Sikandar Movie Review: एक्टर सलमान खान की ‘सिकंदर’ को दो तरीके से बेचने की कोशिश हुई- पहली बात रही- गजनी के डायरेक्टर ए आर मुर्गदास ने निर्देशक की कुर्सी संभाली थी, दूसरी बात रही- किक के प्रोड्यूजर साजिद नाडियाडवाला का साथ आना। हैरानी इस बात की थी कि सलमान खान के फेस वैल्यू पर इस बार फिल्म को चलाने की कोशिश कम दिखी, टीजर हो या ट्रेलर, इन दो बातों पर ज्यादा फोकस था। शायद इसलिए क्योंकि पिछली कुछ फिल्मों में सलमान की एक्टिंग के साथ-साथ उनकी च्वाइस को भी सवालों में लाया गया था। अब गजनी के डायरेक्टर का आना इमोशनल ड्रामा की गारंटी थी, नाडियाडवाला के साथ का मतलब मासी एक्शन। अब सलमान खान के लिए ये ईद स्पेशल क्या ‘सिकंदर’ का मुकद्दर बन पाएगी?
गुजरात के राजकोट में अभी भी राजशाही चल रही है, वहां पर संजय राजकोट (सलमान खान) नाम का राजा है। दूसरे राजाओं से वो अलग है क्योंकि वो सत्ता में रहने के लिए नहीं आया है, बल्कि उसे तो सत्ता पर बैठाने वाली जनता की सेवा करनी है। फिल्म के शुरुआती इंट्रोडक्शन में ही बता दिया जाता है कि संजय राजकोट आपकी आम कहानियों वाला राजा नहीं है। उसके राजसी शौक नहीं है, वो दिखावा नहीं करता है, हां लोगों के लिए अपनी जान भी दे सकता है। राजा की रानी है सायश्री (रश्मिका मंदाना), उम्र कम है, संजय ने बड़ा दिल दिखाते हुए उससे शादी की है। एक सीन में सायश्री खुद ही अपनी एक सेविका को कहती है- उम्र में जरूर फर्क है, लेकिन सोच में नहीं (मेकर्स ने सलमान-रश्मिका के एज गैप को चालाकी से जस्टिफाई करने की कोशिश की)।
अब राजा-रानी की खूबसूरत प्रेम कहानी में एक विलेन भी है- प्रधान (सत्यराज), नेता है, बड़ा मंत्री है और अपना एक रुतबा भी रखता है। उसी रुतबे के दम पर प्रधान का बेटा (प्रतीक बब्बर) दूसरों को परेशान कर रहा है। उसका आतंक बढ़ता जा रहा है, उस आतंक का अंत करना ‘सच्चे राजा’ का मकसद है। तो बस सबक बेटे को सिखाना है, लेकिन राजा ने दुश्मनी एक बड़े मंत्री से ली है। इस दुश्मनी की वजह से ही मारधाड़ होगी, इमोशनल ड्रामा होगा और थोड़ी बहुत डायलॉगबाजी।
‘सिकंदर’ देखने से पहले ‘सिकंदर’ के ट्रेलर का रिव्यू भी जनसत्ता ने किया था, उस रिव्यू को भी एक बार जरूर पढ़ना चाहिए। उस रिव्यू में हमने बताया था कि ‘सिकंदर’ में कहानी के नाम पर कुछ नहीं है, सस्ती डायलॉगबाजी जरूर दिखाई दी थी। मन की एक आवाज ने अंदर से कहा- किसी भी चीज को उसके कवर से जज करना सही नहीं, एक बार ऐसा भी लगा कहीं सलमान खान के साथ हम कोई बड़ा अन्याय तो नहीं कर रहे। लेकिन कभी-कबार जिसे कुछ लोग अन्याय मानते हैं, असल में वो सच्चाई का आईना दिखाने की कोशिश है। सलमान को भी आज वही सच्चाई का आईना दिखाना पड़ेगा।
‘सिकंदर’ जैसी फिल्म ने एक बार फिर सलमान खान के करियर को बट्टा लगाने का काम किया है। इस फिल्म को देखने के बाद ना बड़े बजट वाली कोई फीलिंग आई है, ना मासी एंटरटेनमेंट वाला वादा पूरा हुआ है, एक्शन को माफी के साथ ‘थर्ड क्लास’ बताना पडे़गा। फिल्म का पहला हाफ बेइंतहा धीमा है, शुरुआत में तो ऐसा लगा कि शायद फिल्म में ड्रामा एलीमेंट डालने के लिए ये सबकुछ किया गया। लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ी, असली निष्कर्ष ये रहा- कुछ दिखाने के लिए था ही नहीं। एक सिंपल सा फंडा होता है- अगर मासी एंटरटेनमेंट फिल्म बना रहे हैं तो उसमें कई लाइट मोमेंट होंगे जो हंसने पर मजबूर करेंगे, साथ में तगड़ा एक्शन दिखेगा। अगर एक इमोशनल फिल्म बना रहे हैं तो ड्रामा बहुत ज्यादा होना चाहिए, एक टेंशन एंड तक रहनी चाहिए जो प्लॉट को बांधकर रखे।
‘सिकंदर’ को तो दोनों ही एलीमेंट्स का कॉम्बो बताया गया था, लेकिन मासी एंटरटेनमेंट वाला वादा चकनाचूर हुआ है, ड्रामा चाहकर भी आपको कहीं दिखेगा नहीं। कुछ सीन्स में सलामन खान की आंखों में आंसू हैं, लेकिन वो दिल को पिघला पाएगें, मुश्किल लगता है। फिल्म का पहला हाफ अगर स्लो था तो दूसरा हाफ उतना ही ज्यादा कन्फ्यूज। हर कीमत पर सिर्फ एक ऐसा मसीहा दिखाना था जो सभी की मदद कर रहा है। लेकिन सलमान को मसीहा बनाने के चक्कर में कहानी को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। बीच-बीच में मेकर्स की नींद टूटी तो सलमान को मारधाड़ करते हुए दिखाया- लेकिन बिना कहानी ना आंखों में आए आंसू कोई मतलब रखते हैं और ना ही ऐसा एक्शन सीटियां बजाने पर मजबूर करेगा।
बड़ी फिल्मों में एक चीज कॉमन होती है, कहानी धोखा दे सकती है, लेकिन लीड एक्टर की एक्टिंग में दम होता है, ऐसा भी इसलिए क्योंकि मेकर्स सारा पैसा, सारी ताकत उसी कलाकार को चमकाने में लगा देते हैं। लेकिन अफसोस, ‘सिकंदर’ में ऐसा कुछ नहीं हुआ है। सलमान खान ने कुछ ऐसा नहीं किया जो अलग हो, जिसे देख लगे कि भाईजान ने तहलका मचा दिया। ‘किसी का भाई किसी की जान’ में जिस लुक में सलमान दिखे, वही लुक ‘सिकंदर’ में है, बस बाल छोटे हैं। अब जब इतनी क्रिटिविटी दिखाने की कोशिश हुई है तो इससे ज्यादा उम्मीद करना भी बेकार है।
सलमान शुरू से ही संजय राजकोट के रोल में मिसफिट लगे। राजा वाली कोई वाइब दिखी नहीं, इसके ऊपर एक्शन सीन्स में उनकी अजीब सी वो स्माइल अभी भी कायम है। रश्मिका मंदाना को क्यों कास्ट किया गया, ये सवाल हम क्यों पूछे- मेकर्स को अपने दिल से पूछना चाहिए। कोई स्पाइलर नहीं दे रहे हैं, लेकिन एनिमल, पुष्पा और हाल ही में छावा जैसी फिल्म में दिखने वालीं रश्मिका सिर्फ 20-25 मिनट के लिए स्क्रीन पर दिखी हैं। बात सिर्फ ऐज गैप की नहीं है, लेकिन सलमान और रश्मिका की केमिस्ट्री पूरी तरह बेमेल, बेदम और बेइंतहा पेशेंस का टेस्ट लेने वाली रही है। एक बार के लिए रश्मिका की तरफ से तो थोड़ा एफर्ट दिख भी रहा है, रोमांटिक सीन्स में सलमान तो काफी असहज लगे हैं।
वैसे ‘सिकंदर’ को एक और तरीके से बेचा जा रहा था- कट्टपा वाले सत्यराज विलेन के रोल में। मेकर्स की तारीफ बनती है क्योंकि उन्होंने सत्यराज की वैल्यू को समझा, लेकिन उनकी आलोचना भी उतनी ही बनती है कि उन्होंने एक बेहतरीन कलाकार को पूरी तरह वेस्ट कर दिया। इतना कमजोर विलेन शायद कई फिल्मों बाद देखने को मिला है। जीरो इंटेनसिटी, नफरत चाहकर भी हो नहीं पाती और सीटी वाले डायलॉग्स तो कोई मिले ही नहीं। ‘सिकंदर’ का सबसे बड़ा लूपहोल तो ये भी रहा है कि मेन लीड बनाम मेन विलेन वाला सीन ही पूरी तरह फीका है। मतलब क्लाइमेक्स आया, क्लाइमेक्स चला गया- ZERO REACTION FROM AUDIENCE।
यही पर बात करनी चाहिए ‘सिकंदर’ के निर्देशक ए आर मुर्गदास की। उन्हें भी शायद पता था कि उनका सबसे सक्सेसफुल प्रोजेक्ट गजनी रहा है। लेकिन जिस ड्रामे, जिस एक्शन और जिस मास अपील ने गजनी को ब्लॉकबस्टर बनाया, मुर्गदास वो सबकुछ ‘सिकंदर’ में डालना भूल गए। सच्चाई तो यह है कि लोगों को भी सलमान से ज्यादा भरोसा इस बार ए आर मुर्गदास पर था। उनके निर्देशन के दम पर उम्मीद की जा रही थी कि फिल्म चल जाएगी। लेकिन बात चाहे फस्ट हाफ की हो या फिर सेकेंड हाफ की, बात चाहे इमोशनल सीन्स की हो या फिर एक्शन की, हर जगह वे भी फेल रहे हैं। निर्देशन इतना ढीला दिखा है कि एक बार भी कहानी को पेस पकड़ने का मौका नहीं मिला, बोरियत हावी रही और हॉल में सिर्फ सन्नाटा।
‘सिकंदर’ में एक्शन सीन्स को तीन डायरेक्टर संभाले हैं- Sunil Rodrigues, Anbariv और Stun Siva। लेकिन किसी ने सही कहा है- तीन बिगाड़ा काम बिगाड़ा। जो एक्शन ‘सिकंदर’ की यूएसपी बन सकते थे, वहां भी एक्स फैक्टर मिसिंग है। कई बार तो ऐसा लगेगा कि ऐसा एक्शन शायद सलमान खान को सूट ही नहीं करता या कहना चाहिए उनकी उम्र को सूट नहीं करता। बड़ी स्क्रीन पर जब फिल्म देखेंगे, एक्शन सीन्स में कुछ खामियां भी पकड़ में आएंगी, ऐसे बेवजह जंप कट्स देखने को मिलेंगे जो पूरे फ्लो को ही तोड़कर रख देंगे। बड़े बजट वाली फिल्मों में ऐसी गलतियां दिखना शॉकिंग है।
‘सिकंदर’ का बैकग्राउंड स्कोर भी काफी कमजोर कहा जाएगा, जिस साउंडट्रैक के दम पर शायद कुछ सीन्स एलीवेट हो जाते, वहां भी मामला गड़बड़ा गया है। ऐसे में ‘सिकंदर’ एक महा निराशा वाली फिल्म है जो हर पहलू पर दर्शकों को धोखा देती है, ऑडियंस भी थिएटर से बाहर आकर बस इतना ही बोल सकती है- ऐसी ईदी नहीं चाहिए थी भाईजान!