भारतीय रिजर्व बैंक ने आखिरकार लंबे इंतजार के बाद, रेपो दर में पच्चीस आधार अंक की कटौती की है। करीब पांच वर्ष पहले चालीस आधार अंक की कटौती की गई थी, जिससे ब्याज दर चार फीसद पर पहुंच गई थी। मगर बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के मकसद से तीन वर्ष पहले थोड़े-थोड़े अंतराल पर पांच बार पच्चीस-पच्चीस आधार अंकों की बढ़ोतरी की गई, जिससे ब्याज दर साढ़े छह फीसद पर पहुंच गई। तब से यह दर इसी स्तर पर बनी हुई थी। रेपो दर ऊंची होने का असर बैंकों से लिए गए कर्ज के ब्याज पर पड़ रहा था।
जिन लोगों ने मकान, वाहन या किसी रोजगार के लिए कर्ज लिए हैं, उन्हें अधिक ब्याज चुकाना पड़ रहा था। इसलिए मांग की जा रही थी कि रेपो दर में कटौती की जाए। मगर रिजर्व बैंक इस दिशा में कदम बढ़ाने से इसलिए हिचक रहा था कि महंगाई पर काबू पाना चुनौती बना हुआ था। अब महंगाई का रुख कुछ नीचे की तरफ नजर आने लगा है। अगले वित्त वर्ष में इसके चार फीसद के आसपास रहने का अनुमान है। रिजर्व बैंक का लक्ष्य भी यही है कि महंगाई को चार फीसद के आसपास समेट दिया जाए।
स्वाभाविक ही, रेपो दर में कटौती से मकान, वाहन आदि के लिए कर्ज पर ब्याज का बोझ कुछ कम होगा। दरअसल, केंद्रीय दर में बढ़ोतरी इसलिए की जाती है कि बाजार में पूंजी के प्रवाह को रोका जा सके, मांग घटे, ताकि महंगाई की दर नीचे उतरनी शुरू हो जाए। इसलिए रेपो दर में कटौती से बाजार में पूंजी का प्रवाह कुछ बढ़ सकेगा। इस तरह मांग भी कुछ बढ़ेगी। मगर देखने की बात है कि केवल पच्चीस आधार अंक की कटौती से बाजार में छाई सुस्ती कितनी टूट पाएगी।
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दरअसल, बैंकों का कारोबार भी काफी मंद पड़ा हुआ है। इसलिए वे एकदम से रेपो दर में हुई कटौती का लाभ अपने ग्राहकों को देना शुरू कर देंगे, कहना मुश्किल है। लंबे समय से रेपो दर ऊंची रहने से लोगों ने वाहन और मकान वगैरह खरीदने से हाथ रोक रखा था, ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि फिर से लोग इन क्षेत्रों की तरफ आकर्षित होंगे।
सबसे चिंता की बात पिछले कुछ समय से विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट बनी हुई थी। जिस विनिर्माण क्षेत्र के बल पर सकल घरेलू उत्पादन ऊंचा बना हुआ था, वह मांग घटने की वजह से तीन फीसद के आसपास सिमट गया है। तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद की बिक्री पर भी बुरा असर देखा जाने लगा है। ऐसे में, रेपो दर में कटौती का कुछ अच्छा असर विनिर्माण क्षेत्र पर पड़ने की उम्मीद है।
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मगर, बाजार में छाई सुस्ती और मांग में कमी आने की वजह केवल ऊंची रेपो दर नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण प्रति व्यक्ति आय में कमी है। कोरोना की बंदी के बाद बाजार तेजी से पटरी पर तो लौटा, मगर लोगों की आमदनी में बढ़ोतरी नहीं हो पाई। कई मामलों में प्रति व्यक्ति आय घटी है, जबकि उसकी तुलना में महंगाई काफी बढ़ गई है। इसलिए लोगों ने अपने दैनिक उपभोग में कटौती की है। रेपो दर में कटौती से जरूर लोगों की जेब पर पड़ने वाला बोझ कुछ कम होगा, मगर पच्चीस आधार अंक की कटौती इतनी मामूली है कि वह लोगों के उपभोग व्यय के रूप में रूपांतरित हो पाएगी, कहना मुश्किल है।