Justice Yashwant Varma Impeachment Motion: केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद के आगामी मानसून सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, केंद्र सरकार ने इस मामले में विपक्षी दलों से संपर्क किया है और केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने इसकी पुष्टि की है।

किरेन रिजिजू ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं बल्कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार से जुड़ा गंभीर मामला है और हम इस मामले में आम सहमति बनाएंगे।”

28 मई को द इंडियन एक्सप्रेस ने खबर दी थी कि केंद्र सरकार मानसून सत्र में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है। मानसून सत्र जुलाई के तीसरे सप्ताह में शुरू हो सकता है। बताना होगा कि जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास से जले हुए नोटों की गड्डियां मिली थी। इसके बाद उनका ट्रांसफर इलाहाबाद हाई कोर्ट में कर दिया गया था।

‘जस्टिस वर्मा का मामला बन सकता है त्रासदी…’

सूत्रों के मुताबिक, गृहमंत्री अमित शाह और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। शाह राज्यसभा में सदन के नेता जेपी नड्डा के साथ ही उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीश धनखड़ से भी मिले। इन बैठकों के बाद रिजिजू ने विपक्षी नेताओं से बातचीत की।

सूत्रों के मुताबिक, रिजिजू ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश से भी बात की है। कांग्रेस की ओर से ऐसा संकेत है कि उसे महाभियोग का समर्थन करने में कोई हिचक नहीं होगी। कांग्रेस का तो यह भी मानना है कि सरकार को इस मामले में संसद का विशेष सत्र जल्द से जल्द बुलाना चाहिए।

अप्रैल में अहमदाबाद में आयोजित AICC के अधिवेशन में कांग्रेस ने जो प्रस्ताव पारित किया था, उसमें कहा गया था कि न्यायिक स्वतंत्रता से समझौता किए बिना न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र तैयार किया जाना चाहिए।

Judges Inquiry Act, 1968 के मुताबिक, किसी जज के खिलाफ अगर लोकसभा में शिकायत की जाती है तो इसके लिए प्रस्ताव के पक्ष में कम से कम 100 सदस्यों के दस्तखत होने चाहिए और अगर राज्यसभा में ऐसा किया जाना है तो इसके लिए 50 सदस्यों का समर्थन जरूरी है। सांसदों के द्वारा प्रस्ताव रखे जाने के बाद सदन का पीठासीन अधिकारी इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है।

अगर किसी भी सदन द्वारा महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है तो स्पीकर/अध्यक्ष को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस या जज की अध्यक्षता में कमेटी का गठन करना होता है। इस कमेटी में किसी भी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक और शख्स शामिल होता है। अगर व्यक्ति को दोषी पाया जाता है तो समिति की रिपोर्ट को सदन स्वीकार कर लेता है और जज को हटाने पर बहस होती है।

जस्टिस वर्मा की इन-हाउस जांच रिपोर्ट मांगने वाली RTI याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित करने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में “मौजूद और मतदान करने वालों” में से कम से कम दो-तिहाई को जज को हटाने के पक्ष में मतदान करना होगा। इस प्रस्ताव के पक्ष में पड़ने वाले वोट हर सदन की कुल सदस्यता के 50% से ज्यादा होने चाहिए। अगर संसद ऐसे किसी प्रस्ताव को पास कर देती है तो राष्ट्रपति जज को हटाने के संबंध में आदेश दे देते हैं।

इस बीच, विपक्षी नेताओं ने कहा है कि संसद को इस मामले में जांच समिति गठित करने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि जब जस्टिस वर्मा का मामला हुआ था, उस दौरान तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय समिति गठित की थी और इस समिति ने जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया था।

बताना होगा कि जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने के लिए कहा गया था लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद उनका ट्रांसफर किया गया और 5 अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज के तौर पर उन्होंने शपथ ली लेकिन उन्हें कोई काम नहीं सोपा गया है।