Iran Israel News: इजरायल और ईरान के बीच 12 दिनों की जंग अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के युद्धविराम की घोषणा के साथ खत्म हो गई। ईरान के साथ इस जंग की तुलना वर्ष 1967 में इजरायल की तीन देशों के साथ छह दिनों की जंग से हो रही है। इजरायल वर्ष 1948 में बना, लेकिन 1967 में छह दिनों के युद्ध से मध्य पूर्व का नक्शा बदल गया और इजरायल ने एक नई पहचान बनाई। छह दिनों की इस जंग में इजरायल ने तीन देशों को मात दी थी।

इजरायल और ईरान में कभी बराबरी नहीं थी। इसके बावजूद ईरान ने खुद को समय-समय पर साबित किया है। ईरान ने दिखाया है कि उसके पास संसाधन, सब्र और प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता है। ईरान, इजरायल से करीब 1,500 किलोमीटर दूर है, लेकिन माना जाता है कि वह कई मोर्चों पर इजरायल को घेरने में कामयाब रहा है।

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि 12 दिनों की जंग में वे अपना लक्ष्य हासिल करने में कामयाब रहे हैं। यह ऐतिहासिक था और इसे पीढ़ियों तक याद रखा जाएगा। दूसरी ओर ईरान ने भी इस जंग में जीत का दावा किया है। ऐसे में ये सवाल उठ रहे हैं कि इजरायल को 12 दिनों की जंग से क्या हासिल हुआ? युद्धविराम की घोषणा के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई के एक्स खाते पर एक पोस्ट में कहा गया था, जो ईरान के लोगों और उसके इतिहास को जानते हैं, उन्हें पता है कि ईरान वैसा राष्ट्र नहीं है, जो आत्मसमर्पण कर दे।

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पुर्तगाल की यूनिवर्सिटी आफ मिन्हो में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर मोहम्मद इस्लामी ने कहा, ईरान के परमाणु कार्यक्रम को इन 12 दिनों में गहरा झटका लगा है, इस पर कोई सवाल नहीं है। नतांज, फोर्दो और इस्फहान में ईरान यूरेनियम संवर्धन को लेकर दशकों से काम कर रहा था। इजरायल ने ईरान के कई वैज्ञानिकों को भी मारा है।

मोहम्मद इस्लामी ने कहा, नुकसान के बावजूद ईरान का मिसाइल कार्यक्रम अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहा है। ईरानी मिसाइलें इजरायल और उसके सहयोगियों की वायु रक्षा प्रणाली को भेदने में कामयाब रही हैं। 12 दिनों की जंग में इसरायल के साथ अमेरिका था और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दूसरे पश्चिमी देशों का भी साथ था। दूसरी तरफ, ईरान अकेला था। डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका के बाकी राष्ट्रपतियों की तुलना में ज्यादा इजरायल समर्थक माना जाता है। ट्रंप ने गाजा में युद्धविराम कराने से इनकार कर दिया था।

जिंदल स्कूल आफ इंटरनेशनल अफेयर्स के डीन एवं लेखक श्रीराम चौलिया कहते हैं कि वर्ष 1967 में इजरायल को बड़ी जीत मिली थी। इस बार भी इजरायल ने ईरान पर हमला कर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है और युद्ध में हावी भी दिखा। इजरायल ने पूरे हवाई क्षेत्र को अपने नियंत्रण में रखा, लेकिन मकसद 1967 की तरह हासिल नहीं हुआ है।

चौलिया कहते हैं, ईरान की बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता अब भी बनी हुई है। माना जा रहा था कि ईरान के पास कम से कम 2,500 बैलिस्टिक मिसाइल हैं। मुझे लगता है कि इस युद्ध में मुश्किल से 25 फीसद का ही इस्तेमाल हुआ होगा। ऐसे में हम कह सकते हैं कि इजरायल न तो ईरान का पूरा परमाणु कार्यक्रम नष्ट कर पाया और न ही बैलिस्टिक मिसाइल की ताकत।

चौलिया कहते हैं, इजरायल अगर ईरान में तख्तापलट कर देता, तो कह सकते थे कि उसे वर्ष 1967 जैसी ही कामयाबी मिली। ईरान की भी अपनी क्षमताएं हैं। ईरान की 10 फीसद मिसाइलें इजरायल की वायु रक्षा प्रणाली को भेदने में कामयाब रही हैं और यह अपने आप में बड़ी बात है।

इजरायल को समझ में आ गया था कि ईरान इस जंग को लंबे समय तक खींच सकता है, इसलिए प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू युद्धविराम के लिए राजी हो गए। चौलिया कहते हैं कि ईरान इस युद्ध से सबक लेगा, क्योंकि उसे अपनी कमजोरी और इजरायल की मजबूती दोनों का अहसास हो गया है।

मध्य-पूर्व की भू-राजनीति पर गहरी नजर रखने वालीं मंजरी सिंह कहती हैं कि इजरायल ने ईरान पर हमला अचानक नहीं, बल्कि पूरी तैयारी के साथ किया। इजरायल ने हिज्बुल्लाह के शीर्ष नेतृत्व को पूरी तरह से खत्म किया। हमास को भी बहुत कमजोर कर दिया है। अमेरिका ने यमन में हूती विद्रोहियों पर हमला किया। इसके बाद इजरायल ने ईरान पर हमला किया। इजरायल अगर ईरान के छद्म समूहों को बिना कमजोर किए तेहरान पर हमला करता, तो उसके लिए मुश्किल होता।

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