Shubhanshu Shukla Axiom 4 Mission, Dragon Capsule: भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने इतिहास रच दिया है। 28 घंटे के सफर के बाद शुभांशु शुक्ला का ड्रैगन कैप्सूल गुरुवार शाम करीब 4 बजे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंच गया। शुभांशु के कैप्सूल की डॉकिंग प्रक्रिया भी पूरी हो गई है। शुभांशु शुक्ला के साथ क्रू में तीन अन्य सदस्य भी हैं। यह लोग इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर लगभग 14 दिन रहेंगे।

डॉकिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दो तेज़ गति से चलने वाले अंतरिक्ष यान (Spacecraft) को एक ही कक्षा में लाया जाता है। इन्हें मैन्युअल रूप से या आटोमेटिक रूप से एक दूसरे के करीब लाया जाता है और अंत में एक साथ जोड़ा जाता है। यह क्षमता उन मिशनों को पूरा करने के लिए आवश्यक है जिनके लिए भारी अंतरिक्ष यान की आवश्यकता होती है जिसे एक सिंगल लॉन्च व्हीकल के साथ ले जाना संभव नहीं हो सकता है।

यह क्षमता न केवल एक अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने के लिए आवश्यक है बल्कि जिसके लिए अंतरिक्ष में अलग-अलग मॉड्यूल जुड़े होते हैं, उसके चालक दल और सप्लाई को भी उस तक ले जाने के लिए भी आवश्यक है।

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कोल्ड वॉर के दशकों के दौरान अंतरिक्ष की दौड़ के अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा थी। इसलिए चंद्रमा पर मनुष्यों को भेजने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए मिलन और डॉकिंग का प्रदर्शन करना आवश्यक था। 1966 में नासा का जेमिनी VIII टारगेट व्हीकल एजेना के साथ डॉक करने वाला पहला अंतरिक्ष यान बन गया था। जेमिनी VIII पृथ्वी की परिक्रमा करने वाला एक चालक दल वाला मिशन था, जिसकी कमान नील आर्मस्ट्रांग के पास थी, जो 1969 में चंद्रमा पर पैर रखने वाले पहले इंसान बने।

आईएसएस पर पहुंचने से पहले शुभांशु शुक्ला ने अपना अनुभव बताया। शुभांशु शुक्ला ने कहा कि वह बाकी क्रू सदस्यों के साथ स्पेस में होने से रोमांचित हैं और उन्होंने ऑर्बिट तक की यात्रा को अद्भुत बताया। शुभांशु ने कहा, “सभी को नमस्कार फ्रॉम स्पेस। कल से मुझे बताया गया है कि मैं बहुत सो रहा हूं, जो एक अच्छा संकेत है। मैं इसकी अच्छी तरह से आदत डाल रहा हूं, नजारों का आनंद ले रहा हूं, पूरे अनुभव का आनंद ले रहा हूं। एक बच्चे की तरह सीख रहा हूं। अंतरिक्ष में कैसे चलना है और कैसे खाना है। गलतियां करना अच्छा है, लेकिन किसी और को भी ऐसा करते देखना बेहतर है।”