Lay-off in USA: डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका में सरकारी कर्मचारियों पर आफत आ गई है। वहां नौकरियों से निकालने का सिलसिला शुरू हो गया। सत्ता संभालने के एक महीने के भीतर ही 9,500 से अधिक कर्मचारियों को हटाया जा चुका है। अपने बचाव में सरकार का कहना है कि खर्चों में कटौती के लिए ऐसा किया जाना जरूरी है। अगले कुछ महीनों में अभी और भी छंटनी होने की आशंका है। हालांकि यह कोई अचानक नहीं हुआ है। ट्रंप ने सत्ता में लौटते ही स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क को ‘डिपार्टमेंट ऑफ गवर्मेंट एफिशिएंसी (DOGE)’ का प्रमुख बनाया था। यह एक अस्थायी विभाग है, जिसका उद्देश्य सरकारी खर्चों को कम करना और तकनीकी सुधारों से कामकाज में अधिक कुशलता लाना है। मस्क के नेतृत्व में ही बड़े पैमाने पर इस छंटनी की योजना को लागू किया जा रहा है।

अब तक इंटीरियर, एनर्जी, कृषि, वेटरन और स्वास्थ्य विभागों में बड़े पैमाने पर नौकरियां गई हैं। इसके अलावा, उपभोक्ता वित्तीय सुरक्षा ब्यूरो जैसी संस्थाओं को भी बंद कर दिया गया है। टैक्स वसूलने वाली एजेंसी और इंटरनल रिवेन्यू सर्विस भी हजारों कर्मचारियों को हटाने की तैयारी कर रही है।

राष्ट्रपति ट्रंप ने छंटनी के पीछे सरकार के भारी कर्ज को वजह बताया है। उनका कहना है कि सरकार पर 36 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है और पिछले साल 1.8 ट्रिलियन डॉलर का घाटा हुआ था। ट्रंप का मानना है कि कई सरकारी विभागों में जरूरत से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं, जिससे सरकारी बजट पर अनावश्यक बोझ बढ़ रहा है।

जनवरी में ट्रंप प्रशासन ने 20 लाख सरकारी कर्मचारियों को नोटिस जारी कर स्वैच्छिक इस्तीफे का विकल्प दिया था। इसके बदले उन्हें 8 महीने की तनख्वाह देने की पेशकश की गई थी। इसके साथ ही यह भी साफ कर दिया गया था कि इस ऑफर को ठुकराने वालों की नौकरी की गारंटी नहीं होगी। अब तक 75,000 से अधिक कर्मचारी यह प्रस्ताव स्वीकार कर नौकरी छोड़ चुके हैं, जो कुल कर्मचारियों का करीब 3% है।

ट्रंप प्रशासन के इन फैसलों से सरकारी कर्मचारियों में असुरक्षा की भावना बढ़ गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस कटौती से सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता पर भी असर पड़ सकता है।

आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप प्रशासन अपने इस कदम को कितना आगे ले जाता है और इससे सरकार और जनता पर क्या असर पड़ता है।