Bangladesh News: बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी और उसकी स्टूडेंट विंग को फिर से अपना राजनीतिक दर्जा हासिल हो गया है। बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों को रजिस्ट्रेशन की इजाजत भी दे दी है। इसके जरिये अब वह बांग्लादेश में होने वाले इलेक्शन में हिस्सा ले सकते हैं। इससे पहले पिछले साल मोहम्मद यूनुस ने सत्ता संभालने के बाद संगठन से बैन हटा लिया था।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, शेख हसीना की सरकार ने साल 2013 में जमात-ए-इस्लामी संगठन पर बैन लगा दिया था। बैन लगने के बाद भी वह बांग्लादेश में काफी एक्टिव है। इस संगठन के ऊपर हिंदुओं पर हमलों में शामिल होने का भी आरोप लगा। जमात-ए-इस्लामी ने 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान का समर्थन किया था। पाकिस्तान सरकार के आदेश पर पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान वहां के लोगों पर रेप और हत्या सहित कई अत्याचार किए।
पाकिस्तान बांग्लादेश में फिर से अपनी पैठ बनाने की कोशिश में लगा हुआ है। यूनुस के आलोचकों के अनुसार यूनुस सत्ता में आने के साथ ही पाकिस्तान के साथ मधुर और मजबूत संबंधों की वकालत कर रहे हैं। उनका यह रुख जमात के पाकिस्तान परस्त रुख के जैसा ही है। जब बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना सत्ता में थी तो उनके देश के भारत के साथ काफी अच्छे रिश्ते रहे।
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भारत पर असर की बात करें तो भारत ने सित्तवे पोर्ट और कलादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट किया है। इन प्रोजेक्ट्स से हमारी दक्षिण पूर्व एशिया तक कनेक्टिविटी बढ़ती है। यह प्रोजेक्ट म्यांमार में सित्तवे पोर्ट को 225 किलोमीटर लंबे वॉटरवे के जरिये भारत-म्यांमार बॉर्डर से पलेतवा तक जोड़ता है। अगर जमात का प्रभुत्व बांग्लादेश में आता है तो भारत के इन प्रोजेक्ट को काफी नुकसान हो सकता है। इसके अलावा जमात ने दक्षिण एशियाई अप्रवासी समुदायों के जरिये भी एक नेटवर्क बनाने की कोशिश की है। बांग्लादेश में जमात के प्रभुत्व का मतलब है कि उसका पूर्वी पाकिस्तान वाला दौर वापस लौटकर आ सकता है। यह भारत के लिए चिंताएं पैदा कर सकता है।
जमात-ए-इस्लामी अभी तक कभी बहुमत हासिल नहीं कर पाई है, लेकिन किंगमेकर की भूमिका निभाती रही है। यह पहले बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की सहयोगी रही है। हाल ही में ऐसे कई मुद्दे सामने आए हैं। उन पर बीएनपी और जमात के बीच में कोई भी सहमति नहीं बन पाई है। इनमें दिसंबर 2025 तक चुनाव कराने की मांग भी शामिल है। बीएनपी इस मांग पर अड़ी हुई है, जबकि जमात को यूनुस के लंबे समय तक बने रहने से कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि इससे संगठन को चुनावों के लिए तैयार होने के लिए ज्यादा समय मिल जाता है। बांग्लादेश में शेख हसीना पर क्यों चलाया जा रहा ‘मानवता के विरुद्ध अपराध’ का मुकदमा?