ICC Warrant For Taliban Leaders: इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने 8 जुलाई को तालिबान के दो वरिष्ठ नेताओं हैबतुल्लाह अखुंदजादा और अब्दुल हकीम हक्कानी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। यह अफगानिस्तान पर शासन करने वाले इस्लामी मिलिशिया की जेंडर पॉलिसी का विरोध करने वाली महिलाओं, लड़कियों और अन्य लोगों पर अत्याचार करने के क्राइम के लिए हैं।
जजों ने आईसीसी के प्रोसिक्यूटर ऑफिस की तरफ से पेश किए गए सबूतों को स्वीकार कर लिया। बता दें कि आईसीसी एक इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल है। इसकी स्थापना रोम स्टेट्यूट के तहत की गई थी। यह एक इंटरनेशनल ट्रीटी है। इसे17 जुलाई 1998 को अपनाया गया था। इसका हेडक्वार्टर हेग, नीदरलैंड में है और इसने 1 जुलाई 2002 को अपनी स्थापना ट्रीटी के लागू होने के बाद काम करना शुरू किया। यह अकेला ऐसा कोर्ट है जिसके पास में व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने का अधिकार है। वहीं यह आईसीजे के बिल्कुल ही उलट है। वह केवल यूएन का एक अंग है और यह दो राज्यों के बीच विवाद को उठाता है।
हैबतुल्लाह अखुंदजादा तालिबान का अमीर या सुप्रीम लीडर है और अब्दुल हकीम हक्कानी अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात के चीफ जस्टिस हैं। तालिबान ने अगस्त 2021 में अफगानिस्तान पर फिर से कब्जा कर लिया और उनके शासन ने महिलाओं और लड़कियों को उत्पीड़ित और हाशिए पर रखने, उन्हें शिक्षा और अवसरों से वंचित करने और उन पर गंभीर प्रतिबंध लगाने के लिए कई कानून लागू किए हैं।
क्या रूस की तरह भारत भी देगा तालिबान सरकार को मान्यता?
आईसीसी के अनुसार, तालिबान ने फरमानों और आदेशों के माध्यम से लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा, गोपनीयता और पारिवारिक जीवन के अधिकारों से गंभीर रूप से वंचित कर दिया है। अगस्त 2024 में तालिबान की तरफ से लागू किए गए 144 पेजों के मोरेलिटी लॉ में महिलाओं को सार्वजनिक रूप से अपना पूरा शरीर ढकने और सार्वजनिक रूप से गाने या बोलने से मना करने के प्रावधान शामिल हैं। यह संहिता महिलाओं और पुरुषों को सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे को देखने से रोकती है और LGBTQIA+ लोगों के उत्पीड़न का प्रावधान करती है। संयुक्त राष्ट्र ने इन कामों और कानूनों को लैंगिक रंगभेद कहा है।
अफगानिस्तान ने 10 फरवरी 2003 को रोम स्टैट्यूट को मान लिया। इससे आईसीसी को 1 मई, 2003 के बाद अफगानिस्तान में या उसके नागरिकों द्वारा किए गए प्रासंगिक अपराधों पर अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करने की इजाजत मिल गई। इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के रोम स्टेट्यूट के आर्टिकल 7(1)(H) में क्राइम अगेंस्ट ह्यूमैनिटी को किसी भी पहचान योग्य ग्रुप या सामूहिकता के खिलाफ राजनीतिक, नस्लीय, राष्ट्रीय, जातीय, सांस्कृतिक, धार्मिक, लिंग या अन्य आधारों पर उत्पीड़न के रूप में परिभाषित किया गया है। इन्हें इंटरनेशनल लॉ के तहत सार्वभौमिक तरीके से अमान्य है।
इस साल 23 जनवरी को आईसीसी के प्रोसिक्यूटर ऑफिस ने तालिबान के नेताओं के खिलाफ प्री-ट्रायल चैंबर II के सामने आवेदन पेश किया था। प्रोसिक्यूटर करीम एए खान ने कहा कि ऑफिस अफगान नागरिकों के खिलाफ किए गए अपराधों की जांच कर रहा था और तालिबान शासन के खिलाफ प्रासंगिक सबूत इकट्ठा करने के बाद आवेदन पेश किया था। इसमें विशेषज्ञ और गवाहों की गवाही, ऑफिशियल ऑर्डर, फोरेंसिक रिपोर्ट, संदिग्धों और अन्य तालिबान प्रतिनिधियों के बयान और ऑडियो-विजुअल कंटेंट शामिल था। खान के ऑफिस ने अखुंदजादा और हक्कानी पर अफगान लड़कियों और महिलाओं के साथ-साथ उन लोगों को सताने का आरोप लगाया है, जिन्हें तालिबान के फरमान को नहीं माना है। चैंबर ने 8 जुलाई को इन आवेदनों को मंजूर कर लिया व दोनों तालिबान नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए।
तालिबान के मुख्य प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने एक्स पर पोस्ट किया:, हम इंटरनेशनल कोर्ट नामक किसी भी संगठन को मान्यता नहीं देते हैं, न ही हम किसी भी तरह से इसके प्रति प्रतिबद्ध हैं।’ आईसीसी के वारंट के कारण किसी की गिरफ्तारी की संभावना कम है। हैबतुल्लाह अखुंदजादा शायद ही कभी सामने आता है। तालिबान को मान्यता देने वाला पहला देश बना रूस