आजकल के लाइफस्टाइल और खानपान के चलते कई स्वास्थ्य संबंधी समस्या होने लगी हैं, जिसमें यूरिक एसिड भी बहुत आम है। कई लोगों में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ रहा है। यूरिक एसिड को कंट्रोल करना बहुत ही जरूरी है। एक बार शरीर में यूरिक एसिड बढ़ जाए, तो यह समस्या धीरे-धीरे जोड़ों में सूजन, दर्द और गाउट जैसी समस्याएं पैदा कर सकती है। ऐसे में लोग इलाज के साथ-साथ प्राकृतिक उपायों की तलाश करते हैं। आयुर्वेद में कई औषधीय पौधों के बारे में बताया गया है जो यूरिक एसिड को कंट्रोल करने में कारगर माने जाते हैं। नोएडा कपिल त्यागी आयुर्वेद क्लिनिक के डायरेक्टर डॉक्टर कपिल त्यागी ने यूरिक एसिड को कंट्रोल करने के लिए कुछ प्राकृतिक उपाय बताए हैं।

डॉ. कपिल त्यागी ने यूरिक एसिड ने बताया कि औषधीय गुणों से भरपूर कुछ चीजें न सिर्फ यूरिक एसिड को कंट्रोल करने में मदद कर सकती हैं, बल्कि लिवर, किडनी और पाचन तंत्र को भी मजबूत कर सकती हैं। चलिए आपको बताते हैं यूरिक एसिड को कंट्रोल करने के लिए किन चीजों का सेवन लाभकारी होता है।

आयुर्वेद में हरीतकी को रसायन कहा जाता है, जो पूरे शरीर को शुद्ध और संतुलित करने में मदद करता है। यह आंतों को साफ करने, पाचन में सुधार करने और लिवर की कार्यक्षमता बढ़ाने में मदद करता है। जब शरीर में मेटाबॉलिज्म में सुधार होता है, तो यूरिक एसिड जैसे विषाक्त पदार्थ अपने आप बाहर निकलने लगते हैं। रात को गर्म पानी के साथ हरीतकी चूर्ण लेने से कब्ज दूर होती है और शरीर हल्का महसूस होता है।

आयुर्वेद की तीन शक्तिशाली जड़ी बूटियों भीभीतकी, हरीतकी और आंवला से मिलकर बना त्रिफला यूरिक एसिड का बढ़िया उपचार है। इसके एंटीऑक्सीडेंट, एंटी बैक्टीरियल और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण सेहत को कई फायदे पहुंचाते हैं और कई बीमारियों से राहत दिलाने में असरदार होते हैं। यूरिक एसिड को कंट्रोल करने के लिए सुबह खाली पेट एक गिलास गर्म पानी के साथ एक चम्मच त्रिफला पाउडर ले सकते हैं।

वरुण एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि है, जिसका उपयोग विशेष रूप से यूरिक एसिड, गुर्दे की पथरी और मूत्र पथ के रोगों के उपचार में किया जाता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट और मूत्रवर्धक गुण होते हैं, जो शरीर में जमा यूरिक एसिड को प्राकृतिक रूप से हटाते हैं। वरुण की छाल से बना काढ़ा या गोली के रूप में लेने से मूत्र प्रवाह में सुधार होता है और गुर्दे की कार्यक्षमता बढ़ती है। यह लिवर को डिटॉक्स करने में भी मदद करता है।

आयुर्वेद में गोक्षुर का उपयोग मूत्र मार्ग के रोगों के लिए विशेष रूप से प्रभावी माना जाता है। इसमें मूत्रवर्धक गुण होते हैं, जो शरीर से विषाक्त पदार्थों यानी टॉक्सिन और अतिरिक्त यूरिक एसिड को बाहर निकालने में मदद करते हैं। गोक्षुर के नियमित सेवन से मूत्र प्रवाह बढ़ता है और गुर्दे को साफ रखने में भी मदद मिलती है। इसके अलावा यह शरीर में सूजन को कम करता है और मांसपेशियों की रिकवरी में भी सहायता करता है।

इसके अलावा हड्डियों की मजबूती के लिए खीरे के बीज का सेवन भी किया जा सकता है। खीरे के बीज ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसी हड्डियों की बीमारियों को रोकने के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं।