Jawaharlal Nehru India China War: ऑपरेशन सिंदूर के बारे में दुनिया के कई देशों को बताने के लिए मोदी सरकार ने सात डेलिगेशन भेजे हैं। इन डेलिगेशन में अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता शामिल हैं लेकिन कांग्रेस ने इसे लेकर सवाल उठाया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह सिर्फ ध्यान भटकाने की कोशिश है।
जयराम रमेश ने याद दिलाया कि जवाहरलाल नेहरू ने किस तरह 1962 के भारत और चीन के युद्ध के दौरान संसद का सत्र बुलाया था। जयराम रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद का सत्र बुलाने से लगातार इनकार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि डेलिगेशन भेजा जाना बेकार है।
आइए, जानते हैं कि 1962 में भारत और चीन के युद्ध के दौरान संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने क्या कहा था और तब संसद में क्या चर्चा हुई थी?
1962 का युद्ध चीन के हमले के बाद शुरू हुआ और 20 अक्टूबर से 21 नवंबर तक चला। संसद सत्र के पहले दिन 8 नवंबर को नेहरू ने संसद में दो प्रस्ताव रखे। पहला राष्ट्रीय आपातकाल को मंजूरी देने का था और दूसरा चीन की कार्रवाइयों की निंदा करने का।
नेहरू ने संसद में कहा, “चीन ने हमारी सद्भावना के साथ धोखा किया और उसकी सेना ने भारत पर बड़ा हमला शुरू कर दिया। वह पूरी तरह से गैर जिम्मेदार देश है और मेरा मानना है कि जिन्हें केवल युद्ध ही हल दिखाई देता है।” नेहरू ने कहा कि इस संघर्ष ने भारत के लोगों की महानता को उजागर किया है। नेहरू ने कहा, “मेरा मानना है कि न सिर्फ भारत बल्कि एशिया और शायद दुनिया के इतिहास में हम एक टर्निंग पॉइंट पर खड़े हैं।”
लोकसभा ने दोनों प्रस्तावों को सर्वसम्मति से पास कर दिया था। 5 दिन बाद जब सदन में फिर से इन मुद्दों पर चर्चा हुई तो इस दौरान नेहरू बहुत भावुक हो गए थे। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि भारत शायद पूरी तरह तैयार नहीं था। प्रधानमंत्री ने कहा था, “मुझे इसका कोई अफसोस नहीं है, मुझे लगता है कि यह शांति के लिए एक सही अपील थी।”
नेहरू ने संसद में उन बातों का भी जवाब दिया जिनमें कहा गया था कि भारतीय सैनिक बिना हथियारों के और नंगे पांव लड़ रहे थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस तरह के बयान गलत हैं। नेहरू ने लोकसभा में कहा, “उनके पास ऊनी वर्दी, अच्छे जूते, तीन कंबल और बाद में चार और जाड़ों में पहनने वाले पूरे कपड़े थे।”
जब मनोनीत सांसद फ्रैंक एंटनी ने अपील की कि भारत को चीन को जवाब देते समय क्रूर होना चाहिए तो नेहरू ने कहा कि क्रूर होकर हम अपनी आत्मा को खो देंगे।
क्या भारत और चीन के बीच कोई बातचीत होगी और लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल और मैक मोहन लाइन की मान्यता को लेकर सवाल पर प्रधानमंत्री नेहरू ने कहा, “जिसे पूरी तरह हरा दिया गया हो उससे कोई भी बात नहीं करता। अगर हमने अपना उद्देश्य हासिल कर लिया है तो बातचीत का सवाल ही नहीं उठता।”
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19 नवंबर को जब लड़ाई जारी थी तब नेहरू ने संसद को इस बात की जानकारी दी कि अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में सेना को कितना नुकसान हुआ है। नेहरू ने कहा, “हम हार नहीं मानेंगे और अपने दुश्मन से लड़ेंगे। उसे हराने और हमारे देश से बाहर निकलने में जितना भी वक्त लगे।”
चीन ने जब एक तरफा सीजफायर का प्रस्ताव रखा तो इसके एक दिन बाद 21 नवंबर को नेहरू ने संसद को इस बारे में बताया। इस दौरान जनता पार्टी के सांसद हरि विष्णु कामत ने प्रधानमंत्री की पिछली बातों का हवाला दिया। इसे लेकर नेहरू ने अपनी शर्त को दोहराया और कहा कि चीन को लेकर भारत की शर्त वही है जो पहले थी यानी कि 8 सितंबर 1962 से पहले वाली स्थिति को बहाल किया जाना चाहिए।
10 दिसंबर को एक बार फिर सदन में भारत-चीन लड़ाई को लेकर चर्चा हुई और इस दौरान विपक्ष ने मिलकर सरकार पर हमला किया। सांसद एंटनी ने कहा, “हमारा मिलिट्री इंटेलिजेंस शायद फेल हो गया और हम NEFA के बारे में चीनियों से कम जानते थे।” लेकिन नेहरू ने कहा, “भारत का इंटेलिजेंस फर्स्ट क्लास था और भारत ने अमीर देशों की तुलना में अपने संसाधनों के साथ बेहतर किया है। हमारी सेना या हमारे लड़ाकू जवानों में हिम्मत की कोई कमी नहीं है। मुझे पूरा भरोसा है कि वे दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हैं, किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए कि भारतीय सेना पर मुसीबत आई है। हार कई वजह से हुई है लेकिन हमारी सेना का मनोबल मजबूत है। हमारी सेना को गोरिल्ला युद्ध शैली में ट्रेनिंग नहीं दी गई थी जिसके बारे में चीनी जानते हैं। अब हम इसे अपनाएंगे।”
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चर्चा के दौरान जब दलाई लामा का मुद्दा बहस में आया तो नेहरू ने कहा, “वह जो चाहें कहने के लिए आजाद हैं लेकिन भारत अपनी जमीन पर तिब्बत की सरकार को बसने की अनुमति नहीं देगा। हम तिब्बत को आजाद करने की जिम्मेदारी नहीं ले सकते। अगर यह खुद ही होता है तो होने दीजिए लेकिन अभी हमारे लिए इस काम को उठाना सही नहीं होगा।”
नेहरू ने कहा, “दूसरे कम्युनिस्ट देशों के उलट, चीन डर, धमकी और वर्चस्व के जरिए एशिया के टुकड़े-टुकड़े करने की नीति पर काम कर रहा है।” नेहरू ने यह भी कहा कि चीन मिलिट्री में सर्वश्रेष्ठ है यह पूरी तरह से मिथक है और एशिया ने आज तक हथियारों से लैस ऐसा देश नहीं देखा।
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