इजरायल, ईरान के परमाणु और सैन्य स्थलों के खिलाफ अपने सैन्य अभियान को तेज कर रहा है। इस बीच ईरान भी जवाबी कार्रवाई कर रहा है। वहीं ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई (Supreme Leader Ayatollah Ali Khamenei) एक बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं। उनके भाषणों, रणनीति और बयानबाजी पर दुनिया भर में कड़ी नजर रखी जा रही है। लेकिन खामेनेई से बहुत पहले, इस्लामी गणराज्य के संस्थापक अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी थे, जिन्होंने ईरान की क्रांतिकारी पहचान को आकार दिया। हालांकि दोनों का भारत से गहरा पैतृक संबंध है।
खुमैनी और खामेनेई की कहानी उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के किंटूर गांव (जो शिया स्कॉलरशिप का सदियों पुराना केंद्र है) की ओर ले जाती है। यहीं पर खुमैनी के दादा और खामेनेई के पूर्वज सैयद अहमद मुसावी हिंदी का जन्म 1800 के आसपास हुआ था। बाद में वे इमाम अली की कब्र पर जाने के लिए 1830 में इराक के नजफ चले गए और अंत में ईरान में बस गए। हालांकि उनका भारतीय मूल उनके साथ रहा और उन्होंने अपने नाम के एक हिस्से के रूप में हिंदी को बरकरार रखा। यह आधिकारिक ईरानी रिकॉर्ड्स में आज भी दिखाई देता है।
इस्लामी गणराज्य ईरान के फाउंडिंग फादर अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी, ईरानी इतिहास और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में एक शक्तिशाली मौजूदगी रखते हैं। बैंकनोटों पर उनके काले और सफ़ेद चित्रों से लेकर तेहरान में उनके सुनहरे गुंबद वाले मकबरे तक उनका जिक्र है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि उनकी जड़ें भारत, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के पास किंटूर में हैं।
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खुमैनी के दादा, सैयद अहमद मुसावी हिंदी एक शिया मौलवी थे, जिनका जन्म 1800 के आसपास किंटूर में हुआ था। सरनेम हिंदी उनके भारतीय मूल को दर्शाता है। अहमद हिंदी ने 1830 में भारत छोड़ दिया। वह पहले इमाम अली की कब्र पर जाने के लिए नजफ़ गए और फिर इराक की यात्रा की और बाद में ईरान में बस गए। उनका परिवार मूल रूप से 18वीं शताब्दी में ईरान से भारत आया था।
मुसावी हिंदी के धार्मिक आदर्शों और इस्लामी पुनरुत्थान के आह्वान ने रूहोल्लाह खुमैनी को गहराई से प्रभावित किया, जिन्होंने बाद में 1979 की इस्लामी क्रांति का नेतृत्व किया जिसने शाह को उखाड़ फेंका। अमेरिकी एजेंसी सीआईए ने रूहोल्लाह खुमैनी के उग्र उपदेशों, बयानबाजी और मनमोहक लहजे को नोट किया जिसने लाखों लोगों को संगठित किया। अपने दादा की आस्था और क्रांतिकारी भावना से प्रेरित होकर रूहोल्लाह खुमैनी ने ईरान को एक शिया मुल्क में बदल दिया और पश्चिम एशियाई भू-राजनीति को नया रूप दिया। उन्होंने एक विरासत को आगे बढ़ाया जो चुपचाप उत्तर भारत के दिल में शुरू हुई।
शिया इस्लाम के सबसे पवित्र शहरों में से एक नजफ़ में अध्ययन करने के बाद सैयद अहमद मुसावी अंत में ईरान के मशहद चले गए, जो एक प्रमुख शिया तीर्थ शहर और इमाम रज़ा दरगाह का घर है। वे वहां स्थायी रूप से बस गए और ईरानी धार्मिक समाज के गए और इसके मौलवी वर्ग का हिस्सा बन गए। मुसावी परिवार (सातवें शिया इमाम, इमाम मूसा अल-काज़िम के वंशज) पारंपरिक रूप से अपने धार्मिक और आध्यात्मिक नेतृत्व के लिए सम्मानित थे। सैयद अहमद का मशहद में जाना ईरान के मौलवी हलकों में खामेनेई परिवार के उत्थान की शुरुआत थी।
अली खामेनेई का जन्म 1939 में मशहद में हुआ था। उनके पिता सैयद जवाद खामेनेई, एक विनम्र धार्मिक विद्वान और सैयद अहमद मुसावी हिंदी के वंशज थे। खामेनेई का पालन-पोषण एक गहरे धार्मिक माहौल में हुआ, जो शिया धर्मशास्त्र, इस्लामी न्यायशास्त्र और क्रांतिकारी विचारों में डूबा हुआ था। हालांकि अली खामेनेई ने अपनी भारतीय विरासत के बारे में शायद ही कभी सार्वजनिक रूप से बात की हो, लेकिन उनके परिवार का नाम और भारतीय मिट्टी से वंशावली संबंध व्यापक रूप से स्वीकार किए जाते हैं। राज्य से जुड़े मीडिया सहित कुछ ईरानी स्रोतों ने इन जड़ों का उल्लेख ऐतिहासिक रुचि के बिंदु के रूप में किया है।