भारत में फास्ट करने का चलन सदियों पुराना है। उपवास यानी फास्टिंग करना सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है। फास्ट करने से बॉडी डिटॉक्सिफाई होती है और पाचन तंत्र ठीक रहता है। फास्ट करने से मानसिक और शारीरिक हेल्थ भी अच्छी होती है। दरअसल, रमज़ान का पाक महीना चल रहा है। मुस्लिम समुदाय में रमज़ान के महीने को सबसे पाक माह माना जाता है। रमज़ान के पवित्र महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह की इबादत करते हुए उनके नाम का रोजा रखते हैं, जो एक महीने तक चलता है। रोजे के दौरान सूरज ढलने के बाद शाम को इफ्तार में और सुबह सूर्योदय से पहले सुहूर यानी सहरी के समय ही कुछ खा या पी सकते हैं। इसके बाद पानी तक नहीं पिया जाता यानी पूरे दिन भूखा और प्यासा रहना पड़ता है। चलिए आपको बताते हैं एक महीने तक फास्ट रखने से सेहत पर क्या असर होता है।

एनयूटीआर (NUTR), दिल्ली की क्लिनिकल डाइटिशियन और संस्थापक लक्षिता जैन के मुताबिक, उपवास यानी फास्ट का मतलब है कि एक निश्चित अवधि के लिए भोजन का सेवन नहीं करना और एक निश्चित समय तक ही कुछ खाया जा सकता है। एक महीने तक उपवास यानी फास्ट करने से शरीर को कई तरह के लाभ मिल सकते हैं, जैसे कि वजन कम करना, पाचन तंत्र को बेहतर बनाना और शरीर को डिटॉक्सीफाई करना, लेकिन कुछ नुकसान भी हो सकते हैं, जैसे कि इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन और कमजोरी आदि।

NCBI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 8 से 12 हफ्तों तक 1 दिन छोड़कर फास्ट करने से खराब कोलेस्ट्रॉल का लेवल 20 से 25 प्रतिशत तक कम हो सकता है। वहीं, 3 से 12 हफ्तों तक एक दिन छोड़कर फास्ट करने से शरीर से टोटल कोलेस्ट्रॉल का 10 से 21 प्रतिशत कम होता है।

एक महीने तक उपवास के दौरान शरीर कीटोसिस की स्थिति में जा सकता है, जिससे शरीर एनर्जी के लिए कार्ब्स की बजाय शरीर में जमा एक्स्ट्रा फैट को जलाना शुरू कर देता है। इससे वेट लॉस में मदद मिल सकती है। इसके अलावा 30 दिनों तक बिना कुछ खाए रहने से शरीर में कैलोरी की मात्रा भी अपने आप ही कम हो जाएगी, इससे वजन कम करने में मदद मिल सकती है।

एक लंबी अवधि तक उपवास रखने से पाचन तंत्र भी अच्छा होता है। उपवास से पाचन तंत्र को आराम मिलता है, जिससे पाचन संबंधी समस्याएं कम हो सकती हैं, क्योंकि फास्ट के दौरान कुछ भी बाहर या जंक फूड्स का सेवन बंद होता है, जिससे पाचन से संबंधी समस्या भी नहीं होती।

उपवास करने से शरीर में विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद मिल सकती है। जिससे शरीर की सफाई होती है। हालांकि, इस दावे का समर्थन करने के लिए बहुत कम वैज्ञानिक प्रमाण हैं, क्योंकि बॉडी को डिटॉक्स करने के लिए शरीर में पहले से ही समय-समय पर कई विषहरण प्रक्रियाएं होती रहती हैं।

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