बॉलीवुड की दुनिया बाहर से काफी चकाचौंध वाली दिखती है लेकिन, अंदर के संघर्ष के बारे में तो जो वहां पर है वही जानता है। काफी मशक्कतों, मेहनत और लंबे इंतजार के बाद फिल्म इंडस्ट्री में किसी एक की किस्मत पटलती है। जरूरी नहीं है कि हर किसी का सिनेमा जगत में गॉड फादर हो। नॉन फिल्मी बैकग्राउंड से आकर भी कई एक्टर्स ने अपनी धाक जमाई है। सिनेमा के इतिहास का कोई भी पन्ना पलट दिया जाए तो कोई ना कोई आउटसाइडर एक्टर मिल ही जाएगा। ऐसे में आज आपको सिनेमाग्राम में उस अभिनेत्री के बारे में बता रहे हैं, जो तवायफ परिवार से ताल्लुक रखती हैं। नानी-परनानी तवायफ तो मां हिंदी सिनेमा की सुपरस्टार रही हैं। ऐसे में चलिए बताते हैं उस अभिनेत्री के बारे में।

दरअसल, तवायफ परिवार से ताल्लुक रखने वाली एक्ट्रेस कोई और नहीं बल्कि सायरा बानो हैं। वो भले ही गुजरे जमाने की इंडस्ट्री की टॉप अभिनेत्री रही हैं लेकिन, अगर उनकी मां तवायफ और उन कोठे की गलियों से निकलकर बाहर नहीं आती तों इतिहास कुछ और होता। पहली बार अभिनेत्री बनने का सपना सायरा बानो ने नहीं बल्कि उनकी मां नसीम बानो ने देखा था और उन्होंने ये सच कर दिखाया। उन्होंने इसे सच ही नहीं किया बल्कि वो बॉलीवुड की पहली सुपरस्टार भी बनी थीं।

अगर कोठे की गलियों से निकलने के संघर्ष के बारे में बात की जाए तो ये कहानी थोड़ी लंबी है। सायरा बानो की नानी, परनानी और मां कोठे पर रहा करती थीं। यहां तक कि उनकी मां और नानी का दिल्ली में अपना कोठा तक था। ये कोई उनका पेशा नहीं था बल्कि सायरा की परनानी इस पेशे में मजबूरी में आई थीं। कहानी की शुरुआत जुम्मन बाई से होती है, जो कि सायरा बानो की परनानी थीं। जब वो सात साल की थीं तो उनके पिता ने ही उन्हें हसनपुर के कोठे में बेच दिया था। इसकी वजह थी कि वो लड़कियों से नफरत करते थे। हालांकि, जुम्मन बाई उस दलदल में नहीं रहना चाहती थीं। वो अक्सर भागने की कोशिश करती थीं तो कोठे की मालकिन ने उन्हें दिल्ली भेज दिया था, जिसके बाद वो कोठे की गलियों में ही कैद होकर रह गईं। यहां उन्होंने 18 साल की उम्र में एक बेटी को जन्म दिया, जो कोठे में ही काम करने वाले रतन सिंह की बेटी थीं। उस बच्ची का नाम शमशाद रखा गया।

शमशाद, सायरो बानो के जन्म के बाद उनकी नानी बनी थीं। शमशाद बचपन से ही बेहद खूबसूरती थीं। बताया जाता है कि जब वो 12-13 साल की थीं तो उनकी मां और सायरा बानो की परनानी जुम्मन बाई ने उन्हें कोठे पर बैठा दिया था। यहां पर वो छमिया के नाम से फेमस हुई थीं। उनकी खूबसूरती इस कदर थी कि दूर-दूर के नवाब और अंग्रेज अफसर तक उनको देखने आते थे। यहां तक कि एक बार तो छमिया बाई के लिए अब्दुल वाहिद रहमान, जो कि हसनपुर के रईस थे, की बहस अंग्रेजी अफसर से हो गई थी। उन्होंने कहा था कि छमिया बाई उनके अलावा किसी के सामने नहीं नाचेगी।

वहीं, दोनों के बीच ये बहस इस कदर हो गई कि दोनों ने छमिया बाई पर शर्त रख दी कि जो सबसे ऊंची बोली लगाएगा छमिया बाई उसकी होगी। इस बोली में वाहिद खान ने ऊंची बोली लगाकर छमिया बाई को जीत लिया। इसके बाद वो उन्हें अपने बंगले लेकर चला गया। यहां उन्होंने एक बच्ची को जन्म दिया, जिसे रोशन आरा नाम दिया गया लेकिन बाद में वो नसीम बानो के नाम से फेमस हुईं।

नसीम बानो, बाद में सायरा बानो की मां बनी थीं। लेकिन, उससे पहले वो बॉलीवुड की पॉपुलर अभिनेत्री बन चुकी थीं। नसीम बनो की बचपन से ही अभिनेत्री बनने का शौक था। छमिया बाई भी इस दलदल से निकलना चाहती थीं तो वो नसीम को लेकर मुंबई चली आई थीं। मुंबई आने के बाद नसीम मां के साथ फिल्मों की शूटिंग देखने के लिए जाती थीं। इसी बीच एक दिन सौरभ मोदी की नजर नसीम पर पड़ी। उस समय वो 11वीं में पढ़ रही थीं। वो उन्हें फिल्म ऑफर करना चाहते थे। ऐसे में किसी तरह से मां छमिया को मनाया। उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया और इंडस्ट्री में ही उन्हें बाद में नसीम बानो नाम दिया गया था। वो इंडियन सिनेमा की सफल अभिनेत्री रही हैं। उन्हें ‘द फर्स्ट क्वीन ऑफ इंडियन सिनेमा’ का टैग भी दिया गया था। नसीम ने एहसान उल हक से शादी की थी और सायरा बानो उन्हीं की बेटी हैं, जो खुद भी इंडस्ट्री का जाना-पहचाना नाम हैं और दिवंगत एक्टर दिलीप कुमार की पत्नी।

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