इजरायल और ईरान के बीच चल रहे संघर्ष में अमेरिका का भी प्रवेश हो गया है। ईरान परर अमेरिका के हमले के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि ईरान के परमाणु केंद्रों को बहुत नुकसान पहुंचा है। अमेरिका के रक्षा अधिकारियों ने कहा है कि वे हमले में हुए नुकसान का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं। ईरान ने भी यह नहीं बताया है कि हमले में उसे कितना नुकसान हुआ है। इस घटनाक्रम का दुनिया, मध्य पूर्व और भारत पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। आइए समझते हैं पूरा मामला…
अमेरिका – इजरायल संबंध मजबूत हुए – अमेरिका आधिकारिक तौर पर ईरान के खिलाफ सैन्य हमलों में शामिल हो गया है। अब तक, उसने केवल 13 जून से शुरू हुए ईरान पर हमलों में इजरायल को समर्थन दिया है, साथ ही ईरानी सेना द्वारा जवाबी हमलों को रोकने में भी मदद की है। यह अमेरिका द्वारा इजरायल के लिए समर्थन का पहला पूर्ण प्रदर्शन है। दावा है कि ईरान परमाणु हथियार विकसित कर रहा है और इजरायल के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा कर रहा है। कमोवेश अमेरिका ने भी यही आशंका जताई थी। Iran Israel Latest News
ट्रंप का राजनीतिक एजेंडे से भटकाव – अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल (2017-21) के लिए चुनाव प्रचार के दिनों से ही देश को अंतहीन युद्ध में शामिल न करने का वादा किया था। 2019 के स्टेट आफ द यूनियन संबोधन में उन्होंने कहा, राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में मैंने जोरदार तरीके से एक नए दृष्टिकोण का वादा किया है। महान राष्ट्र अंतहीन युद्ध नहीं लड़ते। यह दूसरे कार्यकाल में भी उनके अभियान का हिस्सा था। हालांकि, ईरान में परमाणु सुविधाओं पर बमबारी करने के उनके निर्णय के साथ, अमेरिका अब एक खतरनाक दौर में प्रवेश कर गया है। इससे पूर्ण पैमाने पर युद्ध हो सकता है।ॉ
युद्ध में अमेरिका के शामिल होने का सबसे ज्यादा फायदा इजरायल को हुआ है क्योंकि उसके पास फोर्दो में परमाणु संवर्धन सुविधा को नष्ट करने की क्षमता नहीं थी, जिसे एक पहाड़ के नीचे जमीन में गहराई से खोदा गया था। अमेरिका ने वहां हमला कर परमाणु ठिकाने को तबाह कर दिया है, यह इजराइल के लिए बड़ी जीत है।
ईरान की सुरक्षा तार-तार – इजरायल ने ईरान की मिसाइल उत्पादन क्षमता को भी निशाना बनाया है और अब दावा किया है कि उसने ईरान की मिसाइल क्षमताओं का लगभग एक तिहाई हिस्सा नष्ट कर दिया है। यह तथ्य कि बी-2 बमवर्षक विमान ईरानी हवाई क्षेत्र में बिना किसी चुनौती के आए और चले गए। इससे ईरान की हवाई सुरक्षा की कलई खुल गई।
इराक का अतीत – इस हमले के बाद ईरान ने अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने और अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ जाने के लिए अमेरिका की आलोचना की है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका ने 2003 में इराक पर हमला किया था, क्योंकि उसने झूठा दावा किया था कि उसके पास सामूहिक विनाश के हथियार हैं। अमेरिका का हस्तक्षेप स्पष्ट रूप से एक प्रश्न खड़ा करता है, जिस पर आने वाले दिनों में विचार करने की आवश्यकता है।
ईरानी शासन पर सवाल- इस हमले से ईरानी शासन कमजोर और जवाबी कार्रवाई के लिए अयोग्य नजर आता है। सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई 86 वर्ष के हैं। ईरानी सैन्य नेतृत्व के कुछ शीर्ष अधिकारी अमेरिकी हमले से पहले मारे गए थे, इससे यह साफ है कि तेहरान राजनीतिक और सैन्य रूप से अपने सबसे कमजोर दौर में है। इसने तेहरान में शासन परिवर्तन की अटकलों को भी बल दिया है, जिसके बारे में अमेरिका ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है।
भारत ने इस घटनाक्रम पर करीब से नजर रखा हुआ है, क्योंकि इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता में उसकी हिस्सेदारी है। मध्य पूर्व में लगभग अस्सी से नब्बे लाख भारतीय रहते और काम करते हैं, और उनकी सुरक्षा और कल्याण भारत सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है। हाल के दिनों में कई भारतीय छात्रों के साथ-साथ नेपाल और श्रीलंका के छात्रों को भी ईरान से निकाला गया है। भारत की लगभग 60 फीसद ऊर्जा जरूरतें इस क्षेत्र से पूरी होती हैं। कोई भी अस्थिरता भारत की ऊर्जा सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है। ईरान पर आक्रामक ट्रंप की वजह से US और उसके सहयोगियों पर क्या असर पड़ेगा?