Donald Trump vs BRICS: ब्रिक्स गुट को लेकर एक बार फिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आक्रामक रुख अपनाया है। ब्रिक्स को लेकर ट्रंप ने ऐलान किया कि अमेरिका विरोधी नीतियों के साथ जुड़ने वाले देशों पर अमेरिका 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाएगा। हालांकि दिलचस्प बात यह भी है कि ट्रंप ने ये नहीं बताया कि ये अमेरिका विरोधी नीतियां क्या हैं।
6 महीने पहले ब्रिक्स करेंसी को लेकर जब समूह के देशों ने बड़ा ऐलान किया था, और डॉलर को चुनौती देने की बात कही थी, तो उस दौरान भी ट्रंप ने गुस्सा जाहिर किया था। ट्रंप ने कहा था कि ऐसे देशों पर 100 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा। एक तरफ ट्रंप धमकियां दे रहे हैं तो दूसरी ओर उनकी धमकियों से ब्रिक्स देशों के बीच संबंध और ज्यादा मजबूत होते नजर आ रहे हैं।
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ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ की बात को लेकर कहा कि ये बहुत ही गलत और गैरजिम्मेदारना रवैया है। उन्होंने सोमवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दुनिया बदल गई है। हमें कोई सम्राट नहीं चाहिए। हम संप्रभु देश हैं। डा सिल्वा ने डॉलर पर निर्भरता कम करने के प्रयास पर भी जोर दिया, जो ब्रिक्स के दीर्घकालिक लक्ष्यों में से एक है। उन्होंने कहा कि इस बिंदु पर पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं है, उन्होंने सुझाव दिया कि वैकल्पिक मुद्रा का चयन करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है और चरण दर चरण जारी रहेगी।
इसके अलावा बात चीन की करें तो वो भी लंबे वक्त से ट्रंप प्रशासन के खिलाफ टैरिफ वॉर में शामिल है। चीन की तरफ से कहा गया कि व्यापार और टैरिफ युद्धों में कोई विजेता नहीं है और संरक्षणवाद आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं देता है। दक्षिण अफ्रीका के सिरिल रामफोसा और बोलीविया के लुइस एर्से ने भी अपनी बात रखी, जबकि रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि अमेरिका ने विश्व व्यापार प्रणाली में अपनी शक्ति का घोर दुरुपयोग किया है।
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ब्राजील में दो दिवसीय शिखर सम्मेलन के बाद एक संयुक्त वक्तव्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित ब्रिक्स नेताओं ने कहा कि हम एकतरफा टैरिफ और गैर-टैरिफ उपायों के बढ़ने पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हैं, जो व्यापार को विकृत करते हैं और डब्ल्यूटीओ (विश्व व्यापार संगठन) के नियमों के अनुरूप नहीं हैं। बयान में “वैश्विक व्यापार में टैरिफ के बढ़ते उपयोग” का भी उल्लेख किया गया। हालांकि इस दौरान नाम नहीं लिया गया, लेकिन सभी जानते हैं कि बात अमेरिका की ही हो रही है।
इसके अलावा ब्रिक्स के साझा बयान में चेतावनी दी गई कि टैरिफ के निरंतर ‘अंधाधुंध’ उपयोग से “वैश्विक व्यापार कम हो सकता है। इसके अलावा वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है, तथा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक और व्यापारिक गतिविधियों में अनिश्चितता पैदा हो सकती है, जिससे मौजूदा आर्थिक असमानताएं और बढ़ सकती हैं। तेहरान अब इस संगठन का पूर्ण सदस्य है और यह अपरिहार्य था कि संयुक्त वक्तव्य में इजरायल के साथ सैन्य संघर्ष और अमेरिका द्वारा उसके परमाणु प्रतिष्ठानों पर बमबारी का उल्लेख किया गया।
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अब सवाल ये हैं कि आखिर क्यों ट्रंप ब्रिक्स को निशाना क्यों बना रहा है। इसको लेकर पश्चिम के अर्थशास्त्री और नीति विश्लेषक चाहे जो भी कहें, ऐसा प्रतीत होता है कि यह गुट अपने समर्थक जुटा रहा है और अमेरिका तथा अन्य पारंपरिक शक्तियों के लिए चुनौती के रूप में उभर रहा है। उदाहरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए पसंदीदा मुद्रा के रूप में डॉलर को हटाने की बात करने को बल दे रहा है।
इसके अलावा नव-विकसित, विकासशील और अल्प-विकसित अर्थव्यवस्थाओं पर इसके बढ़ते प्रभाव के कारण अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के लिए सौदे करते समय शर्तें तय करना कठिन हो गया है। ब्रिक्स की स्थापना 2009 में हुई थी, जिसमें ब्राजील, रूस, भारत और चीन संस्थापक राष्ट्र थे। 2010 में दक्षिण अफ्रीका इसमें शामिल हुआ, जिससे यह ब्रिक्स बन गया। इसके बाद 2024 में ब्रिक्स+ सदस्य मिस्र, इथियोपिया, संयुक्त अरब अमीरात और ईरान तथा 2025 में इंडोनेशिया भी इसमें शामिल होंगे।
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ब्रिक्स में थाईलैंड, मलेशिया, क्यूबा, नाइजीरिया, उज्बेकिस्तान और कजाकिस्तान सहित अन्य 10 देशों को ‘भागीदार’ का दर्जा प्राप्त है। इतना ही नहीं, सऊदी अरब, तुर्की, पाकिस्तान, अजरबैजान और वेनेजुएला भी सदस्यता चाहते हैं। ब्रिक्स की प्रासंगिकता और इसकी स्थिरता पर प्रश्न उठते रहे हैं, विशेषकर इसलिए क्योंकि यह भारत और ब्राजील जैसे लोकतांत्रिक देशों को रूस और चीन जैसे निरंकुश देशों के साथ लाता है और अब इसमें बहुत भिन्न आर्थिक स्थिति और परिस्थितियों वाले देश भी शामिल हैं।
सदस्यों की बढ़ती संख्या और इसमें शामिल होने के इच्छुक देशों की लंबी वेटिंग लिस्ट वैश्विक मंच पर इस समूह के प्रभाव को दर्शाती है। इसकी वजह यह भी है कि यह दक्षिण की आवाज है, क्योंकि औद्योगिक और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं अमेरिका जैसी स्थापित शक्तियों के खिलाफ खुद को मजबूत करने की कोशिश कर रही हैं।
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