बिहार से आना और बॉलीवुड में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाना काफी बड़ी बात है। सिनेमा जगत में सफलता का स्वाद चखना इतना आसान नहीं है खासकर आउट साइडर्स के लिए। कई ऐसे सितारे रहे हैं, जिनका फिल्मी दुनिया से कोई नाता नहीं था फिर वो इंडस्ट्री में अपने नाम की धाक जमाकर खूब दौलत और शोहरत कमा रहे हैं। इसी में से एक मनोज बाजपेयी हैं। बिहार के रहने वाले मनोज बाजपेयी को सालों तक कड़ी मेहनत करने के बाद फिल्मों में काम मिला तो चैलेंज सामने तैयार था कि दर्शकों के दिलों पर राज कैसे किया जाए। अभिनेता ने शेखर कपूर की ‘बैंडिट क्वीन’ से करियर शुरू किया था लेकिन, खास पहचान नहीं मिल पाई थी। इसके बाद उन्हें राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘सत्या’ मिली, जहां असल मायने में उनका फिल्मी करियर शुरू हुआ था। चलिए बताते हैं अगर उनको ये फिल्म ना मिली होती तो क्या होता।

3 जुलाई, 1998 में रिलीज हुई मनोज बाजपेयी की फिल्म ‘सत्या’ उनके करियर का पहली हिट फिल्म रही थी, जो आज भी लोगों के जहन में है। इसके जरिए एक्टर को पहली बार गैंगस्टर की भूमिका में देखा गया था और उनका भीखू म्हात्रे का किरदार आज भी लोगों के जहन में है। मनोज की एक्टिंग ने भीखू के किरदार को यादगार बना दिया। इस हिट के बाद एक्टर को कई फिल्मों में काम करने का मौका मिला। उन्हें ‘कौन’, ‘शूल’, ‘पिंजर’, ‘एलओसी कारगिल’, ‘वीर जारा’ और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी फिल्मों में काम करने का मौका मिला। मनोज बाजपेयी को ‘सत्या’ से इंडस्ट्री में पहचान मिली लेकिन, इसके साथ ही एक सवाल जरूर जहन में आता है कि अगर उनको ये फिल्म ना मिली होती तो क्या होता? तो इसका जवाब ये है कि फिर उनका करियर अलग मोड़ पर होता और शायद वो कहीं और होते। शायद इस तरह का स्टारडम ना होता या यूं कहें कि ‘सत्या’ ना होती तो सफलता की वो दास्तां नहीं होती, जिसने दिल्ली से लेकर पटना तक हिंदी पट्टी के लाखों युवाओं में भरोसा जगाया कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

मनोज बाजपेयी पर लिखी किताब ‘कुछ पाने की जिद मनोज बाजपेयी’ में एक्टर को लेकर काफी कुछ लिखा गया है। इसमें फिल्म ‘सत्या’ को बनाने से लेकर अभिनेता को कास्ट करने तक के बारे में बताया गया है। इस किताब की मानें तो राम गोपाल वर्मा ने जब मनोज को पहली बार देखा था तभी उन्हें अपनी अपकमिंग फिल्म में लीड एक्टर का रोल ऑफर कर दिया था। लेकिन, उस समय ना तो फिल्म का पता था ना ही स्क्रिप्ट और ना ही इसका टाइटल। बस उन्होंने मनोज को अगली फिल्म में मुख्य भूमिका ऑफर कर दी थी। मनोज बताते हैं कि ‘दौड़’ में उनके काम को देख अनुराग कश्यप और राम गोपाल वर्मा दोनों को प्रभावित थे और इसकी शूटिंग के दौरान ही राम के दिमाग में अंडरवर्ल्ड को लेकर फिल्म बनाने की योजना चल रही थी और वो इसमें मनोज बाजपेयी को कास्ट करना चाहते थे। इस बात की चर्चा उन्होंने अभिनेता से भी की थी कि वो उनको लेकर अलग किस्म की फिल्म बनाना चाहते हैं।

आपको बता दें कि ‘दौड़’ में संजय दत्त लीड एक्टर थे और मनोज की छोटी सी भूमिका थी। जब राम संजय दत्त के साथ काम कर रहे थे तो उन्होंने अपनी समस्याओं की वजह से अंडरवर्ल्ड के बारे में काफी कुछ बताया था। अब राम गोपाल पहले भी ऐसी कुछ स्क्रिप्ट पर काम कर चुके थे लेकिन, फिल्में नहीं चली थी तो वो कुछ नई स्क्रिप्ट पर काम करना चाहते थे। अब मजे की बात ये है कि फिल्म के लिए मनोज फाइनल हो चुके थे लेकिन ना तो स्क्रिप्ट का पता था और ना ही फिल्म के नाम जैसी बुनियादी बातों का। अभिनेता बताते हैं कि राम ने मनोज बाजपेयी पर इसकी जिम्मेदारी सौंपी और अपना आइडिया उनको बताया तो उन्होंने उनके आइडिए को लिखने के लिए टीवी सीरियल ‘स्वाभिमान’ के लेखक विनोद रंगनाथन से मुलाकात करवाई। उन्होंने स्क्रिप्ट ड्राफ्ट की लेकिन ये राम को जंची नहीं फिर मनोज बाजपेयी की पहचान अनुराग कश्यप से थी। अनुराग पूरे जोश में राम गोपाल से मिले। फिर क्या था यहां से जोड़ी जम गई और बतौर लेखक उनके साथ सौरभ शुक्ला भी जुड़े।

किताब ‘कुछ पाने की जिद मनोज बाजपेयी’ के मुताबिक, मनोज आगे बताते हैं कि अब फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने का सिलसिला शुरू हुआ और जैसे-जैसे स्क्रिप्ट आगे बढ़ी तो एक्टर को लीड रोल सत्या से हटाकर भीखू म्हात्रे का रोल निभाने के लिए शिफ्ट कर दिया गया। फिर मूवी के लिए बतौर लीड एक्टर साउथ अभिनेता जेडी चक्रवर्ती को चुना गया। अब मनोज तो इसमें लीड एक्टर बनने वाले थे तो उनके लिए ये बड़ा झटका था। फिर उन्हें मन मोटा करके भीखू वाला कैरेक्टर स्वीकारना पड़ा। किताब के मुताबिक, अनुराग कश्यप ने बताया कि मनोज ने इस फैसले के बाद उनको फोन किया था और कहा था कि सब कुछ गड़बड़ हो गया और सत्या का रोल किसी और को दे दिया। अब उनके साथ हीरोइन भी काम नहीं करेगी। फिर उन्होंने मनोज को काफी समझाया था। शूटिंग के दौरान भी समझाया।

किताब ‘कुछ पाने की जिद मनोज बाजपेयी’ की मानें तो मनोज सत्या से भीखू बन चुके थे लेकिन, इस किरदार का नाम सुझाया कैसे। इसके पीछे की भी दिलचस्प कहानी है। सौरभ और अनुराग फिल्म के कैरेक्टर्स के नामकरण के पीछे काफी माथापच्ची कर रहे थे। फिर एक दिन राम गोपाल ऑफिस आए और उन्होंने अपने ऑफिस बॉय को आवाज दी, ‘भीखू तीन कॉफी।’ अब ये नाम सुनते ही राइटर्स को मनोज के कैरेक्टर का नाम भीखू सुझाया। इसके बाद तय होगा कि मनोज भीखू बनेंगे। वहीं, इसके पीछे ‘म्हात्रे’ सरनेम मनोज ने खुद जोड़ा, क्योंकि ये मराठी उपनाम था। अब फिल्म में मुंबई का डॉन दिखाने की बात हो रही थी तो इसके पीछे कोई मराठी सरनेम चाहिए था तो म्हात्रे तय हुआ।

अगर फिल्म का नाम ‘सत्या’ ही क्यों पड़ा की बात करें तो किताब ‘कुछ पाने की जिद मनोज बाजपेयी’ की मानें तो राम गोपाल वर्मा ने इसके पीछे की दो वजहें बताई। पहली तो उन्होंने कहा, ‘गोविंद निहलानी की अर्धसत्य, जिसे एक लिहाज से सत्या श्रद्धांजलि है।’ दूसरी वजह उन्होंने बताया, ‘मेरी गर्लफ्रेंड का नाम सत्या था।’ वो आगे कहते हैं, ‘सच कहूं तो वो मेरी गर्लफ्रेंड नहीं थी, मैं उससे प्यार करता था लेकिन, उसने मुझे कभी देखा नहीं। मैं इस नाम के जरिए उसे संदेश देना चाहता था कि देखो मैं क्या बन गया हूं।’

जहां फिल्म ‘सत्या’ की स्क्रिप्ट फाइनल हो रही थी वहीं, मनोज बाजपेयी भी भीखू के किरदार में धीरे-धीरे रमते जा रहे थे। किताब ‘कुछ पाने की जिद मनोज बाजपेयी’ की मानें तो एक्टर ने इस किरदार को लेकर बताया कि उन्होंने और अनुराग कश्यप ने भीखू की बैक स्टोरी तैयार की। वो गैंगस्टर की दुनिया से अंजान थे। लेकिन, उन्होंने बिहार के कई अपराधी देखे थे। उन्होंने उन पर गौर किया और समझा कि केवल भाषा को छोड़ दें तो सत्ता का संघर्ष सभी जगह एक जैसा ही है।

मनोज बताते हैं कि इस फिल्म से पहले तक फिल्मों में माफिया लोग अमूमन सफेद कपड़े पहनते थे, सिगार पीते थे। लेकिन, एक्टर ने भीखू के किरदार के लिए एक काली गंजी, दो काली जीन्स और कुछ प्रिंटेड शर्ट अपनी वार्डरोब से दीं, जिसे उन्होंने बांद्रा के हिल रोड से खरीदी थी। ऐसी ही उनके पास 14 शर्ट थी और उन्होंने सभी की सभी खरीद ली। एक्टर ने फिर गैंग के प्रमुख को रंगीन किरदार में ढाला। मनोज ने बताया कि वो 5 महीने तक इस किरदार के साथ खाते-पीते और सोते रहे। वो इस बीच भीखू का ही सपना देखते रहे। इस तैयारी में अनुराग और राम गोपाल ने उनकी मदद की। मनोज ने भीखू का चरित्र जीवंत करने में बेतिया के एक बिहारी बंदे से भी लिया, जो कि उनके गृहनगर में रहता था और जितेंद्र का फैन था। वो जितेंद्र के जैसे ही प्रिंटेड शर्ट पहनता था। एक्टर ने उसी के टेंपरामेंटल का इस्तेमाल किया।

फिल्म की जब शूटिंग हो रही थी तो गुलशन कुमार की हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद फिल्म के स्क्रिप्ट में अंडरवर्ल्ड में बने नए समीकरण के मद्देनजर कुछ बदलाव भी किए गए थे। किताब में बताया जाता है कि ‘सत्या’ के लिए कभी कोई तय स्क्रिप्ट नहीं रही। सीन दर सीन लिखे गए और उन पर काम किया गया। आखिरकार, कई मुश्किलों के बाद फिल्म को 1998 में रिलीज किया गया और इसने सिनेमाघरों में बवाल काट दिया। ये बॉलीवुड की कल्ट फिल्म बनकर सामने आई।

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