RBI Monetary Policy: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक आज (7 फरवरी 2025) खत्म हो गई है और आरबीआई के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा आज सुबह 10 बजे कमेटी के फैसले का ऐलान कर दिया। तीन दिन तक चली इस मीटिंग में उम्मीद के मुताबिक रेपो रेट में कटौती का ऐलान किया गया। 2020 में COVID-19 के बाद आज आरबीआई रेपो रेट में 25bps की कटौती कर दी है। आरबीआई ने नीतिगत दर रेपो को 0.25 प्रतिशत घटाकर 6.25 प्रतिशत कर दिया है।

इससे पहले मई, 2020 में कोविड-19 महामारी के समय रेपो दर को 0.40 प्रतिशत घटाकर चार प्रतिशत किया गया था। फिर रूस-यूक्रेन युद्ध के जोखिमों से निपटने के लिए आरबीआई ने मई, 2022 में दरों में बढ़ोतरी करनी शुरू की थी और यह सिलसिला फरवरी, 2023 में जाकर रुका था। रेपो दर दो साल से 6.50 प्रतिशत पर स्थिर बनी हुई है। RBI के गवर्नर ने संजय मल्होत्रा ने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिन की बैठक में लिए गये फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि छह सदस्यीय समिति ने आम सहमति से रेपो दर को 0.25 प्रतिशत घटाकर 6.25 प्रतिशत करने का फैसला किया है।

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रेपो दर घटने का मतलब है कि मकान, वाहन समेत विभिन्न कर्जों पर मासिक किस्त (EMI) में कमी आने की उम्मीद है। आरबीआई के नवनियुक्त गवर्नर संजय मल्होत्रा ने छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बुधवार से शुरू तीन दिन की बैठक में लिए गये फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि समिति ने आम सहमति से रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती का निर्णय किया है।

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इसके साथ, एमपीसी में अपने रुख को ‘तटस्थ’ बनाये रखने पर सहमति बनी है। रेपो दर वह प्रमुख ब्याज है, जिसपर वाणिज्यिक बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिये केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। RBI मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिये इस दर का उपयोग करता है। रेपो दर अधिक होने का मतलब है कि कर्ज की लागत अधिक होगी। यानी ग्राहकों को अधिक ब्याज पर कर्ज मिलेगा।

वहीं इसके उलट, रेपो दर कम होने से आवास, कार और व्यक्तिगत ऋण पर ब्याज दर घटने की उम्मीद रहती है। साथ ही रेपो दर बचत और निवेश उत्पादों पर रिटर्न भी तय करती है। हाई रेपो दर से सावधि जमा और अन्य बचत उत्पादों पर बेहतर रिटर्न मिल सकता है, क्योंकि बैंक डिपॉजिट को आकर्षित करने के लिए हाई ब्याज दर ऑफर करते हैं। दूसरी ओर, कम रेपो दर इन बचत उत्पादों पर अर्जित ब्याज को कम कर सकती हैं।

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रेपो वह ब्याज दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिये केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। आरबीआई मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिये इस दर का उपयोग करता है। रेपो दर में कमी करने का मतलब है कि मकान, वाहन समेत विभिन्न कर्जों पर मासिक किस्त (ईएमआई) में कमी आने की उम्मीद है।

इसके साथ, एमपीसी ने अपने रुख को ‘तटस्थ’ बनाये रखने का निर्णय किया है। आरबीआई ने अगले वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है जबकि चालू वित्त वर्ष में इसके 6.4 प्रतिशत पर रहने के अनुमान को बरकरार रखा है। वहीं खुदरा मुद्रास्फीति अगले वित्त वर्ष में 4.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है जबकि चालू वित्त वर्ष में इसके 4.8 प्रतिशत रहने की संभावना जतायी गयी है। 

आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा,’मुद्रास्फीति को लक्षित करने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर अनुकूल प्रभाव मौद्रिक नीति रूपरेखा की शुरूआत के बाद से औसत मुद्रास्फीति कम रही है भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत, पर वैश्विक चुनौतियों से अछूती नहीं है।’ उन्होंने आगे कहा कि हमारा प्रयास हितधारकों के साथ परामर्श करना और ऐसे परामर्शों को महत्व देना होगा। मौद्रिक नीति समिति ने ‘तटस्थ’ मौद्रिक रुख को कायम रखने का फैसला किया।

आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने नीतिगत दर में कटौती का कारण बताते हुए कहा, ‘‘महंगाई में गिरावट आई है। खाद्य पदार्थों को लेकर अनुकूल स्थिति और पिछली मौद्रिक नीति समीक्षाओं में में उठाये गये कदमों का असर जारी है। इससे 2025-26 में इसके और नरम होने की उम्मीद है तथा धीरे-धीरे यह चार प्रतिशत के लक्ष्य के आसपास आएगी।’’

एमपीसी ने कहा, ‘‘हालांकि, वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर में निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर पहुंच गयी जो पिछले दो साल की तुलना में सबसे कम वृद्धि है। इसके बावजूद मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अनुरूप लाने के साथ वृद्धि-मुद्रास्फीति की स्थिति ने मौद्रिक नीति समिति के लिए वृद्धि को बढ़ावा देने को लेकर नीतिगत दर में कमी की गुंजाइश बनाई है।’’

खुदरा मुद्रास्फीति अक्टूबर में उच्चतम स्तर पर पहुंच गयी थी लेकिन दिसंबर में यह घटकर 5.22 प्रतिशत पर रही। नवंबर में यह 5.48 प्रतिशत पर रही थी। मल्होत्रा ने कहा, ‘‘मौजूदा वृद्धि-मुद्रास्फीति की स्थिति को ध्यान में रखते हुए एमपीसी ने तटस्थ रुख बनाये रखने का निर्णय किया। समिति का मानना है कि मौजूदा समय में कम प्रतिबंध वाली मौद्रिक नीति अधिक उपयुक्त है। एमपीसी अगली बैठकों में वृहद आर्थिक दृष्टिकोण के आकलन के आधार पर निर्णय लेगी।’’

उन्होंने कहा कि आरबीआई अनुकूल वृहद आर्थिक स्थिति को लेकर सूझबूझ के साथ मौद्रिक नीति को लेकर प्रतिबद्ध है, ताकि मूल्य स्थिरता, निरंतर आर्थिक वृद्धि और वित्तीय स्थिरता को मजबूत किया जा सके। आरबीआई के निर्णय पर डीबीएस बैंक की वरिष्ठ अर्थशास्त्री राधिका राव ने कहा कि मुद्रास्फीति लक्ष्य को लेकर लचीलेपन पर जोर देने से पता चलता है कि एमपीसी समय-समय पर मामूली आपूर्ति आधारित अस्थिरता के प्रति थोड़ी नरम हो सकती है।

उन्होंने कहा, ‘‘इसके साथ आरबीआई उन देशों के केंद्रीय बैंकों में शामिल हो गया है, जिन्होंने वैश्विक कारकों के कारण अपनी मुद्रा और बॉन्ड बाजारों में अस्थिरता को देखते हुए घरेलू प्राथमिकताओं को अधिक महत्व दिया है। साथ ही एमपीसी ने तटस्थ रुख बनाए रखते हुए एक स्पष्ट नरम संकेत से परहेज किया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम अप्रैल में रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की और कटौती के अपने अनुमान पर कायम हैं।’’ मौद्रिक नीति समिति की अगली द्विमासिक बैठक सात से नौ अप्रैल को होगी।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने डिजिटल भुगतान में धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए बैंकों और गैर-बैंकिंग इकाइयों के लिए विशेष इंटरनेट डोमेन…बैंक डॉट इन और फिन डॉट इन…शुरू किये जाने की घोषणा की है। RBI गवर्नर संजय मनल्होत्रा ने शुक्रवार को द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा की जानकारी देते हुए कहा कि डिजिटल भुगतान में धोखाधड़ी के बढ़ते मामले चिंता का विषय है। इससे निपटने के लिए रिजर्व बैंक इस साल अप्रैल से भारतीय बैंकों के लिए विशेष इंटरनेट डोमेन ‘बैंक डॉट इन’ शुरू कर रहा है। साथ ही आने वाले समय में गैर-बैंकिंग वित्तीय इकाइयों के लिए ‘फिन डॉट इन’ शुरू किया जाएगा। इस पहल का उद्देश्य साइबर सुरक्षा खतरों और ‘फिशिंग’ जैसी दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों को करने के साथ सुरक्षित वित्तीय सेवाओं को सुव्यवस्थित बनाना है ताकि डिजिटल बैंकिंग और भुगतान सेवाओं में विश्वास बढ़े।

RBI द्वारा रेपो रेट में कटौती पर वरिष्ठ अर्थशास्त्री विजय सरदाना ने कहा, “अन्य देशों की तुलना में, भारत में मुद्रास्फीति के कारण ब्याज दरें ज्यादा हैं। साथ ही, हमारे देश में निवेश लाने और निर्यात बढ़ाने के लिए, RBI को भारत में पूंजी की लागत को कम करने के लिए दरों में कटौती करने की जरूरत थी। यह आरबीआई के लिए एक कठिन फैसला था, लेकिन आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह जरूरी था। आने वाले दिनों में, हम भारत में विनिर्माण और पूंजी की लागत पर सकारात्मक प्रभाव देखेंगे… बैंक भी लंबी अवधि के लोन या अन्य उपभोक्ता कर्ज में थोड़ी रियायत दे सकते हैं”