मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु पुलिस से पूछा कि वह कैसे उम्मीद कर सकती है कि यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI), एक अज्ञात शव की पहचान करने के लिए 100 करोड़ से ज्यादा लोगों के फिंगरप्रिंट से मिलान करे। कोर्ट ने यह सवाल एक केस की सुनवाई के दौरान उठाया।
सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति पी. वेलमुरुगन ने कहा कि विल्लुपुरम जिले के तिंडीवनम सब-डिविजन के डीएसपी की ओर से UIDAI को निर्देश देने के लिए याचिका दायर करना “हास्यास्पद” था कि वह एक अज्ञात शव के फिंगरप्रिंट का इस्तेमाल करके उसकी डिटेल दे।
जज ने पूछा, “हमारे देश की जनसंख्या 1.4 बिलियन है। मान लें कि अब तक 1 बिलियन लोगों ने आधार के लिए नामांकन कराया है, तो क्या आप उम्मीद करते हैं कि UIDAI हर अनसुलझे आपराधिक मामले में शवों के फिंगरप्रिंट प्राप्त करेगा और उनकी तुलना 100 करोड़ लोगों से संबंधित बायोमेट्रिक डेटा से करेगा?”
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उन्होंने आगे कहा कि पुलिस को ऐसे मामलों को UIDAI के पास लाने में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे अज्ञात लोगों से जुड़े आपराधिक मामलों में सफलता हासिल करने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा, “आधार किसी अपराध को सुलझाने का एकमात्र तरीका नहीं है, जांच के अन्य तरीके भी हैं।”
DSP द्वारा दायर याचिका को तब खारिज कर दिया गया जब अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ए.आर.एल. सुंदरेसन ने केंद्र सरकार के वरिष्ठ पैनल वकील के. श्रीनिवासमूर्ति की सहायता से कहा कि मृतकों के फिंगरप्रिंट की तुलना आधार डेटाबेस से करना और पुलिस को जनसांख्यिकीय जानकारी प्रदान करना असंभव होगा।
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Defendant ने अदालत को बताया कि UIDAI सिर्फ उसी व्यक्ति के फिंगरप्रिंट और आंखों की स्कैनिंग से मिलान कर सकता है, जिसके पास सही 12 अंकों का आधार नंबर हो। इसका मतलब वो यह जांच सकता है कि किसी व्यक्ति का बायोमेट्रिक डेटा आधार में मौजूद रिकॉर्ड से मेल खाता है या नहीं।