Delhi Election Result 2025: दिल्ली चुनाव में बीजेपी का सियासी वनवास खत्म हो गया है, 27 साल बाद राजधानी में भगवा सिर चढ़कर बोला है, कमल क्या कमाल खिला है। यह कमाल इतना अप्रत्याशित है कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री, आप संयोजक और नई दिल्ली से उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल को करारी हार का सामना करना पड़ा है। हारे तो मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन, सौरव भारद्वाज जैसे दूसरे दिग्गज भी हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा इस बार शिकस्त का सामना किया है।
इस बार के चुनाव में जनसत्ता ने भी जमीन पर उतर जनता की नब्ज समझने की कोशिश की थी। नई दिल्ली सीट पर भी ग्राउंड रिपोर्ट की गई थी। लोगों को क्या शिकायत थी- उनके इलाके में सड़क नहीं बनी थी, बुजुर्गों की पेंशन काफी समय से रुकी हुई थी, खराब पानी ने सेहत बेहाल कर रखी थी। कई पुरुषों ने यहां तक बोला था कि केजरीवाल सिर्फ मुफ्त में महिलाओं को पैसे देने का काम किया है, विकास के प्रति कोई ध्यान नहीं। अब लोगों के ऐसे बयान ही बताने के लिए काफी थे कि इस चुनाव में पुरुषों और महिलाओं के वोट में एक बड़ा डिवाइड था। नतीजे भी इस ओर ही इशारा कर रहे हैं कि पुरुष मतदाता ने भारी संख्या में बीजेपी को वोट किया है।
नई दिल्ली में वाल्मीकि बस्ती जैसा महत्वपूर्ण इलाके भी आता है। उस इलाके का जिक्र इसलिए क्योंकि वही से अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी का सिंबल झाड़ू लॉन्च किया था। लेकिन आज उसी इलाके में सबसे ज्यादा नाराजगी जनसत्ता को देखने को मिली थी। लोग कह रहे थे कि केजरीवाल ने इस इलाके में झांककर भी नहीं देखा, वे कई कार्यक्रमों के लिए वाल्मीकि मंदिर तक आते थे, लेकिन इस इलाके में आने की जहमत नहीं उठाई। वहां पर काम करने वालीं कई महिला सफाई कर्मचारी भी आक्रोशित थीं।
उनसे बातचीत कर पता चला कि केजरीवाल की मुफ्त वाली योजनाएं से हर महिला खुश नहीं है। उन महिलाओं ने ही कैमरे के सामने कहा था कि उन्हें पैसे नहीं चाहिएं, उन्हें अपने बच्चों के लिए नौकरी चाहिए, उन्हें शिकायत थी कि उनके लड़के घर में खाली बैठे हैं। उन्हें शिकायत थी कि पढ़े-लिखे होने के बाद भी उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिल पा रही थी। अब वैसे तो बेरोजगारी की समस्या पूरी दिल्ली में देखने को मिली, लेकिन अरविंद केजरीवाल की सीट पर इसका असर ज्यादा रहा। वैसे भी आप संयोजक से उम्मीदें ज्यादा थीं, वो क्योंकि टूटीं, ऐसे में उनका किला भी इस चुनाव में ढह गया।
नई दिल्ली सीट में लोगों में इस बात की भी नाराजगी रही कि अरविंद केजरीवाल अपने ही इलाके से नदारद रहते थे। कहने को वे दिल्ली के मुख्यमंत्री, कहने को वे आम आदमी पार्टी के सबसे बड़े चेहरे, लेकिन अपनी खुद की सीट पर उनकी उपस्थिति लोगों ने काफी कम बताई। यानी कि जनता से केजरीवाल का गैप बढ़ता जा रहा था। अब जब उनकी हार हो गई है, कहा जा सकता है कि जनता से बनी दूरी ने उन्हें सत्ता से भी दूर कर दिया।
वैसे नई दिल्ली सीट पर एक विवाद भी केजरीवाल की हार भी छोटी भूमिका जरूर निभा सकता है। जनसत्ता जब वाल्मीकि बस्ती में कवर करने गई थी, वहां कई महिलाओं ने बोला कि उन्हें पैसे दिए गए। पैसे के बदले वोट देने की डील हुई, वहां भी कुछ महिलाओं ने परवेश वर्मा का नाम लिया। अब उन महिलाओं की इन नतीजों में कितनी भागीदारी रही, इस विवाद का कितना असर रहा, अभी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल लगता है।