्च शुल्क दरों वाली उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर। हालांकि इसका उद्देश्य प्रतिस्पर्धा के मैदान को समान बनाना है, लेकिन इससे अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और प्रभावित देशों में आर्थिक मंदी आ सकती है। भारत के लिए, जो अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष का फायदा उठाता है, नई नीति का अर्थ हो सकता है- भारतीय निर्यातकों के लिए उच्च लागत, विशेष रूप से दवा, कपड़ा और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे उद्योगों में समस्या आना। ये सब अमेरिकी बाजार पर बहुत अधिक निर्भर हैं। भारत की ओर से संभावित जवाबी शुल्क के कारण व्यापार युद्ध छिड़ सकता है, जिससे दोनों अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान हो सकता है।

भारत पर अपने व्यापार अवरोधों को कम करने का दबाव बढ़ रहा है, जिससे आर्थिक नीति में दीर्घकालिक बदलाव हो सकता है। ट्रंप के आदेश में गैर-शुल्क बाधाओं, जैसे मूल्य वर्धित कर (वैट), नियामक नीतियों और मुद्रा विनिमय दरों पर भी विचार किया गया है, जो व्यापार वार्ता को और अधिक जटिल बना सकते हैं।

दवा : भारत अमेरिका के लिए जेनेरिक दवाओं का एक प्रमुख निर्यातक है और उच्च शुल्क भारतीय दवाओं को अमेरिकी बाजार में कम प्रतिस्पर्धी बना सकता है।सूचना प्रौद्योगिकी : भारत का आइटी क्षेत्र व्यावसायिक अनुबंधों के लिए अमेरिका पर निर्भर करता है, जबकि सेवाएं शुल्क से सीधे प्रभावित नहीं होती हैं। प्रौद्योगिकी नीति से तनाव बढ़ सकता है।इस्पात उद्योग : एक रपट के अनुसार, भारत के छोटे इस्पात निर्माताओं को ट्रंप द्वारा लगाए गए शुल्क वृद्धि के परिणामस्वरूप आयात में और वृद्धि से व्यापार से बाहर होना पड़ सकता है।कपड़ा : अमेरिका भारतीय वस्त्रों और परिधानों के सबसे बड़े खरीदारों में से एक है। बढ़े हुए शुल्क आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकते हैं और भारतीय निर्माताओं को प्रभावित कर सकते हैं।

भारत का अमेरिका के साथ 50 अरब डालर का व्यापार अधिशेष है, जिसका अर्थ है कि यह आयात करने की तुलना में अमेरिका को अधिक निर्यात करता है। ट्रंप ने बार-बार इस असंतुलन की बात की है। उनका तर्क है कि यह अनुचित व्यापार प्रथाओं को दर्शाता है। भारत ने तनाव कम करने के लिए पहले ही कदम उठाए हैं, जैसे हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिलों पर शुल्क कम करना। वर्ष 2023 में अमेरिकी बादाम, सेब, छोले, दाल और अखरोट पर प्रतिशोधी शुल्क छोड़ना। ट्रंप की नई नीति भारत को गहरी रियायतें देने या अमेरिकी बाजार तक पहुंच खोने का जोखिम उठाने को मजबूर कर सकती है।

चीन और अमेरिका के बीच ‘दुनिया का दादा’ बनने की होड़ कोई नहीं बात नहीं है, लेकिन अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के बाद तस्वीर बदल गई है। राष्ट्रपति बनते ही ट्रंप ‘अमेरिका प्रथम’ की नीतियों पर काम करने में जुट गए हैं। ट्रंप ने आते ही शुल्क के मामले में मेक्सिको, कनाडा से लेकर चीन तक को हिला दिया है। शुल्क के इस संघर्ष से शायद भारत अछूता नहीं रहेगा क्योंकि ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने ही कह दिया कि भारत या तो अमेरिकी वस्तुओं पर शुल्क कम करे, अन्यथा अमेरिका भी भारतीय वस्तुओं पर उतना ही शुल्क लगाएगा।वैसे ट्रंप के इन फैसलों का असर सिर्फ भारत और चीन पर ही नहीं होगा, बल्कि खुद अमेरिका भी इससे खुद को बचा नहीं पाएगा। यानी शुल्क का प्रहार भले ही चीन पर हो, लेकिन दर्द अमेरिका को भी होगा।अमेरिकी राष्ट्रपति जैसे को तैसा वाली नीति पर काम कर रहे हैं। यानी अगर भारत अमेरिका के कृषि उत्पादों पर 10 फीसद शुल्क ठोकेगा तो अमेरिका भी 10 फीसद शुल्क लगाएगा, लेकिन ट्रंप अपने फैसलों से अमेरिकी लोगों को भी परेशान कर रहे हैं। ट्रंप की शुल्क बढ़ाने की योजना का सबसे अधिक नुकसान अमेरिकी उपभोक्ताओं को होगा।

ग्लोबल बैंक स्टैंडर्ड चार्टर्ड की एक रपट के मुताबिक ट्रंप के शुल्क बढ़ाने से अमेरिका के लोगों की मुश्किलें बढ़ेंगी। आयात पर शुल्क लागत बढ़ने से कंपनियां उसकी भरपाई उपभोक्ताओं से ही करेंगी। यानी अमेरिका में महंगाई में वृद्धि होगी। इसका सीधा नुकसान अमेरिका की अर्थव्यवस्था को होने वाला है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड की रपट की मानें तो अमेरिका की विनिर्माण क्षमता और रोजगार बाजार पहले से ही दबाव में हैं। शुल्क बढ़ने से उसका बोझ उपभोक्ताओं पर पड़ेगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी। विश्व व्यापार की आपूर्ति शृंखला प्रभावित होगी। अमेरिकी की जीडीपी को इसका नुकसान होगा। रपट के मुताबिक अमेरिकी व्यक्तिगत उपभोग व्यय मुद्रास्फीति को 0.7 फीसद तक बढ़ा सकता है। अमेरिका की जीडीपी वृद्धि 1.2 फीसद तक घट सकती है।

भारतीय स्टेट बैंक की रपटट्रंप के शुल्क को लेकर भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी रपट में कहा कि अगर अमेरिका 15-20 फीसद का शुल्क लगाता है तो भारत के निर्यात पर इसका कुल प्रभाव सिर्फ 3 से 3.5 फीसद तक सीमित रहेगा। भारत निर्यात विविधीकरण, मूल्य संवर्धन और नए व्यापार मार्ग पर विचार कर शुल्क के असर को कम कर सकता है। वहीं गोल्डमैन सैश के मुताबिक अमेरिका और भारत के बीच पारस्परिक शुल्क लगने की स्थिति में भारत की जीडीपी पर 0.1% से 0.3% तक का असर हो सकता है।

1- भारत ने अमेरिकी बर्बन विस्की पर आयात शुल्क 150 फीसद से घटाकर 100 फीसद कर दिया है। इस फैसले से अमेरिकी ब्रांड जैसे संटोरी की जिम बीम को फायदा होगा। यह फैसला अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के भारत पर अनुचित व्यापार शुल्क लगाने के आरोपों के बाद आया है। सरकार की यह अधिसूचना 13 फरवरी को जारी हुई थी, लेकिन शुक्रवार को यह मीडिया की सुर्खियों में आई। हालांकि, दूसरे शराब उत्पादों पर 150 फीसद का शुल्क जारी रहेगा।

2- राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर आरोप लगाया था कि वह अमेरिकी कंपनियों को अपने देश में सामान बेचने में बहुत मुश्किलें पैदा करता है। इसके बाद, भारत ने मोटरबाइक और सैटेलाइट ग्राउंड इंस्टालेशन सहित कई उत्पादों पर अपने शुल्क को 13 फीसद से घटाकर 11 फीसद कर दिया है। नई दिल्ली ने इस सप्ताह 30 से अधिक अन्य उत्पादों पर शुल्क कम करने की योजना की घोषणा की है।

3- रायटर्स के मुताबिक एक सरकारी दस्तावेज से पता चलता है कि भारत की ईवी नीति, जो देश में निवेश करने वाले विदेशी वाहन निर्माताओं के लिए आयात कर में कटौती की पेशकश करती है, उन्हें ऐसी राहत के लिए चार्जिंग बुनियादी ढांचे पर खर्च किए गए धन का उपयोग करने से रोकेगी, जिससे कार निर्माण में वृद्धि होगी।

4 -भारत ने पिछले वर्ष टेस्ला को आकर्षित करने के उद्देश्य से एक नीति की घोषणा की थी। देश में इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्माण करने तथा विदेशी कार निर्माताओं को 15% शुल्क पर कारें आयात करने की अनुमति दी थी, जो वर्तमान में लगभग 100% है, लेकिन ऐसा तभी होगा जब वे एक कारखाने के लिए कम से कम 500 मिलियन डालर का निवेश करेंगे।

5- भारत ने इस बार के बजट में मोटरसाइकिलों पर आयात शुल्क में कटौती की है। 1600 सीसी से ज्यादा इंजन वाली ताकतवर बाइक पर शुल्क 50 फीसद से घटाकर 30 फीसद और छोटी बाइक पर शुल्क को 50 से घटाकर 40 फीसद किया गया है।

ट्रंप का शुल्क कदम घरेलू राजनीति के बारे में उतना ही है, जितना कि यह व्यापार के बारे में है। ऊंचे शुल्क पर जोर देकर, वे अमेरिकी विनिर्माण और कृषि क्षेत्रों में दखल बढ़ाना चाहते हैं, जिसे वे अपनी फिर से चुनावी रणनीति के लिए अहम मानते हैं। परिणामस्वरूप भारत की वैश्विक व्यापार रणनीति बदल सकती है। यूरोपीय संघ, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के साथ बढ़ते संबंधों के साथ, भारत अमेरिकी दबाव से निकलने के लिए नए व्यापार समझौतों की तलाश कर सकता है। फिर भी उसे मजबूत अमेरिकी संबंधों को बनाए रखते हुए अपनी व्यापार नीतियों को संतुलित करना चाहिए।

बातचीत और समझौता : भारत और अमेरिका दोनों पक्षों पर शुल्क कम करने के लिए बातचीत कर सकते हैं, जिससे पूर्ण पैमाने पर व्यापार संघर्ष को रोका जा सकता है।धीरे-धीरे वृद्धि : यदि अमेरिका शुल्क बढ़ाता है, तो भारत बेहतर सौदे के लिए राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को लक्षित करते हुए चुनिंदा प्रतिक्रिया दे सकता है।व्यापक व्यापार पुनर्गठन : यदि तनाव जारी रहता है, तो भारत अमेरिकी व्यापार पर निर्भरता कम करने के लिए बाजारों की तलाश कर सकता है। भारत का कूटनीतिक दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण होगा- चाहे पीछे हटना चाहता हो, बात करना चाहता हो, या रणनीतिक रियायतें देना चाहता हो।