Russia-India-China: दुनिया का पावर डायनेमिक्स बदलने के लिए रूस एक बार फिर भारत और चीन को साथ लाना चाहता है। ये तीन देशों की एक ऐसी तिकड़ी है जिसके जरिए अमेरिका के प्रभाव को कम करने की कोशिश होगी। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने इसी कड़ी में एक बड़ा संकेत भी दिया है। उनका साफ कहना है कि अब क्योंकि भारत और चीन के बीच में सीमा विवाद कम हुआ है, ऐसे में दोनों को फिर साथ आना चाहिए।

रूसी विदेश मंत्री ने एक जारी बयान में कहा कि हमे लगता है कि भारत और चीन को इतना समझ आ चुका है कि किस तरह से सीमा पर हालात को सही रखना है। ऐसे में समय आ चुका है कि एक बार फिर RIC के तहत तीनों ही देश के नेता फिर साथ आएं और बैठकों का दौर शुरू हो। अब जानकारी के लिए बता दें कि RIC कोई अभी का गुट नहीं है बल्कि इसकी शुरुआत 1990 में हो गई थी।

पूर्व रूसी पीएम येवगेनी प्रिमाकोव ने ही इस गुट की शुरुआत की थी, उस समय भी मकसद यही था कि एशिया के देशों को साथ लाया जाए और भारत को पश्चिमी देशों के प्रभाव कुछ दूर रखा जाए। असल में इस समय भी रूस की सबसे बड़ी चिंता यही है कि भारत पश्चिमी देशों के साथ अपनी दोस्ती ज्यादा मजबूत कर रहा है। क्वाड का बनना, उसकी लगातार बैठकें होना चीन के साथ-साथ रूस को भी पसंद नहीं आती है। अभी के लिए रूस कहता जरूर है कि भारत क्वाड को सिर्फ शांति के लिए इस्तेमाल कर रहा है, उसे सैन्य अभ्यास के लिए इसकी जरूरत नहीं है।

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लेकिन जानकार मानते हैं कि रूस को इसी बात की सबसे ज्यादा चिंता है, वो नहीं चाहता कि भारत पश्चिमी देशों के और ज्यादा करीब चले जाए। इसी वजह से चीन के साथ रिश्ते सुधारने पर फोकस किया जा रहा है, भारत को साथ रखने की कवायद हो रही है। यहां पर एक समझने वाली बात यह भी है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से राष्ट्रपति पुतिन पश्चिमी देशों के बीच में बुरी तरह आइसोलोट हो चुके हैं। रूस पर इस समय कई सारी पाबंदियां भी जारी हैं, इस बीच अपने देश की आर्थिक सेहत सुधारने के लिए रूस को अब एशिया के सहयोग की दरकार है।

यहां भी रूस ने चीन के साथ रिश्ते सुधार रखे हैं, उसकी निर्भरता भी काफी चल रही है, लेकिन अब टेबल पर भारत को साथ लाना मायने रखता है। रूस चाहता है कि बीजिंग पर भी निर्भरता कुछ कम हो, वहां भी बैलेंसिंग की जाए। इस वजह से भी ठंडे बस्ते में जा चुके RIC गुट को फिर सक्रिय करने की कोशिश है। अब रूस की अपनी जरूरते हैं, लेकिन भारत के सामने चुनौतियां और अवसर दोनों। असल में रूस के साथ भारत के रिश्ते मजबूत चल रहे हैं, लेकिन वहीं चीन के साथ अविश्वास की खाई काफी ज्यादा बढ़ चुकी है। गलवान का धोखा, पहलगाम के बाद पाकिस्तान को समर्थन, चीन के साथ भारत सहज नहीं है। इसी वजह से अगर RIC एक बार फिर सक्रिय होता है, उस स्थिति में भारत को बैलेंस साधना पड़ेगा, वो ना पश्चिमी देशों से दूरी बना सकता है और ना ही रूस जैसे दोस्त को खोने का रिस्क लेना चाहता है।

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